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सूक्ष्म सिंचाई और आधा दर्जन बड़े प्रोजेक्टों से सुधरेगा भू-जलस्तर

12 एमएएफ (मीट्रिक एकड़ फीट) पानी की कमी से जूझ रहे हरियाणा के लिए नया साल जल संरक्षण में अहम साबित होगा।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Sat, 05 Jan 2019 01:04 PM (IST)Updated: Sat, 05 Jan 2019 09:02 PM (IST)
सूक्ष्म सिंचाई और आधा दर्जन बड़े प्रोजेक्टों से सुधरेगा भू-जलस्तर
सूक्ष्म सिंचाई और आधा दर्जन बड़े प्रोजेक्टों से सुधरेगा भू-जलस्तर

चंडीगढ़ [सुधीर तंवर]। 12 एमएएफ (मीट्रिक एकड़ फीट) पानी की कमी से जूझ रहे हरियाणा के लिए नया साल जल संरक्षण में अहम साबित होगा। 117 ब्लाकों में से 64 ब्लाकों में भू-जल का अति दोहन रोकने के लिए मास्टर प्लान पर काम स्पीड पकड़ेगा तो सूक्ष्म सिंचाई योजना का दायरा बढ़ाने की तैयारी है। सौर ऊर्जा से संचालित 15000 ट्यूबवेलों से न केवल बिजली की बचत होगी, बल्कि किसान भी केवल जरूरत के अनुसार ही भू-जल का दोहन करेंगे।

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वर्ष 1976 से लंबित लखवार तथा किशाऊ व रेणुका बांधों का निर्माण नए साल में शुरू होने की उम्मीद है जिससे प्रदेश को 1152 क्यूसिक अतिरिक्त पानी मिल सकेगा। कोटला झील के पुनर्वास पर भी तेजी से काम बढ़ा है। शिवालिक क्षेत्र में नौ स्थानों पर चेक डैम बनाने का रास्ता भी साफ हो गया है जिससे बरसात के पानी एकत्र कर बाद में इसका उपयोग किया जा सकेगा। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में कृत्रिम झीलें और तालाब बनाए जाएंगे जहां बरसात का पानी संचित कर बाद में सिंचाई के लिए इसका इस्तेमाल किया जाएगा।

सोंब सरस्वती बैराज और सरस्वती जलाशय के निर्माण से सरस्वती जलाशय में एक हजार हेक्टेयर मीटर पानी लाकर सरस्वती नदी में पानी का प्रवाह बढ़ाया जाएगा। सरस्वती जलाशय की भंडारण क्षमता भी 100 हेक्टेयर मीटर से बढ़ कर 1475 हेक्टेयर मीटर करने की तैयारी है जिससे सरस्वती में 200 क्यूसिक तक पानी का प्रवाह होगा। कैनथला आपूर्ति चैनल के जरिये मारकंडा नदी और सरस्वती नदी को जोडऩे से मारकंडा के झांसा हैड से तीन हजार क्यूसिक बाढ़ के पानी को सरस्वती नदी में डाला जा सकेगा।

पश्चिम यमुना नहर के पंप सेटों के जीर्णोद्धार से नहर की क्षमता दस हजार क्यूसिक से बढ़कर 13500 क्यूसिक हो गई है जिसका फायदा दक्षिण हरियाणा को होगा। जहां पानी जरूरत से अधिक है, वहां का पानी आवश्यकता वाले क्षेत्रों में पहुंचाया जाएगा। रेवाड़ी जिले के मसाणी बैराज पर दो वर्षों में पांच व आठ फुट तक पानी भरने से 30 से 40 फीट तक भू-जल स्तर सुधरा है।

कुदरती पानी का संरक्षण करने के लिए सभी 14 हजार तालाबों की सफाई कराने की कवायद शुरू हो गई है। ग्राउंड वाटर प्रबंधन प्रणाली और कम्युनिटी ट्यूबवेल सिस्टम के अलावा कम पानी के उपयोग वाली फसलों का उत्पादन पर विशेष जोर रहेगा।

18 मीटर गहराई पर पहुंचा भू-जल

प्रदेश में तीन दशक मेंं ट्यूबवेलों की संख्या 25 हजार से बढ़कर नौ लाख पहुंच गई है। यही वजह है कि 1980 में आठ मीटर पर मिलने वाला भूमिगत जल अब 17 से 18 मीटर नीचे पहुंच गया। प्रदेश को 32.76 एमएएफ पानी की जरूरत है जबकि मिलता है सिर्फ 20.73 एमएएफ। इसमें से 9.45 एमएएफ पानी कैनाल और 11.28 एमएएफ भूमि से मिल रहा है।

कम्युनिटी ट्यूबवेल सिस्टम को बढ़ावा देने पर विचार

जनस्वास्थ्य एवं अभियांत्रिकी मंत्री डॉ. बनवारी लाल का कहना है कि हमारे पास पानी के सीमित स्रोत हैं। इनका सदुयोग होना चाहिए ताकि पानी की बचत कर इसे अन्य कार्यों में लगाया जा सके। सरकार ग्रांउड वाटर प्रबंधन प्रणाली के साथ कम्युनिटी ट्यूबवेल सिस्टम को बढ़ावा देने पर विचार कर रही है। फसलों के विविधिकरण के जरिये काफी पानी बचाया जा सकता है।

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