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पिजौर से छोड़े गए गिद्धों के चार जोड़े

इन गिद्धों पर 100 किलोमीटर के दायरे में नजर रखी जाएगी और इनकी जांच होगी।

By JagranEdited By: Published: Thu, 08 Oct 2020 08:22 PM (IST)Updated: Fri, 09 Oct 2020 05:11 AM (IST)
पिजौर से छोड़े गए गिद्धों के चार जोड़े
पिजौर से छोड़े गए गिद्धों के चार जोड़े

जागरण संवाददाता, पंचकूला

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गिद्ध संरक्षण प्रजनन केंद्र गांव जोधपुर पिजौर से वीरवार को चार गिद्धों के जोड़ों को रिलीज कर दिया गया। हरियाणा के वन एवं वन्य प्राणी मंत्री कंवरपाल ने इन गिद्धों को रिलीज किया। इन गिद्धों पर 100 किलोमीटर के दायरे में नजर रखी जाएगी और इनकी जांच होगी।

मंत्री कंवरपाल ने बताया कि यह हरियाणा वन विभाग और बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी (बीएनएचएस) की एक संयुक्त परियोजना है। अब यहां से गिद्धों के 40 जोड़ों को हर साल छोड़ने का लक्ष्य रखा गया है। वह दो से आठ अक्तूबर तक आयोजित वन्यप्राणी सप्ताह के समापन अवसर पर यहां पहुंचे थे। 2015 में हुई थी गिद्धों के संरक्षण की पहल

उन्होंने बताया कि नवंबर, 2015 में इसी गिद्ध सरंक्षण प्रजनन केंद्र में आठ गिद्धों को यहां रखा गया था और आज लगभग पांच वर्षों बाद उन्हीं आठ गिद्धों को एशिया के पहले जिप्सवल्चर रिइंट्रोडक्शन प्रोग्राम के तहत रिहा कर प्राकृतिक माहौल में छोड़ा गया है। वर्तमान में इस केंद्र में गिद्धों की संख्या 370 है, जिनमें से 300 से अधिक पिजौर में ही जन्मे हैं। गिद्धों को कहा जाता है स्वच्छता का दूत

उन्होंने कहा कि गिद्धों को स्वच्छता का दूत कहा जाता है, लेकिन साल 1990 के बाद से भारत में इनकी प्रजाति  लुप्त होती गई। पक्षियों की इस प्रजाति को बचाने के लिए ही सरंक्षण एवं प्रजनन केंद्र खोला गया था।

मुख्य वन्यप्राणी वार्डन, हरियाणा आलोक वर्मा ने बताया कि यह जटायु सरंक्षण एवं प्रजनन केंद्र देश के अन्य आठ ऐसे केंद्रों में से सर्वश्रेष्ठ है तथा यह सबके लिए मार्गदर्शन है। गिद्धों के विलुप्त होने के कारणों पर किया जा चुका है अध्ययन

बाम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी के वैज्ञानिक डॉ. विभू प्रकाश ने कहा कि साल 2001 में गिद्धों के सरंक्षण के लिए कार्यक्रम की शुरुआत की गई थी। अध्ययन किए गए थे कि गिद्धों की प्रजाति विलुप्त होने का क्या कारण हैं। अध्ययन के निष्कर्ष में पाया गया कि पशुओं के लिए डाईक्लोफिनेक दवा का उपयोग प्रतिबंधित है। पशुओं को दर्द और सूजन में इस दवाई का टीका दिया जाता है। टीका देने के बाद किसी कारणवश 72 घंटे के अंदर मवेशी की मृत्यु हो जाती है तो मवेशी के शव को खाने पर उसमें मौजूद डाईक्लोफिनेक के अवशेष गिद्धों में चले जाते हैं और उसके बाद गुर्दे खराब होने की वजह से गिद्ध की मृत्यु हो जाती है। वन मंत्री ने किया नई गिद्ध पक्षीशाला का उद्घाटन

इस अवसर पर वन मंत्री ने केंद्र परिसर में लगाई गई प्रदर्शनी का अवलोकन किया और त्रिवेणी का पौधा लगाया। इसके अलावा उन्होंने केंद्र में नई गिद्ध पक्षीशाला का उद्घाटन किया और इसमें गिद्धों को छोड़ा। वन मंत्री ने वन्यप्राणी सुरक्षा सप्ताह के दौरान आयोजित की गई ईक्को प्रश्नोत्तरी तथा पेंटिग प्रतियोगिता के विजेताओं तथा विभाग के उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले कर्मचारियों को सम्मानित भी किया। ईक्को प्रतियोगिता में कुमारी तनवी को प्रथम, तुषार को द्वितीय तथा सुनिल को तृतीय स्थान प्राप्त हुआ। जबकि पेंटिग में कुसाग्र को प्रथम, इशांत तंवर को द्वितीय तथा कुमारी तनवी को तृतीय पुरस्कार दिया गया। इसी प्रकार लघु चिड़ियाघर, पिपली के डॉ. अशोक खासा, रेवाड़ी के उपनिरीक्षक देवेंद्र सिंह वन्यप्राणी गार्ड, कुलदीप सिंह, जितेंद्र दलाल, सुल्तानपुर लेक के पंप ऑपरेटर सुरेश तथा पिपली लघु चिडि़याघर के सेवादार सुंदर को भी सम्मानित किया। इस दौरान प्रधान मुख्य वन सरंक्षण डॉ. अमरिदर कौर मौजूद रहीं।


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