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हाईकोर्ट का अहम फैसला, अपराध करने से पहले खरीदी या हासिल संपत्ति को नहीं किया जा सकता कुर्क

हाईकोर्ट ने अपने महत्वपूर्ण फैसले में यह स्पष्ट कर दिया है कि किसी भी ऐसी संपत्ति को कुर्क नहीं किया जा सकता जिसे अपराध करने से पहले खरीदा या हासिल किया गया हो।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Sun, 22 Mar 2020 11:18 AM (IST)Updated: Sun, 22 Mar 2020 11:20 AM (IST)
हाईकोर्ट का अहम फैसला, अपराध करने से पहले खरीदी या हासिल संपत्ति को नहीं किया जा सकता कुर्क
हाईकोर्ट का अहम फैसला, अपराध करने से पहले खरीदी या हासिल संपत्ति को नहीं किया जा सकता कुर्क

चंडीगढ़ [दयानंद शर्मा]। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में यह स्पष्ट कर दिया है कि पीएमएलए एक्ट के तहत किसी भी ऐसी संपत्ति को कुर्क नहीं किया जा सकता जिसे अपराध करने से पहले खरीदा या हासिल किया गया हो । हाई कोर्ट के जस्टिस जसवंत सिंह पर आधारित बेंच ने यह फैसला सुनाया है। हाईकोर्ट ने कहा है कि धन शोधन रोकथाम अधिनियम (पीएमएलए), 2002 के तहत ऐसी संपत्ति को कुर्क नहीं किया जा सकता जिसे इस अपराध के करने से पहले देश के बाहर ख़रीदी या हासिल की गई हो।

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हाई कोर्ट में इस बारे में दायर अपील में कहा गया है कि यह अपील पीएमएलए की धारा 42 के तहत दायर की गई है और इसमें अपीली अधिकरण के फ़ैसले को निरस्त करने की माँग की गई है जिसने संपत्ति की अस्थाई कुर्की का आदेश है। याची जलधारा एक्सपोर्ट्स के ख़िलाफ़ वैट रिफ़ंड में फ़रवरी-मार्च 2013 के दौरान धोखाधड़ी के आरोप में आइपीसी की धारा 177, 420, 465, 467, 468, 471 के तहत मामला दर्ज किया। प्रवर्तन निदेशालय ने एनफ़ोर्समेंट केस इन्फ़र्मेशन रिपोर्ट (ईसीआईआर) दर्ज किया।

इसके बाद प्रवर्तन निदेशालय ने याची की एंपायर रेज़ीडेंशियल प्रोजेक्ट की एक फ़्लैट जो 90 दिनों के लिए कुर्क कर दिया। अपीलकर्ताओं ने इस मामले में कहा कि कुर्क की गई संपत्ति न केवल कथित अपराध बल्कि पीएमएलए के अस्तित्व में आने से काफ़ी पहले ख़रीदी गई? और संपत्ति को अस्थाई रूप से कुर्क करने से पहले इसका कारण बताने के नियम का पालन नहीं किया गया। कहा गया कि संपत्ति 1991 में ख़रीदी गई और अपील नम्बर 2 में शामिल संपत्ति 2012 में ख़रीदी गई जबकि कथित अपराध फ़रवरी-मार्च 2013 में हुआ।

इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि अपराध से आए धन से ये संपत्तियाँ ख़रीदी गईं। अदालत ने कहा कि पीएमएलए की धारा 24 के अनुसार, इस संपत्ति का धन शोधन से संबंध नहीं है अदालत ने कहा कि अथॉरिटीज़ को अनिर्देशित और बेलगाम अधिकार मिल जाएगा और वह किसी को भी फँसा सकता है भले ही उसका इस अपराध और इससे मिले धन से कोई प्रत्यक्ष या परोक्ष लेना-देना हो या नहीं हो बल्कि उस व्यक्ति की अन्य संपत्तियों से उसका वास्ता है (जिसका इस अपराध से कोई लेना-देना नहीं है) जिसने अपराध से धन जमा की है।

"यह संविधान के अनुच्छेद 20 और 21 का उल्लंघन होगा"। अदालत ने कहा कि वर्तमान मामले में यह स्वीकार किया गया है कि संपत्ति को 1991 में ख़रीदा गया और 2009 में इसे एक बैंक के पास गिरवी रख दिया गया। इसमें कहा गया कि कथित अपराध 2013 में हुआ जबकि कुर्की का आदेश दिसंबर 2017 में दिया गया। आपराधिक गतिविधि या पीएमएलए के पहले अर्जित संपत्ति को कुर्क नहीं किया जा सकता जबकि अपराध से मिले धन से ख़रीदी गई संपत्ति देश के बाहर है।

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