कांग्रेस का चिट्ठी 'बम': तुझसे परेशान नहीं, हैरान हूं मैं, पढ़ेें हरियाणा की और भी रोचक खबरें
राजनीति में कई ऐसी बातें होती हैं जो अक्सर खबर नहीं बन पाती। आइए हरियाणा के साप्ताहिक कॉलम जोगिया सब जानता है में डालते हैं कुछ ऐसी ही खबरों पर नजर...
चंडीगढ़ [बिजेंद्र बंसल]। राष्ट्रीय अध्यक्ष को लेकर कांग्रेस में मचे घमासान में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के कूदने से कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष कुमारी सैलजा हैरान तो हैं, लेकिन परेशान नहीं। हैरान इसलिए कि 2005 में प्रदेश में कांग्रेस को विजय मिली तो सोनिया गांंधी ने चौधरी भजनलाल और चौधरी बीरेंद्र सिंह के बजाय हुड्डा को वरीयता देकर मुख्यमंत्री बनाया। तब सैलजा भी हुड्डा की पैरोकार थीं। इसके बाद साढ़े नौ साल तक मुख्यमंत्री रहे हुड्डा को दिल्ली का संरक्षण मिलता रहा।
बीते विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बदले गए तो हुड्डा को पार्टी का चेहरा बनाया गया। हुड्डा की अनुशंसा वाले नेताओं ने सबसे अधिक विधानसभा टिकट झटके। राज्यसभा के लिए उनका (सैलजा का) टिकट काटकर हुड्डा के पुत्र दीपेंद्र को दिया गया, फिर भी हुड्डा चिट्टीबाजी करने लगे। रही बात परेशान होने की तो इस चिट्ठीबाजी से हुड्डा के नंबर कम होंगे और इससे सैलजा क्यों परेशान हों।
बरोदा जीत से पहले बंट जानी चाहिए रेवड़ी
बरोदा उपचुनाव में जीत का अंतर बढ़ाने के लिए सत्तारूढ़ दल भाजपा से ज्यादा उनके सहयोगी दल जजपा के मुखिया और उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ज्यादा चिंतित हैं। दुष्यंत बरोदा में अपना सिक्का जमाने के लिए भाजपा दिल्ली दरबार में भी दलील दे आए हैं। उनका कहना है कि जिस पर सबकी सहमति बन जाए, उसमें कतई विलंब नहीं करना चाहिए।
दरअसल, दुष्यंत को अपने समर्थकों को सत्ता का एहसास कराने में काफी मुश्किल हो रही है क्योंकि उनके दल के खाते से जो एक विधायक मंत्री और 15 नेता चेयरमैन बनने थे, उनकी नियुक्ति टलती ही जा रही है। दुष्यंत मानते हैं कि उपचुनाव से पहले रेवड़ी बांट दी जाती है तो उपकृत होने वाले नेता कम से कम 15 हजार वोट की बढ़ोतरी कर देते। अब मुख्यमंत्री कोरोना संक्रमित होकर अस्पताल में हैं। उनकी जगह पर नायब होने के नाते दुष्यंत खुद हैं, लेकिन रेवड़ी बांट नहीं सकते।
विज हैं कि मानते ही नहीं
गृहमंत्री अनिल विज ने सूबे में कोरोना मरीजों की बढ़ती संख्या रोकने के लिए बाजारों में दुकानों को शनिवार व रविवार बंद रखने का फरमान जारी किया है। दुकानदारों के लिए यह फरमान एक तरह से शनिवार-रविवार के लॉकडाउन की तरह है। दुकानदारों ने पहले शनिवार सुबह इसका पालन किया मगर जब देखा कि उनके बाजार में शराब की दुकानें खुली हैं।
विधायक-मंत्री भी दोनों दिन अपनी राजनीतिक दुकान चमकाने को लोगों के साथ विकास कार्यों की शुरूआत के नारियल फोड़ रहे हैं तो उनके गुस्से का ठिकाना नहीं रहा। इस शासनादेश का विरोध करने के लिए सड़कों पर आए दुकानदारों ने सवाल दाग दिए कि क्या शराब बेचने वाले को कोरोना नहीं होगा, नारियल फोड़ने वाले नेताओं को कोरोना नहीं होगा, क्या दो दिन की बंदी से कोरोना थम जाएगा। अब लोकतांत्रिक शासन प्रणाली में शासनादेश तो तर्कसंगत होना ही चाहिए, पर विज हैं कि मानते ही नहीं है।
पर्ची-खर्ची का रिकॉर्ड
मनो सरकार की एक खासियत तो रही कि सरकार के स्तर पर सरकारी सेवा और सुविधा में खर्ची-पर्ची नहीं चलती। पूरी तरह पारदर्शीता से काम किया जाता है। कांग्रेस हो या इनेलो-जजपा इनकी तो अलग बात खुद भाजपा के माननीय भी मनो के इस पारदर्शी कदम से परेशान रहे हैं। मगर एनआइटी विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस विधायक नीरज शर्मा ने अपने क्षेत्र की सब्जी मंडी में आवंटित हुए 704 फड़ (खुदरा सब्जी विक्रेताओं के ठिकाने) के मामले में तो पर्ची ही नहीं खर्ची का भी रिकॉर्ड तैयार कर लिया है। नीरज के इस रिकॉर्ड पर सरकार ने मंडी के सचिव को निलंबित कर दिया है मगर यह तय हो गया है कि मनो सरकार में नीचे तक पर्ची-खर्ची रोकने की व्यवस्था लागू नहीं हो पाई है। कांग्रेस विधायक होते हुए भी नीरज मुखियाजी को सलाह दे रहे हैं कि वह इसकी विजिलेंस जांच कराएंगे तो चौकाने वाले तथ्य सामने आएंगे।