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फ्यूचर मेकिंग की आड़ में बिगाड़ रहे लोगों का फ्यूचर, एेसे फंसा रहे जाल में...

लोगों के खून-पसीने की कमाई हड़प करने वाली सैकड़ों मल्टीलेवल मार्केटिंग कंपनियां सरकार से बिना लाइसेंस लिए ही चल रही हैं। कैसे कर रही ये कंपनियां ठगी आइए जानते हैं...

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Thu, 15 Nov 2018 05:03 PM (IST)Updated: Thu, 15 Nov 2018 07:13 PM (IST)
फ्यूचर मेकिंग की आड़ में बिगाड़ रहे लोगों का फ्यूचर, एेसे फंसा रहे जाल में...
फ्यूचर मेकिंग की आड़ में बिगाड़ रहे लोगों का फ्यूचर, एेसे फंसा रहे जाल में...

चंडीगढ़ [सुधीर तंवर]। हरियाणा परीक्षाओं में नकल को लेकर पूरे देश में बदनाम हो चुका है। अब यहां बनाई गईं फर्जी मल्टीलेवल मार्केटिंग कंपनियों ने पूरे देश में ठगी कर एक दाग और लगा दिया है। इनका जाल निकटवर्ती प्रदेशों के साथ-साथ सुदूर दक्षिण के प्रांतों तेलंगाना, तमिलनाडु आदि तक फैला है।

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चार बहनों के इकलौते भाई रमेश (बदला हुआ नाम) ने नौकरी पाने की बहुत कोशिशें की, लेकिन नाकाम रहा। इसी बीच उसकी मुलाकात एक महिला से हुई जिसने बताया कि वह कैसे डायरेक्ट सेलिंग के जरिये लाखों में खेल रही है। बस फिर क्या था। रमेश ने भी परिवार की सारी जमा पूंजी लगाकर एक डायरेक्ट सेलिंग कंपनी का सामान बेचने का काम शुरू किया। कंपनी ने पहले उससे गारंटी मनी ली और फिर सामान दिया। रमेश सामान बेचने निकला तो उसके तोते उड़ गए क्योंकि सामान बहुत मुश्किल से बिक पा रहा था।

दुखी होकर उसने कंपनी से संपर्क कर प्रॉडक्ट्स वापस लौटाने की कोशिश की तो कंपनी ने साफ इन्कार कर दिया। न ही गारंटी मनी लौटाई। चूंकि कंपनी ने उसे लिखित में कुछ नहीं दिया था, इसलिए वह कोई कानूनी कार्रवाई भी नहीं कर पाया। ऐसे में परिवार की मेहनत की कमाई डूब गई, जबकि उन्हें पैसे की सख्त दरकरार थी।

यह मामला तो डायरेक्ट सेलिंग कंपनियों की ज्यादती और मनमाने बर्ताव का छोटा-सा उदाहरण है। शायद ही कोई गांव, शहर या कस्बा होगा, जहां डायरेक्ट सेलिंग के नाम पर फर्जी कंपनियों ने जाल न फैलाया हो। प्रदेश में खासतौर से रेवाड़ी, झज्जर, हिसार, सिरसा, फतेहाबाद व जींद में इस दौरान कई मल्टीलेवल मार्केटिंग कंपनियों (एमएलएम) की ठगी का खेल उजागर हुआ है।

बेरोजगार युवाओं, हाउस वाइफ और रिटायर्ड कर्मचारियों का फ्यूचर बनाने का झांसा देकर उनके करोड़ों रुपये लूट लेने वाली ये कंपनियां उनका फ्यूचर बिगाड़ने में लगी रहीं। इनमें कई के कर्ता-धर्ता जेल पहुंच चुके हैं, लेकिन निवेशकों की रकम वापसी की कोई उम्मीद नहीं दिखती। दरअसल, सरकार की ओर से बने नियम-कानून इस तरह के नए बिजनेस से निपटने के लिए नाकाफी हैं।

लाइसेंसशुदा कंपनियां जहां एजेंटों और निवेशकों पर नाजायज शर्तें थोपकर उनका शोषण करने लगीं, वहीं आमजन भी समझ नहीं पाया कि मल्टी-लेवल मार्केटिंग क्या है। इसके पहले कि लोग जब तक उन्हें समझ पाते हैं, तब तक ये कंपनियां उनके अरमानों पर पानी फेर चुकी होती हैं।

सरकारी तंत्र की अनदेखी से फंसे निवेशक

लोगों के खून-पसीने की कमाई हड़प करने वाली सैकड़ों मल्टीलेवल मार्केटिंग कंपनियां सरकार से बिना लाइसेंस लिए ही चल रही हैं। सरकार की तरफ से ऐसी कंपनियों को माइक्रो फाइनेंस का लाइसेंस जारी होता है, लेकिन फर्जी कंपनियां नए-नए हथकंडे अपना कर एक्ट से बचती रहीं। अब जिला स्तर पर अतिरिक्त उपायुक्तों की अध्यक्षता में कमेटियां बनाई गई हैं जो ऐसी कंपनियों की जांच करेंगी। लाइसेंस नहीं मिलने पर इनके संचालकों पर कार्रवाई होगी।

