IPS पूरन कुमार सुसाइड केस में ट्विस्ट, हाईकोर्ट ने CBI जांच की याचिका की खारिज; SIT पर जताया भरोसा
पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने आईपीएस अधिकारी वाई पूरन कुमार की आत्महत्या मामले में सीबीआई जांच की मांग वाली याचिका खारिज कर दी है। न्यायालय ने कहा कि जांच में कोई देरी या लापरवाही नहीं हुई है। अदालत ने एसआईटी द्वारा की जा रही जांच पर संतोष जताया और याचिकाकर्ता के तर्कों को अपर्याप्त माना।
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पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने याचिका को किया खारिज (फाइल फोटो)
राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। हरियाणा के वरिष्ठ आइपीएस अधिकारी वाई पूरन कुमार की आत्महत्या मामले में सीबीआइ जांच नहीं होगी। पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने सीबीआइ जांच की मांग से जुड़ी याचिका को खारिज कर दिया है।
बुधवार को हुई मामले की सुनवाई में न्यायालय ने माना कि इस मामले में अब तक की जांच में न तो कोई अनावश्यक देरी हुई है और न ही लापरवाही बरती गई है।
मुख्य न्यायाधीश शील नागू और न्यायमूर्ति संजीव बेरी की खंडपीठ ने कहा कि ऐसा प्रतीत नहीं होता कि जांच में कोई ढिलाई या देरी हुई है। इसलिए स्वतंत्र एजेंसी को जांच सौंपने का कोई औचित्य नहीं बनता।
याचिका निरस्त की जाती है। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि इस मामले की जांच पहले से ही एक विशेष जांच दल द्वारा की जा रही है सुनवाई के दौरान यूटी प्रशासन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अमित झांजी ने अदालत को बताया कि मामले में 14 लोगों को आरोपी बनाया गया है, जबकि अब तक 22 गवाहों के बयान दर्ज किए जा चुके हैं।
उन्होंने कहा कि पूरा सीसीटीवी फुटेज सुरक्षित किया जा चुका है और 21 साक्ष्य एकत्र कर फोरेंसिक जांच के लिए भेजे गए हैं। खंडपीठ ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता नवनीत कुमार यह साबित नहीं कर सके कि यह जनहित याचिका किस आधार पर स्वीकार्य है।
याचिकाकर्ता ने दलील दी थी कि जांच कर रहे अधिकारियों में से एक ने भी आत्महत्या कर ली थी और यह मामला समाज के लिए चिंता का विषय है। उन्होंने कहा था कि जब वरिष्ठ अधिकारी आत्महत्या कर रहे हैं और कई वरिष्ठ आइपीएस व आइएएस अधिकारियों पर उत्पीड़न के आरोप लगा रहे हैं, तो यह एक गंभीर विषय है।
ऐसे में केंद्रीय एजेंसी द्वारा निष्पक्ष जांच आवश्यक है। इस पर मुख्य न्यायाधीश नागू ने सवाल किया कि इस मामले में ऐसा क्या असाधारण है कि जांच सीबीआई को सौंपी जाए। किन परिस्थितियों में सुप्रीम कोर्ट ने जांच ट्रांसफर करने की अनुमति दी है। इसके लिए असाधारण परिस्थितियां होनी चाहिए।
यूटी प्रशासन की ओर से बताया गया कि इस मामले की जांच के लिए आइजी रैंक के एक आइपीएस अधिकारी के नेतृत्व में एसआइटी गठित की गई है। इसमें तीन अन्य आइपीएस अधिकारी और तीन डीएसपी शामिल हैं।
कुल मिलाकर 14 सदस्यीय टीम रोजाना जांच कर रही है। वहीं, अधिवक्ता ने यह भी कहा कि एफआइआर 9 अक्टूबर को दर्ज हुई थी, जबकि याचिका 13 अक्टूबर को दाखिल की गई।
याचिकाकर्ता लुधियाना निवासी हैं और उन्होंने केवल अखबार में खबर पढ़ने के बाद याचिका दायर की। उन्होंने कहीं भी यह नहीं दर्शाया कि जांच पक्षपातपूर्ण है या किसी राजनीतिक या सरकारी हस्तक्षेप का मामला है।
इस पर न्यायालय ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों के अनुसार जांच को केंद्रीय एजेंसी को सौंपने के लिए ठोस और असाधारण कारण होने चाहिए, जो इस मामले में नहीं पाए गए।

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