Yes Bank मामले के बाद सरकार सतर्क, Private Banks में सरकारी पैसा रखने वाले अफसरों पर शिकंजा
सरकार ने सभी महकमों बोर्ड-निगमों स्थानीय निकायों और विश्वविद्यालयों से Private Banks में जमा धनराशि की जानकारी मांगी है।
जेएनएन, चंडीगढ़। दिवालिया हुए Yes Bank में सरकारी महकमों के करीब 2500 करोड़ रुपये अटकने के बाद हरकत में आई हरियाणा सरकार मनमर्जी से Private Banks में सरकारी पैसा रखने वाले अफसरों पर सख्त हो गई है। स्थानीय निकायों के साथ ही विभिन्न सरकारी विभागों, बोर्ड-निगमों और विश्वविद्यालयों से पूछा गया है कि किस-किस निजी बैंक में सरकारी रकम जमा है और कितनी। किसकी मंजूरी से Private Banks में यह पैसा जमा कराया गया।
Private Banks में जमा सरकारी पैसे पर सियासी घमासान छिडऩे के बाद प्रदेश सरकार अपनी संस्थाओं की बैंक जमाओं की जानकारी लेने में जुट गई है। नगर निगम, पालिकाओं और परिषदों को तुरंत प्रभाव से Private Banks में संचालित बचत खाता, चालू खाता, अनुदान, फिक्स डिपॉजिट सहित अन्य तमाम खातों की जानकारी देने को कहा गया है। इसके अलावा सभी महकमों को अप्रैल के पहले सप्ताह तक सभी खातों की फंड डिटेल देनी होगी।
कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी के 100 करोड़ रुपये और गुरुग्राम मेट्रोपॉलिटन डेवलपमेंट अथॉरिटी के 150 करोड़ रुपये बैंक में अटके हुए हैं। हरियाणा विद्युत प्रसारण निगम के कर्मचारियों के प्रोविडेंट फंड का करीब एक हजार करोड़ रुपये Yes Bank में फंसा हुआ है। बताया जाता है कि भविष्य निधि की इस राशि को किसी ऐसी एजेंसी में जमा कराने पर विचार किया जा रहा था जोकि इस राशि को बढ़ाते हुए प्रोविडेंट फंड और पेंशन की जरूरतें पूरी करने में मददगार बने। ऐसी एजेंसी मिलने तक इस धनराशि को अस्थायी रूप से Yes Bank में जमा कराया गया था।
अगर Yes Bank के बचत खाते में यह राशि पांच महीने से एक वर्ष तक जमा रहती है तो भविष्य निधि आयुक्त की ओर से इस पर आपत्ति आ सकती है, क्योंकि बचत खाता एएए-रेटिंग में नहीं आता है। यह वित्त मंत्रालय के निर्देशों का उल्लंघन भी है।
वहीं, प्रदेश में विभागाध्यक्षों द्वारा अपने खुद के नाम से बैंक खाते खोलने पर रोक के बावजूद अभी तक यह खेल पूरी तरह थमा नहीं है। कई विभागाध्यक्ष बरसों से अपने नाम से बैंक खाते खुलवाकर उनमें जमा सरकारी रकम पर मोटा ब्याज खाते आ रहे हैं। बैंक अधिकारियों से मिलने वाले मोटे कमीशन तथा ब्याज के चक्कर में अधिकतर विभागाध्यक्षों ने अपने कार्यकाल में निजी नामों से बैंक खाते खुलवा लिए।
कैग भी उठा चुका सवाल
पूर्व में कैग (महालेखा परीक्षक एवं नियंत्रक) ने भी अपनी रिपोर्ट में बैंक अधिकारियों तथा सरकारी विभागाध्यक्षों के इस गोरखधंधे को उजागर किया था। इसके बाद प्रदेश सरकार ने सभी सरकारी विभागाध्यक्षों के नाम से संचालित खाते बंद कराने के आदेश जारी कर दिए। दावा किया जा रहा कि अब अधिकतर खाते बंद हो चुके हैं तथा उनकी रकम सरकारी खातों में ट्रांसफर कराई जा चुकी है। हालांकि सार्वजनिक उपक्रमों, बोर्ड एवं निगमों में इस पर अभी अंकुश नहीं लग पाया है।
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