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कोरोनाकाल में खिलाड़ी और कोच भी वित्तीय संकट से घिरे

गरीब परिवारों से संबंध रखने वाले इंटरनेशनल स्तर पर मेडल जीतने वाले खिलाड़ियों के पास अब न खेल बचा और न रोजगार।

By JagranEdited By: Published: Tue, 28 Jul 2020 09:29 PM (IST)Updated: Wed, 29 Jul 2020 06:16 AM (IST)
कोरोनाकाल में खिलाड़ी और कोच भी वित्तीय संकट से घिरे
कोरोनाकाल में खिलाड़ी और कोच भी वित्तीय संकट से घिरे

राजेश मलकानियां, पंचकूला

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कोरोनाकाल में खेल गतिविधियां थमने से खिलाडि़यों और उनके कोच के सामने भी वित्तीय संकट गहरा गया है। गरीब परिवारों से संबंध रखने वाले इंटरनेशनल स्तर पर मेडल जीतने वाले खिलाड़ियों के पास अब न खेल बचा और न रोजगार। कुछ खिलाडि़यों के पास तो अपनी डाइट के लिए भी पैसा नहीं है। पहले वे खेल के अलावा कुछ अन्य कार्य कर वे किसी प्रकार अपना खर्च निकाल लेते थे, लेकिन अब उन्हें रोजगार के लाले पड़ गए हैं। डाइट का खर्च निकालना भी मुश्किल

ताइक्वांडो में इंटरनेशनल मेडल जीतने वाला सूरज शादियों में डेकोरेशन का काम करता था और त्यौहारों पर अलग-अलग स्टॉल लगा लेता था। कोरोनाकाल में शादियों में डेकोरेशन का काम ही खत्म हो गया। त्यौहार वैसे ही फीके पड़ गए हैं। सूरज थाईलैंड में स्वर्ण एवं कांस्य पदक जीत चुका है। जबकि नेपाल में रजत पदक, श्रीलंका में कांस्य पदक भी सूरज के नाम है। सूरज ताइक्वांडों का स्टेट रेफरी भी है। उसके 12वीं में 62.6 प्रतिशत अंक आये थे। सूरज कहता है कि कोरोना से पहले वह अपनी तैयारी अच्छी तरह कर पाता था। डाइट के लिए शादियों में जाकर डेकोरेशन के काम से कुछ पैसा कमा लेता था, लेकिन अब सब कुछ बंद है। अब शादियों में डेकोरेशन करने और वेटर का काम भी नहीं मिल रहा

ताइक्वांडों में ही प्रभाकर स्टेट में गोल्ड मेडल जीत चुका है। नेशनल लेवल पर भी कई गेम्स में हिस्सा ले चुका है। प्रभाकर अपनी पढ़ाई और डाइट का खर्चा शादियों में वेटर का काम करके पूरा कर लेता था। साथ ही परिवार के लिए भी कुछ पैसा कमा लेता था। कोरोनाकाल में प्रैक्टिस भी बंद हो गई है। शादियों में सरकार द्वारा 50 लोगों की लिमिट फिक्स करने से वेटर का काम ही खत्म हो गया। प्रभाकर कई जगह मजदूरी के लिए गया, लेकिन कुछ काम नहीं मिला।

गरीब परिवारों के होनहार बच्चों के लिए यह मुश्किल भरा दौर : अमिता

कोच अमिता मारवाह का कहना है कि गरीब परिवारों के होनहार बच्चे बहुत मुश्किल दौर से गुजर रहे हैं। इनके पास अब न खेल है और न रोजगार। उन्हें अच्छी डाइट भी नहीं मिल पा रही है। इनके माता-पिता को भी काम नहीं मिल रहा है। ऐसे बच्चों को पढ़ाई आगे बढ़ाने के लिए कॉलेज में दाखिला करवाना है, लेकिन कोई स्पांसर नहीं मिल रहा है।


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