बीई-बीटेक में घटा छात्रों का क्रेज, 61 इंजीनियरिंग कॉलेजों पर ताले
हरियाणा में इंजीनियरिंग कॉलेजों में तीन साल में 14 हजार सीटें घटी हैं। इसके बावजूद राज्य में बीटेक की 70 फीसद सीट खाली हैं।
चंडीगढ़ [सुधीर तंवर]। इंजीनियरिंग के लिए दूसरे राज्यों को रिझाते रहे हरियाणा के सरकारी और निजी तकनीकी संस्थानों का क्रेज अब घटने लगा है। निजी कंपनियों की मांग पर खरे नहीं उतरते बीई (बैचलर ऑफ इंजीनियरिंग) और बीटेक (बैचलर ऑफ टेक्नोलॉजी) के कोर्स युवाओं को रास नहीं आ रहे।
बगैर किसी ठोस योजना के तहत खोले गए निजी तकनीकी कॉलेजों में पिछले तीन वर्षों के दौरान 14 हजार सीटें जहां कम हो गईं, वहीं 70 फीसद से अधिक सीटें खाली ही रहीं। नतीजतन पांच वर्षों के दौरान 61 इंजीनियरिंग कॉलेज बंद हो चुके हैं। दूसरी तरफ बड़ी संख्या में हरियाणा के युवा इंजीनियरिंग के लिए कर्नाटक सहित अन्य राज्यों का रुख कर रहे हैं।
दरअसल, कुछ वर्ष पहले इंजीनियरिंग के प्रति युवाओं के क्रेज के कारण उद्योगपतियों ने तकनीकी संस्थाओं में जमकर पैसा लगाया और बिना प्लानिंग कई ऐसे कोर्स शुरू कर दिए, जिनमें रोजगार की संभावनाएं काफी कम थी। इस कारण पहले जिन ट्रेड में दाखिले के लिए मारामारी थी, अब उनमें कोई दाखिला नहीं लेता। वर्तमान में चल रहे करीब सवा सौ कॉलेजों ने दो शिफ्ट की जगह एक शिफ्ट में ही विभिन्न ट्रेडों की पढ़ाई समेट दी है।
साल दर साल घटते रहे छात्र
आंकड़ों पर नजर डालें तो वर्ष 2015-16 में बीई/बीटेक में कुल 58,134 स्वीकृत सीटें थी जिनमें 39,551 खाली रह गईं। इनमें नौ सरकारी संस्थानों की 2830 में से 830 और 139 निजी संस्थानों की 55,304 सीटों में 38,721 सीटें खाली रहीं। वर्ष 2016-17 में कुछ निजी संस्थान बंद होने से सीटें 51,902 रह गईं। इसके बावजूद 37,323 सीटें खाली रहीं। 10 सरकारी संस्थानों में 3190 में से 913 और 127 निजी संस्थानों में कुल 48,712 सीटों में से 36,410 सीटें खाली रहीं। वहीं वर्ष 2017-18 में 43,771 सीटों में से 29,858 खाली रहीं। 13 सरकारी संस्थानों की 3831 में से 1490 और 114 निजी कॉलेजों की 39,940 में से 28,368 सीटें खाली रहीं।
सब्सिडी का फर्जीवाड़ा बंद होने से बिगड़ा बजट
अधिकतर निजी इंजीनियरिंग कॉलेजों में अनुसूचित जाति व अन्य वर्ग के छात्रों को सब्सिडी के नाम पर खूब गड़बड़झाला होता था। पहले सरकार की ओर से छात्रों की सूची लेकर कॉलेज प्रबंधन के खाते में पैसे डाले जाते थे। मगर फर्जीवाड़े के खुलासे के बाद छात्रों के आधार से जुड़े खातों में सब्सिडी डालनी शुरू कर दी, जिससे सारा खेल बंद हो गया।
छात्रों की नहीं प्लेसमेंट, नाममात्र पगार
इंजीनियरिंग कॉलेजों में कंपनियों के अनुरूप कोर्स नहीं होने से प्लेसमेंट के अवसर घटे हैं। कॉलेज प्रबंधन ने केवल कागजी ज्ञान पर फोकस कर दिया जिससे बड़ी कंपनियों में काम करने लायक इंजीनियर यहां से निकल नहीं रहे। छोटी कंपनियां यहां के छात्रों को अंडर ट्रेनिंग लेती भी हैं तो सिर्फ 10 से 15 हजार रुपये में। इस कारण छात्रों ने दूसरे कोर्स की तरफ रुख कर लिया।
अब सिर्फ रोजगारपरक कोर्स : शर्मा
तकनीकी शिक्षा मंत्री रामबिलास शर्मा का कहना है कि समय के अनुसार उद्योगों की आवश्यकताएं बदल जाती हैं। अभी तक कॉलेजों में तकनीकी कोर्स एक बार शुरू होने के बाद दशकों तक चलते थे। इसी कारण कोर्स करने वाले युवा बेरोजगारों की श्रेणी में खड़े होते गए। हमने कई ऐसे कोर्स शुरू किए हैं जिनसे युवाओं को रोजगार मिलेगा। नए सत्र में दूसरे राज्यों के छात्रों के लिए सरकारी और निजी तकनीकी संस्थानों में 15 फीसद सीटें आरक्षित की हैं। इससे हरियाणा के छात्र वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार होंगे।
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