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चुनावी मोड में सरकार, जानिए क्‍यों कांग्रेस, भाजपा और जजपा के लिए अहम हैं पंचायत चुनाव

Haryana Politics राज्यसभा की एक सीट के लिए भाजपा की गठबंधन सहयोगी जजपा भी दावा कर सकती है। जजपा की तरफ से पार्टी प्रमुख डा. अजय सिंह चौटाला और उनके छोटे बेटे दिग्विजय चौटाला को राज्यसभा भेजे जाने की संभावना है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Wed, 04 May 2022 10:59 AM (IST)Updated: Wed, 04 May 2022 10:59 AM (IST)
चुनावी मोड में सरकार, जानिए क्‍यों कांग्रेस, भाजपा और जजपा के लिए अहम हैं पंचायत चुनाव
कांग्रेस, भाजपा और जजपा के लिए अहम हैं शहरी निकाय, राज्यसभा और पंचायत चुनाव। प्रतीकात्मक

अनुराग अग्रवाल। हरियाणा की भाजपा-जजपा (जननायक जनता पार्टी) गठबंधन की सरकार ढाई साल का कार्यकाल पूरा होने के बाद धीरे-धीरे चुनावी मोड में आ रही है। मई से लेकर दिसंबर तक प्रदेश में पूरा समय चुनाव को समर्पित रहने वाला है। सबसे पहले शहरी निकाय चुनाव होंगे। उसके बाद राज्यसभा की खाली हो रही दो सीटों पर चुनाव होने हैं। फिर पंचायत चुनाव की बारी है। ये तीनों चुनाव सरकार के साथ-साथ प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस के लिए काफी अहम हैं। राज्य में शहरी निकाय और पंचायत चुनाव कराने को लेकर एक साल की देरी हो चुकी है। लोगों के सब्र का बांध टूटने को तैयार है। दोनों ही चुनाव हाई कोर्ट में कानूनी प्रक्रिया में उलङो हुए हैं। तारीख पर तारीख पड़ने की वजह से चुनाव लगातार लंबे खिंचते चले जा रहे हैं।

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प्रदेश सरकार ने पंचायत चुनाव में महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत और ओबीसी के लिए आठ प्रतिशत आरक्षण का प्रविधान किया है, जिसे अदालत में चुनौती दी गई है। इसी तरह शहरी निकाय चुनाव में प्रधान पद के आरक्षण के लिए सरकार ने दोबारा ड्रा कराने का निर्णय लिया है, जिसका यह कहते हुए विरोध हो रहा है कि पुराने ड्रा के आधार पर ही चुनाव कराए जाने चाहिए, क्योंकि संभावित दावेदार अपनी-अपनी तैयारी कर चुके हैं। इन कानूनी विवादों के बीच जुलाई में राज्यसभा की दो सीटों के लिए भी चुनाव होने हैं, जिस पर भाजपा-जजपा गठबंधन और कांग्रेस की पूरी निगाह है। शहरी निकाय और पंचायत चुनाव में इस बार आम आदमी पार्टी भी ताल ठोंकने का इरादा रखती है।

हरियाणा में राज्यसभा की दो सीटों के लिए होने वाले चुनाव काफी अहम हैं। भाजपा के राज्यसभा सदस्य दुष्यंत कुमार गौतम और भाजपा समर्थित निर्दलीय सांसद सुभाष चंद्रा का कार्यकाल एक अगस्त को पूरा हो रहा है। जुलाई में इन दोनों सीटों के लिए चुनाव होने की संभावना है। सुभाष चंद्रा ने जून 2016 में हुए राज्यसभा चुनाव में भाजपा के समर्थन से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ा था। उसी दौरान दूसरी सीट से भाजपा ने पूर्व केंद्रीय मंत्री चौ. बीरेंद्र सिंह को राज्यसभा भेजा था। हालांकि सीटों के गणित के हिसाब से सुभाष चंद्रा वाली सीट कांग्रेस और इनेलो (इंडियन नेशनल लोकदल) समर्थित प्रत्याशी आरके आनंद के खाते में जानी थी, लेकिन मतदान के वक्त कांग्रेस के 15 विधायकों की स्याही अलग होने की वजह से उनके वोट रद हो गए थे। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा नहीं चाहते थे कि आरके आनंद राज्यसभा में जाएं, इसलिए उन्होंने तो मतदान तक नहीं किया। अपनी इस राय से उन्होंने सोनिया गांधी तक को अवगत करा दिया था। ऐसे में सुभाष चंद्रा की लाटरी लग गई।