पिरामिड स्कीम और मल्टी-लेवल मार्केटिंग में अंतर

पिरामिड स्कीम में लोगों को तेजी से जोड़करमुनाफा बढ़ाया जाता है। इसका मकसद ऊपर वालों को ज्यादा-से-ज्यादा फायदा पहुंचाना है। खूब कमाने वाले एजेंटों का उदाहरण देकर नए लोगों से मोटी रकम ली जाती है जिसका एक हिस्सा सबसे ऊपर तक जाता है। इस तरह की स्कीम में नए लोग जितने जुटते जाएंगे, ऊपर वालों की कमाई उतनी ही बढ़ती जाएगी। वहीं, मल्टी लेवल मार्केटिंग में एजेंटों को उपभोक्ता वस्तुएं बेचनी होती हैं। वे जितना सामान बेचेंगे, उन्हें उतना ही फायदा होगा। खास अवधि में वितरकों का बिक्री का टारगेट पूरा नहीं होने पर उनके पैसे फंस भी जाते हैं।

केस हिस्ट्री-1

हिसार में फ्यूचर मेकर लाइफ केयर प्राइवेट लिमिटेड ने सैकड़ों लोगों को अपना शिकार बनाकर करीब 1200 करोड़ रुपये का चूना लगाया। कंपनी चेयरमैन राधे श्याम और डायरेक्टर सुरेंद्र सिंह चेन सिस्टम में लोगों को शामिल करने के लिए साढ़े सात हजार रुपये वसूलते थे। कंपनी ज्वाइनिंग के बाद ढाई हजार रुपये लौटाने और बाकी बचे हुए पैसों के कपड़े और दवाइयां खरीदने का लालच देती। 7200 रुपये के निवेश पर दो साल में 60 हजार रुपये वापस मिलने की बात कही जाती थी। कंपनी ने हरियाणा के साथ ही दिल्ली, मध्य प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र और ओडिशा में लोगों को करोड़ों की चपत लगाई।

केस हिस्ट्री - 2

झज्जर निवासी संदीप कौशिक और उसके साथी आशीष मलिक ने विदेशी कंपनी में निवेश का झांसा देकर तीन से चार गुना तक लाभ का भरोसा दिलाया। फर्जीवाड़े की पोल खुलने लगी तो कंपनी का नाम रोजनेफ्ट हेज फंड से बदलकर आरएएचएफ काइन और आरएएचएफ गोल्ड रख दिया। आरोपितों ने पूरे देश में करीब 1200 लोगों को शिकार बनाया। लोगों को विश्वास में लेने के लिए दिल्ली, इंदौर के अलावा रूस, थाइलैंड व दुबई में सेमिनार तक कराए।

केस हिस्ट्री - 3

रेवाड़ी में एमएलएम कंपनी सैकड़ों लोगों के करीब दस करोड़ रुपये रुपये लेकर फरार हो गई। तीन साल की किस्तें पूरी होने के बाद भी किसी निवेशक को पैसा नहीं लौटाया गया। इसी तरह फतेहाबाद में दो कंपनियों मिंट एवोल्यूशन और ट्रेडमार्ट ने करोड़ों रुपये का गबन किया। सिरसा में लाइफ केयर कंपनी निवेशकों के 200 करोड़ रुपये लेकर फरार हो गई।

कुछ दिन पहले तक लूट रही थीं चिटफंड कंपनियां

कुछ दिन पहले तक चिटफंड कंपनियों ने लोगों को इसी तरह लूटा था, अब उनकी तर्ज पर ये मल्टी लेवल मार्केटिंग कपंनियां लूट में लगी हैं। बेशक डायरेक्ट सेलिंग ने रोजगार के नए रास्ते खोलते हुए बड़ी तादाद में पुरुषों और महिलाओं को सक्षम बनाया है, लेकिन फर्जी कंपनियों ने काफी संख्या में लोगों को हजारों करोड़ रुपये की चपत भी लगाई।

प्रदेश सरकार ने कड़े नियम बनाए

हरियाणा के वित्त मंत्री कैप्टन अभिमन्यु का कहना है कि एमएलएम कंपनियों की धोखाधड़ी के बढ़ते मामलों से निपटने के लिए केंद्र की तर्ज पर प्रदेश सरकार ने कड़े नियम बनाए हैं। ऐसी सभी कंपनियों को भारतीय अनुबंध एक्ट 1872 के प्रावधानों को मानना होगा। नियमों के पालन के लिए मॉनीटरिंग अथॉरिटी इन पर नजर रखेंगी। पिरामिड स्कीम को एक तरह से प्रतिबंधित कर दिया गया है। कोई डायरेक्ट सेलिंग कंपनी एजेंट रखते समय उनसे किसी तरह की फीस नहीं ले सकेगी।

वित्त मंत्री का कहना है कि एजेंटों को ज्यादा प्रॉडक्ट खरीदने के लिए पहले की तरह मजबूर नहीं किया जा सकेगा। अभी तक कंपनियां अपने प्रॉडक्ट अपने हिसाब से ही उन्हें देती थीं। इसके अलावा कंपनियों को मुनाफा, कमीशन और इंसेंटिव के बारे में पहले से बताना होगा। वे चीजें एजेंटों से वापस लेनी होंगी जो बिक नहीं सकीं। इसके अलावा एजेंट जब चाहें इस काम को छोड़ सकेंगे और उन पर कोई दूसरा बंधन भी नहीं रहेगा। इससे लाखों एजेंटों को फायदा होगा। अभी तक कई कंपनियां निवेशकों के पैसे लेकर न तो रसीद दे रही थीं और न ही उन्हें पैसे लौटा रही थीं। इससे सरकार को भी वैट और सेल्स टैक्स का नुकसान उठाना पड़ा।

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