बातचीत पर टिकी कर्मचारियों की निगाह, बात नहीं बनी तो कर सकते हैं बड़ा आंदोलन
17 और 20 जुलाई को होने वाली बैठकों में यदि सरकार के साथ विभिन्न मुद्दों पर सहमति नहीं बनी तो कर्मचारी संगठन चुनाव से पहले सरकार के विरुद्ध बड़ा आंदोलन खड़ा कर सकते हैं।
जेएनएन, चंडीगढ़। प्रदेश सरकार और कर्मचारी संगठनों के बीच होने वाली बातचीत पर सरकारी कर्मचारियों की निगाह टिकी हुई है। सरकार बातचीत के दौरान जहां किसी एक कर्मचारी संगठन को अहमियत देने के मूड में नहीं है, वहीं सरकार पर पुरानी पेंशन स्कीम बहाल करने, बढ़ा हुआ एचआरए तथा कच्चे कर्मचारियों को पक्का करने का पूरा दबाव रहेगा। 17 और 20 जुलाई को होने वाली बैठकों में यदि सरकार के साथ विभिन्न मुद्दों पर सहमति नहीं बनी तो कर्मचारी संगठन चुनाव से पहले सरकार के विरुद्ध बड़ा आंदोलन खड़ा कर सकते हैं।
सरकार ने भारतीय मजदूर संघ और सर्व कर्मचारी संघ को अलग-अलग समय में बातचीत के लिए बुला रखा है। कर्मचारी संगठनों का आरोप है कि सरकार ने पिछले चुनाव घोषणा पत्र में किया एक भी वादा पूरा नहीं किया है। कर्मचारी लंबे समय से पुरानी पेंशन स्कीम बहाल करने तथा बढ़ा हुआ एचआरए देने की मांग कर रहे हैं। सरकार ने इन मांगों को पूरा करने में साढ़े चार साल बिता दिए। अब कर्मचारियों को 17 व 20 जुलाई को होने वाली बैठकों में किसी समाधान की आस जगी है।
कर्मचारियों की पुरानी पेंशन बहाली का विवाद लंबे समय से चल रहा है। कर्मचारी संगठन वर्तमान तथा पूर्व सरकार पर पुरानी पेंशन बहाली की मांग को लेकर दबाव बनाते रहे हैं। प्रदेश में इस समय करीब ढाई लाख कर्मचारी हैं। हर साल औसतन दस हजार कर्मचारी सेवानिवृत हो रहे हैं। केंद्र की पूर्व यूपीए सरकार ने वर्ष 2006 के दौरान पुरानी पेंशन योजना को समाप्त कर दिया था। उस समय हरियाणा की तत्कालीन हुड्डा सरकार ने भी केंद्र सरकार के समर्थन में प्रस्ताव पारित कर कर्मचारियों को मिलने वाली सुविधा वापस ले ली थी। आज परिस्थिति बदल चुकी हैं।
राज्य के तमाम कर्मचारी संगठन पुरानी पेंशन योजना को बहाल करने की मांग कर रहे हैं। हालांकि यह बहाली केंद्र सरकार के स्तर पर होनी है, लेकिन दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार द्वारा विधानसभा में प्रस्ताव पारित करके केंद्र सरकार को भेजा जा चुका है। हरियाणा में कर्मचारी संगठन भी सरकार से मांग कर रहे हैं कि इस माह के आखिरी सप्ताह में होने वाले विधानसभा सत्र के दौरान प्रस्ताव पारित कर केंद्र सरकार को भेजा जाए।
दूसरी तरफ हरियाणा सरकार पुरानी पेंशन बहाली को लेकर अभी विशेषज्ञों की राय ले रही है। इस मामले में वित्त विभाग से भी सुझाव मांगे गए हैं। दिलचस्प बात यह है कि अपनी सरकार के कार्यकाल के दौरान कर्मचारियों की पुरानी पेंशन योजना को रद करने वाले पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा भी कर्मचारियों के समर्थन में अपनी आवाज उठा रहे हैं।
क्या है पुरानी पेंशन योजना
हरियाणा में वर्ष 2006 में पुरानी पेंशन योजना को बंद किया गया था। हरियाणा ने यह फैसला तत्कालीन केंद्र सरकार के निर्देशों पर लिया था। इस योजना के तहत सेवानिवृत होने वाले कर्मचारी को अपने अंतिम वेतन का आधा हिस्सा पेंशन के रूप में दिया जाता था। वर्तमान में कर्मचारियों को सेवानिवृति के बाद मिलने वाली पेंशन महज औपचारिकता पूर्ण है, जिसे लेकर कर्मचारी संघर्ष कर रहे हैं।
रोडवेज कर्मचारियों के साथ भी बातचीत करें सीएम
आल हरियाणा रोङवेज वर्कर्स यूनियन के राज्य प्रधान हरिनारायण, महासचिव बलवान सिंह दोदवा और वरिष्ठ उपप्रधान सुरेश लाठर ने अधिकारियों की हठधर्मिता के चलते परिवहन विभाग बंद होने की आशंका जताई है। उन्होंने कहा कि परिवहन विभाग में सबसे बड़ा घोटाला व आर्थिक नुकसान तथा रोडवेज कर्मचारियों का सबसे ज्यादा उत्पीडऩ वर्तमान सरकार के कार्यकाल में हुआ है। बसों की संख्या कम होने के कारण प्रदेश की जनता को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
भाजपा सरकार ने वर्ष 2014 में जब सत्ता संभाली तो परिवहन विभाग में 4200 बसों का बेड़ा था, जो आज घटकर केवल तीन हजार रह गया है। कर्मचारी नेताओं ने कहा कि वर्ष 2018 में अपने निजी चहेते बड़े ट्रांसपोर्टरों से 700 बसें किलोमीटर स्कीम पर हायर करने का फैसला लिया गया। इस किलोमीटर स्कीम में भारी घोटाला है। घोटाले में संलिप्त परिवहन विभाग के उच्च अधिकारी अपनी पोल खुलने के भय से सीएम के साथ बैठक कराने को राजी नहीं हैं।
इस घोटाले की विजिलेंस जांच की रिपोर्ट 17 जुलाई को हाईकोर्ट में सौंपी जाएगी। विजिलेंस जांच में 85 से 90 करोड़ रुपये का घोटाला उजागर होने की आशंका है। कर्मचारी नेताओं ने कहा कि द्वारा मामूली शिकायत पर लगभग 200 परिचालक व अकस्मात दुर्घटना होने पर 250 चालकों को सस्पेंड किया जा चुका है। उन्होंने इन तमाम मसलों पर सीएम के साथ बैठक करने की जरूरत पर जोर दिया है।