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गांधी परिवार के लिए आसान नहीं हरियाणा के पूर्व सीएम हुड्डा को किनारे लगाना

कांग्रेस की कार्यवाहक अध्‍यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखने वाले 23 नेताओं को पार्टी में किनारे लगाने की चर्चाएं हैं। इन नेताओं में हरियाणा के पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा भी हैं।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Mon, 07 Sep 2020 02:29 PM (IST)Updated: Tue, 08 Sep 2020 07:34 AM (IST)
गांधी परिवार के लिए आसान नहीं हरियाणा के पूर्व सीएम हुड्डा को किनारे लगाना
गांधी परिवार के लिए आसान नहीं हरियाणा के पूर्व सीएम हुड्डा को किनारे लगाना

चंडीगढ़, [अनुराग अग्रवाल]। कांग्रेस की कार्यवाहक अध्‍यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखने वाले नेताओं के सियासी भविष्‍य को लेकर चर्चाएं तेज हो गई हैं। बताया जाता है कि पूर्णकालिक अध्यक्ष दिए जाने की मांग करने वाले कांग्रेस के 23 नेताओं को किनारे किए जाने की रणनीति पर काम चल रहा है। लेकिन, हरियाणा के दस साल तक मुख्यमंत्री रह चुके कांग्रेस विधायक दल के नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा को किनारे करना हाईकमान के लिए आसान दिखाई नहीं दे रहा है।

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सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखने वाले 23 नेताओं को किनारे लगाने का मामला

हरियाणा के राजनीतिक जानकारों का कहना है कि इसमें कोई शक नहीं कि कोई नेता पार्टी से बड़ा नहीं हो सकता, लेकिन हुड्डा के मामले में यह अपवाद कहा जा सकता है। इसके पीछे कई ऐसे ठोस आधार हैं, जो गांधी परिवार में हुड्डा का राजनीतिक कद बढ़ाने में सहायक हैं। हरियाणा में 30 विधायकों वाली कांग्रेस में 23 विधायक हुड्डा के समर्थक हैं, जो उनके एक इशारे पर कोई भी राजनीतिक खेल बना और बिगाड़ सकते हैं।

हुड्डा उन 23 पार्टी नेताओं में शामिल हैं, जिन्होंने कांग्रेस को पूर्णकालिक अध्यक्ष दिए जाने की मांग संबंधी उस पत्र पर हस्ताक्षर किए थे, जो सोनिया गांधी को लिखा गया था। हरियाणा से कांग्रेस के एक और नेता का नाम लिया जा रहा है, जिसके इस पत्र पर हस्ताक्षर हैं, लेकिन हुड्डा का राजनीतिक कद और वजूद न केवल संगठन बल्कि पब्लिक में काफी बड़ा है। इसलिए राष्ट्रीय स्तर पर उनके नाम की चर्चा अधिक है।

10 साल तक सीएम रहे हुड्डा के साथ 30 में से 24 विधायक एक आवाज पर खेल बनाने और बिगाड़ने को तैयार

गुलाम नबी आजाद, अशोक गहलोत, आनंद शर्मा, कपिल सिब्बल, पृथ्वीराज चौहान, राजेंद्र कौर भट्ठल और रेणुका चौधरी समेत कई ऐसे बड़े नेता हैं, जिनकी हुड्डा से दोस्ती किसी से छिपी नहीं है। इन 23 नेताओं पर जब कोई राजनीतिक आफत आती है तो वह एक दूसरे की ढाल बनकर खड़े हो जाते हैं। यही उनकी सबसे बड़ी ताकत भी है। 23 नेताओं की चिट्ठी के बावजूद जब सोनिया गांधी को अध्यक्ष बनाए रखने का फैसला लिया गया, तब हुड्डा ने साफतौर पर कह दिया था कि वह उन्हें नहीं मालूम कि कौन की चिट्ठी की बात हो रही है और सोनिया गांधी, राहुल गांधी तथा प्रियंका गांधी हमारे नेता हैं।

हरियाणा में मजबूत विपक्ष की भूमिका में हुड्डा और उनके राज्यसभा सदस्य बेटे दीपेंद्र सिंह हुड्डा

उत्तर प्रदेश के नौ नेताओं ने जब सोनिया गांधी को अपनी उपेक्षा संबंधी दूसरा पत्र लिखा और उत्तर प्रदेश की राजनीतिक कमेटियों में जितिन प्रसाद को नजर अंदाज किया गया। इसके बाद चर्चा चली कि ऐसे तमाम नेताओं को अब किनारे लगाया जा सकता है, जिन्होंने पूर्णकालिक अध्यक्ष बनाए जाने की मांग करते हुए सोनिया के नेतृत्व पर सवाल उठाए थे। 

दूसरी ओर, हुड्डा समर्थकों का कहना है कि हमारे नेता ने सोनिया गांधी, राहुल गांधी या प्रियंका गांधी के नाम का कभी विरोध नहीं किया, लेकिन यदि पूर्णकालिक अध्यक्ष बनाने का कोई सुझाव देता है तो वह पार्टी विरोधी कृत्य कैसे हो सकता है। हुड्डा हरियाणा में फिलहाल सबसे मजबूत विपक्ष की भूमिका में हैं, क्योंकि इनेलो के एकमात्र विधायक अभय चौटाला सदन में हैं। ऐसे में हुड्डा के बिना हरियाणा में हाल-फिलहाल मजबूत विपक्ष की परिकल्पना नहीं की जा सकती।