अक्टूबर 2019 के लोकसभा चुनाव में चौ. बीरेंद्र सिंह के आइएएस बेटे बृजेंद्र सिंह के हिसार से सांसद बनने के बाद भाजपा नेतृत्व के कहने पर चौ. बीरेंद्र सिंह ने राज्यसभा से इस्तीफा दे दिया था। उसके बाद मार्च 2020 में इस सीट पर हुए उपचुनाव में भाजपा ने वरिष्ठ दलित नेता दुष्यंत कुमार गौतम को राज्यसभा में भेजा। बाकी की तीन सीटों का कार्यकाल अभी बचा हुआ है। भाजपा के लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) डा. डीपी वत्स का कार्यकाल दो अप्रैल, 2024 तक के लिए है, जबकि कांग्रेस के दीपेंद्र सिंह हुड्डा और भाजपा के रामचंद्र जांगड़ा का कार्यकाल 10 अप्रैल, 2026 तक के लिए है। बहरहाल दुष्यंत कुमार गौतम और सुभाष चंद्रा की सीटें खाली होने के बाद इन दोनों पर चुनाव होंगे। कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं की नजर राज्यसभा की सीट पर लगी हुई है। वर्तमान में कांग्रेस के पास 31 विधायक हैं। ऐसे में एक सीट कांग्रेस के खाते में आनी लगभग तय है और दूसरी सीट भाजपा-जजपा गठबंधन को मिलेगी।

माना जा रहा है कि दोनों ही पार्टियों के वरिष्ठ नेताओं द्वारा ‘दिल्ली दरबार’ में राज्यसभा के लिए लाबिंग की जा रही है। कांग्रेस की निवर्तमान प्रदेश अध्यक्ष कुमारी सैलजा भी राज्यसभा जाने की कोशिश में हैं। हुड्डा गुट ने जिस तरह से उन्हें प्रदेश अध्यक्ष के पद से हटाने में सफलता हासिल की, उसी तरह सैलजा की कोशिश राज्यसभा में जाकर हुड्डा गुट को मात देने की रहेगी। अप्रैल 2020 में जब दीपेंद्र हुड्डा को राज्यसभा भेजा गया था, तब इस सीट पर कुमारी सैलजा का कार्यकाल पूरा होने के बाद ही चुनाव हुआ था।

हुड्डा गुट के नेताओं के दबाव के चलते केंद्रीय नेतृत्व चाह कर भी तब दोबारा सैलजा को राज्यसभा नहीं भेज पाया था। प्रदेश कांग्रेस में नेतृत्व परिवर्तन के बाद अब सैलजा की दावेदारी फिर से मजबूत हो गई है। हुड्डा गुट भी इस सीट पर अपनी दावेदारी नहीं छोड़ने वाला है। भाजपा नेताओं में भी एक सीट को लेकर जबरदस्त लाबिंग है। हरियाणा के पूर्व शिक्षा मंत्री प्रो. रामबिलास शर्मा, पूर्व वित्त मंत्री कैप्टन अभिमन्यु, पूर्व उद्योग एवं वाणिज्य मंत्री विपुल गोयल, हरियाणा भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुभाष बराला और भाजपा-जजपा गठबंधन के प्रमुख सूत्रधार मीनू बैनीवाल के नाम सियासी गलियारों में चर्चा में हैं। ऐसी भी संभावना है कि सुभाष चंद्रा लगातार दूसरे कार्यकाल के लिए कोशिश कर सकते हैं। 

[राज्य ब्यूरो प्रमुख, हरियाणा]


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