Baroda Byelection result: हाईकमान में बढ़ेगा हुड्डा का कद, उलटफेर नहीं कर पाई मनोहर व दुष्यंत की जोड़ी
Baroda Byelection result 2020 पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने बरोदा उपचुनाव मेें अपना गढ़ बचाकर कांग्रेस में अपना रुतबा फिर साबित किया है। इससे उनका पार्टी हाई कमान के समक्ष कद बढ़ेगा। सीएम मनोहरलाल और उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला की जोड़ी कांग्रेस के इस गढ़ में उलटफेर नहीं कर सकी।
चंडीगढ़, [अनुराग अग्रवाल]। Baroda Byelection result 2020: हरियाणा के सोनीपत जिले की बरोदा विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव के नतीजे खास चौंकाने वाले नहीं हैं। बरोदा के मतदाताओं के रुझान से पहले से ही लग रहा था कि यहां कांग्रेस चुनाव जीत सकती है। सही मायनों में बरोदा में कांग्रेस नहीं बल्कि पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और उनके राज्यसभा सदस्य बेटे दीपेंद्र सिंह हुड्डा की जीत हुई है। समग्र रूप से यह जीत हालांकि कांग्रेस की ही मानी जाएगी, लेकिन पहली बार चुनाव लड़े नए चेहरे इंदु नरवाल को विधानसभा तक पहुंचाने का श्रेय हुड्डा पिता-पुत्रों को जाता है। बरोदा में कांग्रेस की इस जीत से हुड्डा व दीपेंद्र का पार्टी हाईकमान के साथ-साथ जनता में कद बढ़ा है। साथ ही इस जीत के साथ हुड्डा ने खुद को एक बार फिर जाटों का सर्वमान्य नेता भी साबित कर दिया है।
बरोदा उपचुनाव के नतीजे खास चौंकाने वाले नहीं, तय थी कांग्रेस की जीत
पानीपत और रोहतक के बीच बसे बरोदा में कांग्रेस की जीत के खास मायने हैं। जाट बाहुल्य बरोदा हलके में कांग्रेस ने यह जीत उन राजनीतिक परिस्थितियों में हासिल की, जब भाजपा व सरकार में साझीदार उसकी सहयोगी जननायक जनता पार्टी ने मिलकर चुनाव लड़ा।
राजनीति के जानकार लोगों को लग रहा था कि भाजपा उम्मीदवार योगेश्वर दत्त को भाजपा के कोटे से गैर जाट और जजपा के कोटे से जाट मतदाताओं का आशीर्वाद मिल सकता है, लेकिन भाजपा को जजपा के वोट बैंक का जरा भी फायदा नहीं हुआ। ऐसे में योगेश्वर दत्त को जितने वोट मिले, वह भाजपा व पहलवान की व्यक्तिगत छवि की देन माने जा सकते हैं।
बरोदा में इंदु नरवाल की जीत कांग्रेस की कम और हुड्डा पिता-पुत्रों की ज्यादा
90 सदस्यीय हरियाणा विधानसभा में कांग्रेस के 30 विधायक हैं, जो इंदु नरवाल की जीत के बाद बढ़कर 31 हो गए हैं। यह सीट कांग्रेस के ही पास थी। श्रीकृष्ण हुड्डा के देहावसान की वजह से खाली हुई बरोदा सीट पर उपचुनाव हुआ था। कांग्रेस की इस जीत से हालांकि भाजपा-जजपा गठबंधन की सरकार पर कोई विपरीत असर नहीं पड़ने वाला है, लेकिन भाजपा व उसकी सहयोगी पार्टी जजपा के रणनीतिकारों को अपनी हार से तगड़ा झटका लगा है। भाजपा व जजपा ने भ्रष्टाचार रहित व्यवस्था तथा विकास के नारे के साथ यह चुनाव लड़ा था, जबकि कांग्रेस यानी हुड्डा और दीपेंद्र ने बरोदा की अनदेखी तथा तीन कृषि कानूनों को आधार बनाकर चुनावी रण में दस्तक दी थी।
भाजपा के पहलवान को नहीं मिल पाए जननायक जनता पार्टी के खाते के वोट
बरोदा के नतीजे आने से पहले सभी राजनीतिक दलों ने ताल ठोंककर दावा किया था कि यहां होने वाली हार-जीत उम्मीदवारों की नहीं बल्कि उनके आकाओं की हार-जीत होगी। भाजपा की ओर से लगभग पूरी सरकार, केंद्रीय मंत्री, सांसद और विधायकों के साथ तमाम पार्टी कार्यकर्ता इस चुनाव में लगे हुए थे। यही स्थिति जजपा की रही। जजपा नेता केसी बांगड ने तो चुनाव में यहां तक कहा कि भविष्य की गठबंधन की राजनीति को मजबूत गिरह में बांधने के लिए योगेश्वर की जीत जरूरी है, लेकिन बरोदा के मतदाताओं ने जजपा की इस अपील को सिरे से नकार दिया है।
अभय के लिए अपने उम्मीदवार की हार का दुख कम, भतीजे की हार की खुशी ज्यादा
बरोदा में चुनाव प्रचार के आखिरी दिनों में मुख्यमंत्री मनोहर लाल और उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने मिलकर चुनाव प्रचार किया था। करीब एक दर्जन मंत्री चुनाव प्रचार में जुटे हुए थे। इसके बावजूद भाजपा-जजपा गठबंधन की हार यहां दोनों पार्टियों को मतदाताओं के रुख को भांपने का अवसर देने वाली तथा नए सिरे से अपनी रणनीति तैयार करने का संकेत दे रही है। अभी गठबंधन की सरकार के चार साल बाकी हैं।
लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी के पूर्व सांसद राजकुमार सैनी ने भी पहुंचाया भाजपा को नुकसान
इनेलो उम्मीदवार जोगिंदर मलिक को हालांकि बरोदा में उम्मीद के मुताबिक जरा भी वोट नहीं मिल पाए, लेकिन गठबंधन उम्मीदवार की हार में ही इनेलो सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला और उनके बेटे अभय सिंह चौटाला अपनी जीत तलाश रहे हैं। इनेलो को मिले वोटों का नुकसान कांग्रेस व भाजपा दोनों को समान रूप से हुआ है, जबकि लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी के उम्मीदवार पूर्व सांसद राजकुमार सैनी को मिले करीब चार हजार वोट सीधे तौर पर भाजपा के लिए नुकसानदायक साबित हुए हैं।
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