IAS अफसर का छलका दर्द, लिखा- हमारी बहु-बेटियां ऐसे लॉकडाउन में कैसे अपना जीवन निकालती हैं
कई ऐसी खबरें होती हैं जो मीडिया में सुर्खियां नहीं बन पाती। आइए नजर डालते हैं कुछ ऐसी ही छोटी-छोटी अंदर की खबरों पर...
नई दिल्ली। फरीदाबाद और सिरसा में उपायुक्त रहे आइएएस अधिकारी अशोक गर्ग बेशक इन दिनों मुख्य धारा में काम नहीं कर रहे हैं मगर लॉकडाउन के हर पहलू पर अपनी नजर रखे हुए हैं। वे अपने दिलो-दिमाग में आए विचारों को भी व्यक्त करते हैं। सोशल मीडिया पर सक्रिय इन महाेदय ने अपनी फेसबुक पर महिलाओं के प्रति सम्मान व्यक्त करते हुए पोस्ट डाली तो समाज के अनेक लोग जागृत हुए। अशोक गर्ग ने लिखा कि "लॉकडाउन में बहुत घुटन महसूस हो रही है, आखिर एक माह से ज्यादा हो गया। पता नहीं, हमारी बहु-बेटियां सारी उम्र ऐसे लॉकडाउन में कैसे अपना जीवन निकालती हैं।' बात तो सही है, आज भी अपने सूबे के ग्रामीण आंचल में घूंघट प्रथा भी खूब प्रचलित है। महिलाओं को घर-आंगन से बाहर नहीं निकलने दिया जाता मगर अब इस लॉकडाउन का दंश जिन लोगों ने झेला है वे महिलाओं की स्वछंदता में कभी बाधक नहीं बनेंगे।
टेपटॉप को मिला तकिए का सहारा
आवश्यकता आविष्कार की जननी है। यह वाक्य आपने खूब सुना और पढ़ा होगा। कई लोगों ने जरूरत के हिसाब से आविष्कार होते हुए देखे भी होंगे। असल में आविष्कार छोटा- बड़ा, स्थायी- अस्थायी नहीं होता। जो काम जरूरत पूरी कर दे, मानव के लिए वही आविष्कार हमेशा बड़ा रहता है। राजनीति में साधन संपन्न लोग अपने लिए सुविधाएं जुटाने में पीछे नहीं रहते मगर जिन्हें कम सुविधाओं में रहने की आदत हो वे अपने लिए हर हालात में सुविधा पैदा कर लेते हैं। सूबे में सत्तारूढ़ दल भाजपा के संगठन मंत्री सुरेश भट्ट इन दिनों एक छोटे कमरे में लॉकडाउन की सफलता की कहानी कह रहे हैं। इस दौरान उनकी पार्टी के प्रदेश व राष्ट्रीय स्तर के नेताओं से वीडियो कांफ्रेंसिंग होती है। ऐसे में वे अपने टेपटॉप को अपनी मेज और तकिए के सहारे से ऐसे रखते हैं कि सामने बैठे लोगों से उनका संवाद आसानी से हो जाए।
मंत्रीजी का सवाल वाजिब है जनाब
केंद्रीय जलशक्ति राज्यमंत्री रतन लाल कटारिया लॉकडाउन की अवधि में अपने दोनों विभागों की विभागीय बैठकों में व्यस्त रहते हैं। अब जल शक्ति मंत्रालय की बैठकों में यूं तो उनसे वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री भी मौजूद रहते हैं, इसलिए किसी गलत बात पर कटारिया का विचलित होना जरूरी नहीं है मगर ये साहब क्या करें, उनसे रुका ही नहीं जाता। वे अपनी बात कहकर ही रहते हैं। पिछले दिनों मंत्रालय की बैठक चल रही थी। इसमें नमामि गंगे मिशन के प्रहरियों से वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से गंगा की सफाई के बारे में विस्तार से पूछा जा रहा था। समीक्षा बैठक में लॉकडाउन से पहले हुए खर्च की चर्चा चल पड़ी तो कटारिया साहब उखड़ गए। बोले- लॉकडाउन में तो 10 दिन में ही गंगा छोड़ यमुना भी साफ हो गई मगर हमारे लाखों-करोड़ों से न गंगा पहले साफ हुई और न ही बाद में होने की संभावना नजर आती है।
यूं ही नहीं बिफरे झंडी वाले पंडितजी
परिवहन मंत्री मूलचंद शर्मा (झंडी वाले पंडितजी) को जब से झंडी वाली कार मिली है तब से वे अपने दोनों प्रमुख विभागों में से भ्रष्टाचार पर नकेल कसने के लिए सड़क पर ही दिखाई देते थे। आए दिन पंडितजी अखबारों की सुर्खियों में रहते थे मगर लॉकडाउन के दौरान वे अपने घर और कैंप कार्यालय से बाहर नहीं निकले। लॉकडाउन का पूरी तरह पालन किया। मगर दो दिन पहले अचानक पंडितजी ने अपने गृह जिला के उद्यमियों को परेशान करने वाले अधिकारियों को कड़ी चेतावनी दे डाली। इस चेतावनी को भ्रष्ट अधिकारियों के चेहरे तो फक पड़ गए मगर ईमानदार अधिकारी भी सन्न रह गए। इनका सवाल था कि पंडितजी के सामने ऐसी क्या बात आ गई जो वे इतने गुस्से में आए। अब पंडितजी भी यूं ही नहीं बिफरे थे, उन्हें उनके जानने वाले उद्यमियों ने अधिकारियों के वे कारनामे बता दिए जिन्हें सुनकर मुखियाजी भी सन्न रह जाएंगे। (प्रस्तुति: बिजेंद्र बंसल)
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