एसवाईएल पर हरियाणा व पंजाब का टकराव बढ़ा, केंद्र से हस्तक्षेप की गुहार
पंजाब सरकार द्वारा सतलुज यमुना लिंक नहर के लिए अधिग्रहीत जमीन काे मुक्त करने के फैसले के बाद हरियाणा से उसका टकराव बढ़ गया है। हरियाणा सरकार ने अब इस मामले में के्रद सरकार से हस्तक्षेप की मांग की है।
चंडीगढ़। एसवाईएल नहर मामले पर हरियाणा और पंजाब के बीच शनिवार को टकराव बढ़ गया। पंजाब सरकार द्वारा नहर के लिए अधिग्रहीत की गई जमीन को मुक्त करने के निर्णय पर हरियाणा सरकार ने निराशा जताते हुए कड़ा रुख अपनाया है। हरियाणा सरकार ने इस संंबंध में केंद्र सरकार से हस्तक्षेप की गुहार की है। हरियाणा सरकार ने कहा है कि केद्र सरकार नहर के लिए जमीन मुक्त करने के संबंध में विधानसभा में बिल लाने से पंजाब सरकार काे रोके। हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने इस मामले पर केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह से मुलाकात की।
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हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने शनिवार को दिल्ली में गृह मंत्री राजनाथ सिंह से मुलाकात कर पंजाब सरकार द्वारा उठाए गए कदम पर चिंता जताई और हरियाणा सरकार की ओर से आपत्ति दर्ज कराई। उन्होंने पूरे मामले से अवगत कराते हुए इसमें केंद्र सरकार से हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया। मनोहर लाल के साथ केंद्रीय मंत्री चौ.बीरेंद्र सिंह,कृष्ण पाल गुर्जर, भाजपा के हरियाणा प्रभारी अनिल जैन, राज्य के वरिष्ठ मंत्री रामबिलास शर्मा, ओमप्रकाश धनखड़ और राव नरबीर भी थे।
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केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने उन्हें पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल से बात करने का आश्वासन दिया। राजनाथ सिंह ने कहा कि बादल से बात कर समस्या का समाधान निकाल लिया जाएगा।
इससे पहले, ट्विट कर हरियाणा के वरिष्ठ मंत्री अनिल विज ने पंजाब सरकार के अधिग्रहीत जमीन को मुक्त करने के कदम को घातक और गलत बताया है। उन्होंने कहा है कि इस मामले में केंद्र सरकार काे हस्तक्षेप करना चाहिए। केंद्र सरकार जमीन अधिग्रहण को डी नोटिफाई करने के विधानसभा में बिल लाने से रोके।
उन्होंने इस मामले में दो ट्विट किए हैं। उन्होंने कहा कि एसवाईएल का मामले की सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है और उसके फैसले का इंतजार है। ऐसे में पंजाब को माहौल नहीं खराब करना चाहिए और मामले को पेचीदा बनाने से बचना चाहिए।
दूसरी ओर, पंजाब सरकार ने कहा है कि हम इस मामले में राज्य हितों की अनदेखी नहीं कर सकते और पंजाब के पानी के मामले में कोई समझौता नहीं कर सकते।
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अब एक और नए मोर्चे पर लड़नी पड़ेगी हरियाणा को लड़ाई
हरियाणा के लिए पंजाब सरकार का फैसला बेहद आघात पहुंचाने वाला है। अपने हाथ से एसवाईएल नहर का पानी खिसकता देख न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी वाली कहावत को चरितार्थ करने पर आ गई पंजाब सरकार ने अधिग्रहीत जमीन वापस करने का फैसला लेकर हरियाणा की दिक्कतें बढ़ा दी हैं। अब हरियाणा को नए मोर्चे पर एक और लड़ाई लड़नी पड़ेगी।
कैप्टन अमरेंद्र का 12 साल पहले का इतिहास दोहराया गया हरियाणा के साथ
पंजाब की बादल सरकार का एसवाईएल नहर के लिए अधिग्रहित किसानों की जमीनें वापस करने का फैसला ठीक उसी तरह का है, जिस तरह 2004 में तत्कालीन अमरेंद्र सिंह (कांग्रेस) की सरकार ने सभी नदी जल समझौते रद कर लिया था। बादल सरकार ने यह फैसला उस वक्त पर लिया है जब पंजाब में चुनाव हैं और हरियाणा को सुप्रीम कोर्ट से अपने हक में फैसला होता नजर आ रहा है।
हरियाणा सरकार को अपने हिस्से का पानी लेने के लिए करीब 12 साल के लंबे अंतराल के बाद उम्मीद की किरण नजर आई थी। पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेंद्र सिंह तक ने यह संभावना जता दी थी कि एसवाईएल का फैसला हरियाणा के हक में जा सकता है और ऐसा होने के बाद मुख्यमंत्री बादल अपने पद से इस्तीफा दे सकते हैं।
पंजाब सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने से पहले ही नया पैंतरा खेल दिया है। जमीनें वापस करने के पंजाब के पैंतरे में हरियाणा बुरी तरह से उलझ गया और उसे पंजाब के इस फैसले को गलत साबित करने में लंबा समय लग सकता है। पंजाब विधानसभा में विधेयक पास हो जाने के बाद तो हरियाणा सरकार को इस पर फिर से राष्ट्रपति संदर्भ के लिए नई जिद्दोजहद करनी पड़ सकती है।
पंजाब सरकार ने की थी 5376 एकड़ जमीन अधिग्रहीत
पंजाब सरकार ने सतलुज-यमुना लिंक (एसवाईएल) नहर के लिए 5376 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया था। प्रशासनिक मंजूरी की अधिसूचना जारी होने के बाद एसवाईएल परियोजना के लिए 1977 में यह जमीन अधिग्रहीत हुई थी। राजस्व रिकार्ड के मुताबिक इस जमीन की मालिक पंजाब सरकार है और इस पर कब्जा पंजाब के सिंचाई विभाग (एसवाईएल प्रोजेक्ट) का है।