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कम उम्र में शादी करनेवाली लड़की को पति संग भेजने से HC का इन्‍कार, जानें क्‍या है पूरा मामला

पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने ने 18 साल से कम उम्र में शादी करने वाली लड़की काे उसके पति के साथ भेजने से इन्‍कार कर दिया। माता-पिता संग जाने से इन्‍कार के बाद उसे बाल संरक्षण गृह भेज दिया गया।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Wed, 14 Apr 2021 05:46 PM (IST)Updated: Wed, 14 Apr 2021 05:46 PM (IST)
कम उम्र में शादी करनेवाली लड़की को पति संग भेजने से HC का इन्‍कार, जानें क्‍या है पूरा मामला
हाई कोर्ट ने नाबालिग लड़की को पति संग भेजने से इन्‍कार कर दिया। (फाइल फोटो)

चंडीगढ, जेएनएन। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने 18 साल से कम उम्र में शादी करने वाली लड़की को उसके पति के साथ जाने की इजाजत देने से इन्‍कार कर दिया। इसके बाद लड़की ने माता-पिता के साथ जाने से भी मना कर‍ दिया तो उसे बाल संरक्षण गृह भेज दिया गया। हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया कि बाल विवाह या नाबालिग उम्र में शादी के मामलों में एक नाबालिग लड़की की सहमति नगण्य होती है। अदालत उसे माता-पिता या स्पेशल होम भेजने के लिए अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग कर सकती है, जब तक वह बालिग नहीं हो जाती।

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कहा- अदालत पिता के घर या स्पेशल होम भेजने के लिए अपने अधिकार क्षेत्र का कर सकती है प्रयोग

हाई कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि नाबालिग के कथित पति या उसके रिश्तेदार बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर करने का अधिकार नहीं रखते। ऐसी परिस्थितियों में नाबालिग बच्चियों को न्यायिक अदालत के आदेश से बाल संरक्षण गृह में उचित प्रक्रिया का पालन करते हुए रखा जा सकता है।

जस्टिस जेएस पुरी ने यह आदेश एक नाबालिग के कथित पति द्वारा दायर याचिका पर दिया। हाई कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में बच्चे का कल्याण सबसे महत्वपूर्ण है। इस मामले में लड़की 17 साल से कम थी। नाबालिग को चाइल्ड वेलफेयर सोसायटी द्वारा बाल संरक्षण गृह भेजा गया था। लड़की ने अपने पिता के साथ जाने से मना कर दिया और अपने पति के साथ जाने की जिद की। लड़की ने कहा कि वह नारी निकेतन या बाल संरक्षण गृह में रह लेगी, लेकिन अपने माता-पिता के पास नहीं जाएगी।

कथित पति ने पत्‍नी की कस्टडी की मांग करते हुए हाई कोर्ट में कहा कि नाबालिग लड़की की सहमति से विवाह किया गया था क्योंकि लड़की के परिजन उसका विवाह कहीं और कर रहे थे। इस पर हाई कोर्ट ने कहा कि माता-पिता द्वारा किसी लड़की को किसी अन्य व्यक्ति से शादी करने के लिए मजबूर करने की दलील को बाल विवाह या कम उम्र में विवाह करने का आधार नहीं बनाया जा सकता। हिंदू विवाह अधिनियम में बाल विवाह निषेध है। इस तरह का विवाह एक अपराध है जिसमे दंडात्मक प्रविधान है।

हाई कोर्ट ने कहा कि इस मामले में निश्चित रूप से बाल विवाह निषेध अधिनियम के तहत यह एक शून्य विवाह था जिसका कोई कानूनी आधार नहीं है। कोर्ट ने कहा कि बालिग होने से पहले विवाह की अनुमति देने की बजाय सेफ कस्टडी में रखकर बालिकाओं की सुरक्षा के लिए कदम उठाए जाने जरूरी हैं। विवाह करने पर परिवार से जान को खतरा जैसे सामाजिक खतरे के लिए एक समाधान की आवश्यकता है।

कोर्ट ने कहा कि विवाह में युवक-युवती की सहमति सर्वोपरि है, लेकिन कानून के खिलाफ बाल विवाह को मान्यता नहीं दी जा सकती। कोर्ट ने मांग खारिज करते हुए साफ कर दिया कि इस समय लड़की की सहमति कानूनन तौर पर कोई मायने नहीं रखती। इसलिए उसे पति के लिए बाल संरक्षण गृह से रिहा नहीं किया जा सकता, जब तक वह बालिग नहीं हो जाती। अगर लड़की 18 साल की उम्र से पहले माता- पिता के पास वापस जाना चाहे तो चाइल्ड वेलफेयर सोसायटी उसे जाने की इजाजत दे सकती है।

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