'दिव्यांगों को ऊपर उठाना ही राज्य की असली उदारता', HC ने हरियाणा सरकार को क्यों लगाई फटकार?
पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने दिव्यांगजनों के अधिकारों पर सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि राज्य को उनके अधिकारों को गंभीरता से लागू करना चाहिए। अदालत ने हरियाणा सरकार को दिव्यांग कर्मचारी को पदोन्नति देने का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि राज्य की उदारता का पैमाना कमजोरों को ऊपर उठाना है, और कानून को समावेशी होना चाहिए। दिव्यांग आरक्षण को सक्रिय रूप से लागू करना राज्य का दायित्व है।

पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने दिव्यांगजनों के अधिकारों पर टिप्पणी करते हुए कहा कि राज्य को उनके अधिकारों को गंभीरता से लागू करना चाहिए (फाइल फोटो)
दयानंद शर्मा, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान दिव्यांगजनों के अधिकारों पर राज्य की संवैधानिक जिम्मेदारी को रेखांकित करते हुए तीखी टिप्पणी की है।
अदालत ने कहा कि दिव्यांग नागरिकों के अधिकारों को उतनी ही गंभीरता से लागू किया जाना चाहिए, जितनी अन्य मौलिक अधिकारों को दी जाती है।
जस्टिस संदीप मौदगिल की एकलपीठ ने स्पष्ट किया कि सरकारी नौकरियों में समान अवसर का अर्थ तभी सार्थक है, जब राज्य दिव्यांग आरक्षण को सक्रिय रूप से लागू करे, न कि उसे “दफ़्तरी उदासीनता के कारण मुरझाने दिया जाए।”
अदालत ने यह टिप्पणी हरियाणा वन विभाग में कार्यरत करनाल निवासी दृष्टिबाधित कर्मचारी भीम सिंह की याचिका पर सुनवाई के दौरान की।याचिकाकर्ता भीम सिंह की नियुक्ति जून 1998 में माली के पद पर हुई थी।
उसने 2003 से फारेस्ट गार्ड और 2013 से फारेस्टर के पद पर दिव्यांग कोटा के तहत पदोन्नति का अधिकार मांगा था।
हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि राज्य की उदारता का पैमाना यह नहीं कि वह ताकतवर के प्रति कैसा व्यवहार करता है, बल्कि यह कि वह उन लोगों को कितना ऊपर उठाता है जिन्हें परिस्थितियों ने कमजोर बना दिया है।
जस्टिस मौदगिल ने कहा कि समानता कोई यांत्रिक सिद्धांत नहीं, बल्कि मानवीय प्रतिबद्धता है। कानून को समावेशिता की ओर झुकना चाहिए, अन्यथा विशेष रूप से सक्षम व्यक्ति अवसरों के उन्हीं द्वारों से वंचित रह जाएंगे, जिनकी चाबी संविधान पहले ही उन्हें सौंप चुका है।
अदालत ने अनुच्छेद 16 की व्याख्या करते हुए कहा कि यह न केवल समान अवसर का अधिकार प्रदान करता है, बल्कि पदोन्नति पर विचार किए जाने का अधिकार भी देता है।
जहां कानून द्वारा आरक्षण निर्धारित है, वहां उसे लागू करना राज्य का संवैधानिक दायित्व है।इसके विपरीत हरियाणा सरकार न तो दिव्यांग कोटा के रिक्त पदों की गिनती कर सकी, न रोस्टर बनाया, और न ही वर्षों तक इसे लागू करने का प्रयास।
अदालत ने इसे अनुच्छेद 14 और 16 दोनों का प्रत्यक्ष उल्लंघन बताया।राज्य की इस दलील को भी कोर्ट ने अस्वीकार कर दिया कि याची शारीरिक मानकों या प्रशिक्षण की शर्तें पूरी नहीं करता।
अदालत ने कहा कि किसी पद को आरक्षण से बाहर केवल विधिवत अधिसूचना के माध्यम से ही किया जा सकता है। रिकार्ड में ऐसी कोई अधिसूचना नहीं है, इसलिए प्रस्ताव लंबित होना कानूनी छूट नहीं समझा जा सकता।
अंतत: हाईकोर्ट ने याची को दिव्यांग कोटा के तहत दो चरणों में पदोन्नति देने का आदेश दिया वर्ष 2003 से फारेस्ट गार्ड और वर्ष 2013 से फारेस्टर के पद का लाभ मिलेगा।
साथ ही वेतन निर्धारण, वरिष्ठता और अन्य सभी प्रतिफल लाभ भी प्रदान किए जाएंगे। बकाया राशि पर 6% वार्षिक ब्याज लागू होगा। राज्य को चार सप्ताह के भीतर आदेश का अनुपालन सुनिश्चित करने को कहा गया है।

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