हरियाणा में क्या है हुड्डा की ताकत

हरियाणा में अधिकतर विधायक, चुनाव प्रबंधन, कांग्रेस हाईकमान की रैलियों में भीड़ जुटाना और दूसरे दलों के नेताओं के साथ गजब का तालमेल हुड्डा की बड़ी राजनीतिक ताकत हैं। दस साल तक मुख्यमंत्री रहने के बाद 2019 के चुनाव में आशंका जताई जा रही थी कि कांग्रेस आधा दर्जन से ज्यादा सीटें पार नहीं कर पाएगी। भाजपा ने तब 75 पार सीटों का नारा दिया था।

इस विपरीत परिस्थिति में हुड्डा और सैलजा की जोड़ी ने ऐसा कमाल कर दिखाया था कि कांग्रेस को 31 सीटें हासिल हो गई। इसकी उम्मीद खुद हुड्डा या सैलजा को भी नहीं थी। ऐसा रिजल्ट आने के बाद हुड्डा व सैलजा दबी जुबान में यह तक कहते रहे कि यदि और गंभीरता से चुनाव लड़ लिया जाता तथा कुछ टिकटों पर सैलजा या हुड्डा के बीच विवाद को समय रहते निपटा लिया जाता तो सरकार बनाने के हालात भी पैदा हो सकते थे।

हुड्डा के मित्र विधायक श्रीकृष्ण हुड्डा का देेहावसान हो चुका है। वह बरोदा से विधायक थे। अब यहां उपचुनाव होना है। हुड्डा के पास अब 30 विधायक हैं, जिसमें कुलदीप बिश्नोई, चिरंजीव राव, शैली चौधरी, शमशेर सिंह गोगी और किरण चौधरी को छोड़ दिया जाए तो बाकी 24 विधायक हुड्डा की एक आवाज पर चलने वाले माने जाते हैं। हालांकि कुलदीप, शैली और किरण को छोड़कर बाकी विधायक भी समय के हिसाब से सिस्टम बैठा सकते हैं।

ऐसे में कांग्रेस हाईकमान के सामने हुड्डा को नजर अंदाज करना आसान नहीं होगा। दिल्ली में आज तक जितनी भी रैलियां होती रही हैं, उनमें हुड्डा और उनके राज्यसभा सदस्य बेटे दीपेंद्र भीड़ जुटाते रहे हैं। एजेएल प्लाट आवंटन मामला हो या फिर राबर्ड वा़ड्रा को गुरुग्राम में जमीनों के लाइसेंस देने का मुद्दा, इसके अलावा हुड्डा की हाईकमान में लोकप्रियता काफी है।

हरियाणा में हुड्डा का विरोध करने वाले भी कम नहीं

हरियाणा में हुड्डा का विरोध करने वाले कांग्रेस नेताओं की सूची भी लंबी है। कांग्रेस नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला हालांकि हुड्डा की सरकार में पावरफुल मंत्री रह चुके हैं, लेकिन सुरजेवाला की राहुल गांधी के दरबार में मजबूत पकड़ है। वह जींद उपचुनाव हार गए थे, जिसके बाद हुड्डा व सुरजेवाला की दूरियां बढ़ी हैं। हरियाणा कांग्रेस की अध्यक्ष कुमारी सैलजा शुरुआती राजनीति में हुड्डा को पसंद करती थीं। बाद में दोनों का मनमुटाव हाे गया। अब फिर दोनों के राजनीतिक रिश्तों में जमी बर्फ पिघली है, लेकिन राज्यसभा का टिकट दीपेंद्र को मिलने के बाद हुड्डा व सैलजा के बीच तनातनी बढ़ती नजर आ रही है।

कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य एवं आदमपुर के विधायक कुलदीप बिश्नोई गैर जाट नेता हैंं और हुड्डा को अपना नेता स्वीकार करने को तैयार नहीं है। इसी तरह कांग्रेस विधायक दल की पूर्व नेता किरण चौधरी और पूर्व सिंचाई मंत्री कैप्टन अजय सिंह यादव के नाम भी हुड्डा विरोधियों की सूची में शामिल किए जा सकते हैं।

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सोनिया गांधी को लिखी चिट्ठी की पांच बड़ी बातें

- कांग्रेस के 23 नेताओं की इस चिट्ठी में जो पांच बड़ी बातें कही गई थीं, उनमें पहली यह थी कि कांग्रेस पार्टी में नीचे से ऊपर तक बदलाव होने चाहिए।

- दूसरी बात, कांग्रेस पूर्णकालिक अध्यक्ष का चुनाव करे और पार्टी की लीडरशिप प्रभावी तरीके से काम करे।

- तीसरी बात, कांग्रेस वर्किंग कमेटी के चुनाव कराए जाएं।

- चौथी बात, ब्लॉक स्तर पर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के स्तर पर और ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के स्तर पर चुनाव कराए जाएं।

- पांचवी बात थी कि भाजपा के खिलाफ एक नए मोर्चे का गठन किया जाए, जिसमें पूर्व कांग्रेस नेता और ऐसी पार्टियां हों जो भाजपा का विरोध करती हैं।

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