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जब भगवान से यारी तो क्या करेगा पुजारी..., और उम्मीद पर दुनिया कायम, पढ़ें और भी रोचक खबरें...

राजनीति में ऐसा बहुत कुछ होता है जो अक्सर सुर्खियों में नहीं आ पाता। आइए ताऊ की वेबसाइट कॉलम केे जरिये हरियाणा की राजनीति से जुड़ी कुछ ऐसी ही चुटीली खबरों पर नजर डालते हैं।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Thu, 23 Jul 2020 10:02 AM (IST)Updated: Thu, 23 Jul 2020 10:02 AM (IST)
जब भगवान से यारी तो क्या करेगा पुजारी..., और उम्मीद पर दुनिया कायम, पढ़ें और भी रोचक खबरें...
जब भगवान से यारी तो क्या करेगा पुजारी..., और उम्मीद पर दुनिया कायम, पढ़ें और भी रोचक खबरें...

चंडीगढ़ [अनुराग अग्रवाल]। राजनीति में कुर्सी और हैसियत बहुत बड़ी चीज होती है। अब अपने ओमप्रकाश धनखड़ साहब को ही ले लीजिए। वह प्रदेश की पिछली भाजपा सरकार में प्रभावशाली मंत्री थे। उनके पास कृषि, बागवानी, सिंचाई, मत्स्य और पशुपालन के साथ खनन विभागों की जिम्मेदारी थी। लेकिन वह और कैप्टन अभिमन्यु चुनाव हार गए तो उनके विरोधियों ने ऐसे प्रचारित किया, जैसे सिर्फ ये दोनों नेता ही चुनाव हारे हैं। और अब, धनखड़ के प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बनने पर उनके वही विरोधी धनखड़ के साथ खिंचवाई हुई अपनी तमाम पुरानी फोटो सोशल मीडिया पर वायरल कर रहे हैं । हालांकि धनखड़ पर किसी की आलोचना का कभी कोई असर नहीं होता। लॉकडाउन के दौरान उन्होंने योग के साथ-साथ जमकर अध्ययन किया। वैसे भी खुद नरेंद्र मोदी उनके जुझारूपन से परिचित हैं, उन्हेंं पसंद करते हैं, इसलिए बाजी जीत गए। जीतना ही था, जिसकी भगवान से हो यारी, उसका क्या कर लेगा पुजारी।

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हुड्डा के लिए चुनौती और मनोहर के लिए अवसर

सितंबर के आखिर या अक्टूबर के शुरू में होने वाले सोनीपत की बरोदा सीट के उपचुनाव को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। कांग्रेस इस सीट पर लगातार चुनाव जीतती आ रही है। भाजपा के लिए यह हलका ठीक वैसा है, जैसे जींद था। जींद भी जाट बेल्ट है। वहां भाजपा कभी चुनाव नहीं जीत सकी, मगर पहले उप चुनाव और फिर पिछला चुनाव वह जीत चुकी। अब बरोदा जीतने की कोशिश में है। कांग्रेस के कई विधायक चाहते हैं कि यहां सिर्फ उसी को उम्मीदवार बनाया जाए, जो भाजपा के विजय रथ को रोक सके। भाजपा में कुछ लोग कैप्टन अभिमन्यु का नाम ले रहे हैं तो कांग्रेस में हुड्डा की धर्मपत्नी आशा हुड्डा का नाम लिया जा रहा है। लोग इस चुनाव को हुड्डा के लिए चुनौती और भाजपा के लिए अवसर मानते हैं। अब जो इस रण को जीतेगा, सिकंदर होगा।

घास के बहाने कांग्रेस को साफ करने का संकेत

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय दिल्ली में छात्र संघ के चुनाव और कांग्रेस के छात्र संगठन से राजनीति शुरू करने वाले अशोक तंवर राहुल गांधी की आंखों का तारा हुआ करते थे। हुड्डा से विरोध के कारण अब कांग्रेस को अलविदा कह चुके हैं। कांग्रेस छोड़ने के बाद तंवर काफी दिनों तक शांत रहे। लेकिन, अब उनका जोश हिलोरे मारने लगा है। हाल ही में उन्होंने कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व और हुड्डा पर जमकर अपनी भड़ास निकाली। फिलहाल वह कभी मोरनी, कभी पंचकूला तो कभी दिल्ली और सिरसा में दिखाई देते हैं। कई बार तंवर हाथ में लठ लिए जंगलों में कांग्रेस घास की सफाई करते हुए नजर आते हैं। यह उनका अंदाज है, शायद यह बताने का है कि वह कांग्रेस घास के साथ ही कांग्रेस को साफ करके ही मानेंगे। उनके इस अंदाज की राजनीतिक गलियारों में चर्चा है। कुछ उनकी सफलता की शुभकामनाएं करते हैं तो कुछ उपहास उड़ाते हैंं।

उम्मीद पर दुनिया कायम है

मुख्यमंत्री मनोहर लाल लंबे समय से संकेत दे रहे हैं कि उनकी कैबिनेट में दो मंत्री बनाए जा सकते हैं, लेकिन कब बनेंगे और कौन बनेंगे, इसे अभी नहीं बताया जा सकता। मुख्यमंत्री का यह संकेत उन लोगों के लिए किसी चासनी से कम नहीं है, जो लालबत्ती वाली कार और रुतबे वाली कुर्सी चाहते हैं। राजनीति में मंत्री और बोर्ड एवं निगमों के चेयरमैन बनाने तथा मंत्रिमंडल में बदलाव का शिगूफा इसलिए भी छोड़ा जाता है, ताकि हर विधायक, मंत्री या चेयरमैन बनने की चाह में बिना दायें-बायें घूमे आराम से कुर्सी की चाह में पार्टी के लिए तल्लीनता के साथ काम करता रहे। और विधायक लगे भी रहते हैं। वह क्या है कि बड़े- बुजुर्ग कह गए हैं- दुनिया में तीन ही चीजें बिकती हैं, भय, लालच और उम्मीद। मुख्यमंत्री मनोहर लाल फिलहाल तो लालच और उम्मीद बेच रहे हैं और सफल भी हैं, क्योंकि उम्मीद पर दुनिया कायम है। 


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