बरोदा उपचुनाव के नतीजे के बाद बदलेगी सरकार की रणनीति, जाट अफसरों को महत्व संभव
बरोदा विधानसभा के उपचुनाव में हार के बाद हरियाणा की भाजपा सरकार अपनी रणनीति में बदलाव कर सकती है। राज्य में साइड लाइन जाट अधिकारियों का महत्व बढ़ सकता है। उपचुनाव में हुई इस हार से भाजपा चिंतित है।
चंडीगढ़ [अनुराग अग्रवाल]। सोनीपत जिले की बरोदा विधानसभा सीट पर भाजपा-जजपा गठबंधन की हार के बाद सरकार ने कई मोर्चों पर अपनी कार्यप्रणाली में बदलाव का खाका तैयार किया है। प्राथमिक तौर पर हुई समीक्षा के बाद भाजपा इस नतीजे पर पहुंची है तो उसे उम्मीद के मुताबिक जाट मतदाताओं ने स्वीकार नहीं किया है, लेकिन साथ ही भाजपा का मानना है कि अपनी सहयोगी पार्टी जजपा के बूते वह न केवल कुछ जाट मत हासिल करने में कामयाब रही, बल्कि उसके वोट प्रतिशत में भी बढ़ोतरी हुई है। भाजपा उम्मीदवार योगेश्वर दत्त को पिछले चुनाव की अपेक्षा इस बार पंद्रह हजार वोट ज्यादा मिले हैं, लेकिन इसके बावजूद भाजपा जीत के नजदीक तक नहीं पहुंच पाई है।
हरियाणा में भाजपा-जजपा गठबंधन की सरकार है। इसके बावजूद बरोदा में सत्तारूढ़ दल की हार से न केवल हाईकमान चिंतित है, बल्कि गठबंधन के नेताओं को भी अपनी अगली रणनीति में बदलाव के लिए मजबूर होना पड़ गया है। यहां हुड्डा और दीपेंद्र की पसंद वाले कांग्रेस के एकदम नए चेहरे इंदुराज नरवाल ने अंतरराष्ट्रीय पहलवान योगेश्वर दत्त को शिकस्त दी है। बरोदा में हुई गठबंधन की हार इसलिए भी चिंता बढ़ाने वाली है, क्योंकि पूरे देश में जहां भी चुनाव हुए हैं, वहां भाजपा का प्रदर्शन काफी सहानीय रहा है। ऐसे में नए भाजपा प्रभारी विनोद तावड़े के काम संभालने से पहले ही पार्टी हार के कारणों का विश्लेषण कर अपने आगे के चार साल का वर्किंग ड्राफ्ट प्लान तैयार कर लेना चाहती है।
बरोदा में हार के चाहे कितने भी कारण रहे हों, लेकिन भाजपा के चुनावी रणनीतिकार मानते हैं कि उन्हेंं जाट मतदाताओं का उम्मीद के मुताबिक साथ नहीं मिल पाया है। तीन कृषि कानूनों के पक्ष में भी पार्टी उम्मीद के मुताबिक माहौल नहीं बना पाई है। तीसरा बड़ा कारण यह रहा कि जिस जजपा को भाजपा के खिलाफ पिछले चुनाव में वोट मिले थे, उस जजपा ने भाजपा के पक्ष में वोट मांगे। इसलिए जाट वोट बैंक बंट गया। भाजपा का मानना है कि आने वाले दिनों में उसे अपने गैर जाट मतदाताओं का भरोसा बरकरार रखने के साथ-साथ जाट मतों को अपने साथ जोडऩे की रणनीति पर खास काम करना होगा। इसके लिए भाजपा के रणनीतिकारों ने ऐसे जाट आइपीएस, आइएएस, एचपीएस और एचसीएस अधिकारियों की सूची बनाने का सुझाव दिया है, जो अहम पदों पर कार्यरत नहीं हैं अथवा जिन्हेंं अफसरों की भाषा में खुड्डे लाइन लगा रखा है।
हरियाणा में भाजपा के पास करीब एक दर्जन जाट नेता हैं। साथ में जजपा के पास डा. अजय सिंह चौटाला, दुष्यंत चौटाला और डा. केसी बांगड जाट नेता हैं। ऐसे में गठबंधन को यदि भविष्य में मिलकर चुनाव लडऩा है तो उन्हेंं जाटों का भरोसा जीतने के लिए खासी और अभी से कवायद करनी पड़ेगी। सूत्रों के अनुसार बोर्ड एवं निगम, आयोग तथा विभागों में तैनात जाट अफसरों को जल्द ही अहम जिम्मेदारियां सौंपी जा सकती हैं। उन्हेंं न केवल निदेशालय और मुख्यालय बल्कि जिलों में भी डीसी व एसपी तथा एसडीएम व डीएसपी के साथ-साथ एसएचओ के पद पर नियुक्तियां देने की सोच पर काम चल रहा है।
साथ ही पार्टी के प्रमुख नेताओं से कहा गया है कि वह तीन कृषि कानूनों के पक्ष में माहौल बनाने के साथ-साथ अपनी सहयोगी पार्टी जजपा पर किसी तरह की विपरीत टिप्पणी न करें, क्योंकि अभी इस तरह का कोई माहौल नहीं है कि अपने सहयोगी की आलोचना की जाए। इससे फायदा कम और नुकसान ज्यादा हो सकता है। हालांकि हुड्डा, अभय सिंह, सैलजा, दीपेंद्र और कैप्टन अजय ने गठबंधन को लोगों का भरोसा जीतने में पूरी तरह से विफल करार दिया है, जबकि अजय सिंह और दुष्यंत चौटाला की दलीलें हैं कि भाजपा के वोट बैंक में बढ़ोतरी का कारण जजपा का वोट बैंक ही है।