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    'सिर्फ समझौते के आधार पर FIR नहीं की जा सकती रद', साइबर धोखाधड़ी को लेकर पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट सख्त

    Updated: Fri, 14 Nov 2025 04:29 PM (IST)

    पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने कहा कि साइबर धोखाधड़ी डिजिटल अर्थव्यवस्था और जनता के विश्वास पर हमला है। ऐसे मामलों में केवल समझौते के आधार पर एफआईआर रद्द नहीं की जा सकती। अदालत ने चेतावनी दी कि यदि अपराधी पैसा लौटाकर सजा से बचने लगे, तो कानून गणितीय लाभ-हानि में बदल जाएगा और अपराधी बेखौफ होकर अपराध दोहराएंगे। अदालत ने साइबर अपराध से जुड़े एक मामले में एफआईआर रद्द करने की याचिका खारिज कर दी।

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    साइबर धोखाधड़ी को लेकर पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट सख्त (फाइल फोटो)

    राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि साइबर धोखाधड़ी महज दो पक्षों के बीच का निजी विवाद नहीं, बल्कि डिजिटल अर्थव्यवस्था और सार्वजनिक विश्वास पर हमला है।

    इसलिए ऐसे मामलों में केवल शिकायतकर्ता और आरोपित के बीच हुए समझौते के आधार पर एफआिआर रद नहीं की जा सकती। जस्टिस सुमित गोयल ने कहा कि साइबर अपराध एक आधुनिक, संगठित और सीमा पार फैलने वाला आर्थिक खतरा है, जो डिजिटल वित्तीय प्रणाली की जड़ें हिला देता है।

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    डिजिटल अर्थव्यवस्था पूरी तरह जनता के भरोसे पर आधारित है, और साइबर धोखाधड़ी इस विश्वास को अंदर से कमजोर कर देती है। अदालत के अनुसार, इस तरह के संगठित अपराध को केवल समझौते से समाप्त करना न्यायिक प्रणाली को “सतत सिस्टमेटिक खतरे” को मंजूरी देने जैसा होगा।

    उन्होंने चेतावनी दी कि यदि अपराधी केवल पैसा लौटाकर सज़ा से बचने लगें, तो दंडात्मक कानून “गणितीय लाभ-हानि” में बदल जाएगा। इससे अपराधी समझौतों को “पूर्वानुमानित खर्च” मानकर बेखौफ होकर अपराध दोहराने लगेंगे, और इससे आपराधिक न्याय प्रणाली की गंभीर क्षति होगी।

    यह टिप्पणिया बीएनएसएस की धारा 528 के तहत दायर उस याचिका को खारिज करते समय की गई, जिसमें हरियाणा के साइबर थाना सोनीपत में दर्ज एफआिआर को समझौते के आधार पर रद करने की मांग की गई थी।

    एफआइआर एक निजी संस्थान में अकाउंटेंट दिव्या द्वारा दर्ज कराई गई थी। उन्होंने आरोप लगाया कि उनकी जानकारी और सहमति के बिना उनके एचडीएफसी बैंक खाते से 14.83 लाख रुपये के अनधिकृत आनलाइन लेनदेन किए गए।

    नेट बैंकिंग में लाग इन करने पर उन्हें धोखाधड़ी का पता चला, जिसके बाद साइबर थाने में शिकायत दर्ज की गई। याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि मामला आपसी सहमति से सुलझा लिया गया है और शिकायतकर्ता ने भी हलफनामा देकर एफआिआर रद करने पर आपत्ति न होने की बात कही।

    लेकिन राज्य सरकार ने इसका कड़ा विरोध करते हुए कहा कि साइबर धोखाधड़ी न केवल व्यक्तिगत नुकसान है बल्कि व्यापक डिजिटल व्यवस्था और जनता के विश्वास को भी प्रभावित करती है। इसलिए इसे मात्र निजी विवाद नहीं माना जा सकता।

    अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि कभी साइबर अपराध के आरोप केवल किसी निजी वित्तीय विवाद को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाने के लिए लगाए गए हों, तो हाई कोर्ट न्यायहित में समझौते को स्वीकार कर सकती है। लेकिन मौजूदा मामले में स्पष्ट रूप से वास्तविक साइबर धोखाधड़ी हुई थी और यह किसी निजी लेन-देन का विवाद नहीं था। इस आधार पर अदालत ने एफआइआर रद करने की याचिका खारिज कर दी।