Dialogue for daughter में मन की बात, बेटियों के सपनों को परवान चढ़ाने से रोक रही मां-बाप की गरीबी
सबसे बड़ी जरूरत है तो इस बात की कि बेटियों की उच्च शिक्षा में आने वाली बाधाओं को मिलकर दूर किया जाए। डायलाग फार डाटर वेबिनार के जरिये यह बात उभरकर सामने आई।
जेएनएन, चंडीगढ़। हरियाणा हो या फिर देश का कोई दूसरा राज्य, बेटियों की शिक्षा में गरीबी सबसे बड़ी बाधा है। बेटियों को उनके मां-बाप पढ़ाना, लिखाना और बहुत ऊंचाइयों तक पहुंचाना चाहते हैं, मगर आर्थिक दिक्कतों के चलते मां-बाप की उम्मीदें परवान नहीं चढ़ पाती। बेटियां काफी हद तक उस मानसिकता के दायरे से बाहर निकल चुकी हैं, जो उन्हेंं अभिभावकों की दकियानूसी सोच के चलते आगे बढ़ने से रोकती रही हैं। अब अगर सबसे बड़ी जरूरत है तो इस बात की कि बेटियों की उच्च शिक्षा में आने वाली बाधाओं को मिलकर दूर किया जाए।
'डायलाग फार डाटर' वेबिनार के जरिये यह बात उभरकर सामने आई। सेल्फी विद डाटर कंपेन एंड फाउंडेशन की ओर से आयोजित इस वेबिनार में देशभर के कई वह अभिभावक अपनी बेटियों के साथ जुड़े, जिनकी एक, दो या तीन बेटियां हैं। वेबिनार में बेटियों के जन्म लेने की स्थिति में पारिवारिक व सामाजिक दबाव के तमाम पहलुओं पर खुलकर चर्चा हुई। आखिर में इस बात पर सहमति बनी कि बेटियों के लिए विवाह के दौरान होने वाले खर्च यानी दान-दहेज को इकट्ठा करने से ज्यादा जरूरी उनके लिए उच्चस्तरीय पढ़ाई के खर्च का बंदोबस्त करने की है।
वेबिनार में बाल विवाह पर भी चर्चा करते हुए इसका कड़ा विरोध किया गया। देश में 27 फीसद लड़कियां बाल विवाह का शिकार होती हैं। बिहार इस मामले में नंबर वन पर है। हरियाणा के कुछ इलाकों में भी बाल विवाह हो रहे हैं, जिन्हेंं रोकने के लिए सामाजिक सोच में बदलाव की जरूरत है। वक्ताओ ने बेटियों के जन्म पर खुशियां मनाने की वकालत करते हुए सलाह दी कि यदि किसी के यहां लगातार दो या तीन या चार बेटियां जन्म लेती हैं और बेटे के लिए उन पर पारिवारिक दबाव बनाया जाता है तो उसके प्रतिवाद या विरोध की शुरुआत खुद से करनी होगी।
वेबिनार में एक के बाद एक कई ऐसे उदाहरण दिए गए, जिसमें कहा गया कि लड़कियां अपने माता-पिता के प्रति लड़कों से कहीं ज्यादा केयरिंग (देखभाल करने वाली) साबित होती हैं। इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं कि लड़के अपने अभिभावकों की चिंता नहीं करते। फिल्म निर्माता अतर सिंह सैनी ने कहा कि पश्चिमी देशों खासकर मुंबई में लड़का और लड़की में कोई भेद नहीं किया जाता। सेल्फी विद डाटर कंपेन एंड फाउंडेशन के संयोजक सुनील जागलान ने बदलाव की शुरुआत पहले घर, फिर परिवार, उसके बाद पड़ोस और बाद में समाज से करने की बात कहते हुए इसे जनांदोलन बनाने के लिए प्रेरित किया।
वेबिनार में सेल्फी विद डाटर अभियान की मेवात में ब्रांड अंबेसडर रिजवाना, अंजुम इस्लाम, शहनाज बानो, आरस्तुन खान, वसीमा, सेल्फी विद डाटर फाउंडेशन की सिग्नेचर कंपेन की ब्रांड अंबेसडर अनवी अग्रवाल, पूजा सिंह, सीमा तंवर, कृष्ण वानखेड़े, मुकेश कुमार, सुरेंद्र कुमार, भिवानी के रतन, सुनील सैनी, जितेंद्र सिंह, आरपीएफ के जवान संजय और गुरुग्राम के सतेंद्र राघव ने भी बेटियों की उच्च शिक्षा को प्रोत्साहित करने की जरूरत पर जोर दिया।
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