हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला- सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी पैरोल के लिए डीसी की संतुष्टि जरूरी
पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण आदेश में कहा कि पैरोल पर एक आरोपी/दोषी को रिहा करते समय पुलिस और डीसी की संतुष्टि जरूरी है।
चंडीगढ़ [दयानंद शर्मा]। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि कोविड -19 महामारी के कारण सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के मद्देनजर पैरोल पर एक आरोपी/दोषी को रिहा करते समय, पुलिस और डीसी की संतुष्टि जरूरी है। हाई कोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के मद्देनजर किसी अभियुक्त/दोषी को रिहा करने का निर्णय सिर्फ इसलिए नहीं लिया जा सकता क्योंकि इसी तरह के अपराध के एक अभियुक्त को पैरोल पर रिहा किया गया है।
बेंच ने कहा कि आरोपी को पैरोल देने से पहले अपराध की प्रकृति और गंभीरता जिसमें ऐसे आरोपी/ अपराधी शामिल हैं का मूल्यांकन किया जाना चाहिए, संबंधित पुलिस अधिकारियों और जिले के डीसी द्वारा उस व्यक्ति बारे में संतुष्ट होना जरूरी है। हाई कोर्ट के जस्टिस एचएस मदान ने कैथल निवासी गगन द्वारा दायर एक याचिका को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की। आरोपी छह साल की सजा काट रहा है और कैथल जेल में बंद है। नौ अप्रैल को डीसी द्वारा उसे पैरोल देने से इंकार कर दिया गया था।
याचिकाकर्ता के अनुसार, उसने पैरोल के लिए आवेदन किया था लेकिन डीसी ने इस कारण से इन्कार कर दिया कि याचिकाकर्ता के खिलाफ एक और मामला लंबित है और वह गवाहों को प्रभावित कर सकता है। याचिकाकर्ता के अनुसार, उस मामले में इसके अलावा, एफआईआर में, सात लोगों को दोषी ठहराया गया था और उसमें से पांच को पैरोल दी गई थी और उनमें से एक, जिन्हेंं पैरोल दी गई है, उनके खिलाफ कई मामले लंबित थे और उसे भी उन्हेंं पैरोल दी गई।
बहस के दौरान सरकारी वकील ने बताया कि चूंकि याचिकाकर्ता एक अन्य मामले का सामना कर रहा है और वह गवाहों को धमकाने या प्रेरित कर सकता है और अन्य अपराधों में लिप्त हो सकता है, इसलिए एसपी कैथल द्वारा पैरोल जारी करने के लिए उनके नाम की सिफारिश नहीं की गई थी, जिस कारण डीसी कैथल द्वारा उसकी पैरोल की मांग खारिज कर दी गई। सभी पक्षों को सुनने के बाद, हाई कोर्ट ने कहा कि डीसी कैथल द्वारा पारित आदेश अवैध नहीं है, डीसी पैरोल देने से पहले सभी तथ्यों की जांच कर ही उचित निर्णय ले सकते है, डीसी को पैरोल मांगने वाले के प्रति संतुष्ट होना जरूरी है।