फसल के दाम सीधे किसानों के खाते में डालने से हरियाणा में टकराव के हालात
हरियाणा में किसानों को फसलों का भुगतान सीधे उनके खाते में देने पर विवाद पैदा हो गया है। इसके विराेध में आढ़तियों ने मोर्चा खोल दिया है। आढ़तियों ने हड़ताल पर जाने की घोषणा की है।
चंडीगढ़, जेएनएन। किसानों की फसल के दाम सीधे उनके खातों में डालने के राज्य सरकार के फैसले पर टकराव के हालात बन गए हैं। इसके विरोध में आढ़ती खुलकर सामने आ गए हैं। हरियाणा प्रदेश व्यापार मंडल ने सरकार के इस फैसले का विरोध करते हुए जहां 15 जनवरी को राज्य की सभी मंडियां बंद रखने का ऐलान किया है। दूसरी ओर, भारतीय किसान यूनियन सरकार के पक्ष में खड़ी हो गई है। भाकियू का कहना है कि इससे कई स्तर पर भ्रष्टाचार में कमी आएगी।
किसान संगठन और आढ़ती आमने-सामने, आढ़ी मंडियां रखेंगे बंद
हरियाणा सरकार ने पिछले साल भी किसानों की फसल का पैसा सीधे खातों में ट्रांसफर करने का निर्णय लिया था, लेकिन व्यापारियों व आढ़तियों के विरोध के बाद सरकार को यह फैसला वापस लेना पड़ गया था। इस बार फिर सरकार ने किसानों की फसल की आनलाइन खरीद करने व पैसा सीधे खातों में ट्रांसफर करने का निर्णय लिया है, जिसका आढ़तियों ने खुला विरोध कर दिया है।
भाकियू ने कहा, भ्रष्टाचार रोकना है तो सीधे किसानों के खाते में डालना होगा पैसा
प्रदेश के किसान संगठन फसल का पैसा सीधे किसानों के खाते में डाले जाने के हक में हैं। दूसरी ओर, हरियाणा प्रदेश व्यापार मंडल के अध्यक्ष बजरंग दास गर्ग की दलील है कि ऐसा करने से आढ़तियों व किसानों का आपसी व्यवहार (लेनदेन) प्रभावित होगा। किसानों को जब जरूरत होती है, तब वे आढ़तियों से शादी-ब्याह, खाद, बीज और दवाइयों के लिए एडवांस सामग्री लेते हैं। मंडियों में फसल आने के बाद इस एडवांस राशि की कटौती मूल राशि में से होती है। आढ़ती राज्य के किसानों के एटीएम हैं, लेकिन सरकार इस व्यवहार को बंद करने पर तुली है।
उधर, भाकियू के प्रदेश अध्यक्ष गुरनाम सिंह चढूनी ने उलट मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर किसानों की फसल का पैसा सीधे उनके खातों में ट्रांसफर किए जाने की मांग की है। चढूनी ने इसके समर्थन में कई दलीलें दी हैं। उन्होंने कहा कि चावल मिल मालिकों द्वारा आढ़तियों व अधिकारियों से मिलकर किसानों के नाम पर जाली जे फार्म काटे जाते है।
उन्हाेंने कहा कि इसके बाद बड़ी मात्रा में ट्रेडिंग के नाम पर चावल दूसरे प्रदेशों से मंगवा लिए जाते हैं, जो धान खरीद के बदले बाद में सीधा सरकार को देते हैं। इसका सीधा नुकसान किसान व सरकार को होता है। शेलर मालिक धान खरीद का अपना कोटा पूरा दिखाता है और किसान का धान मंडियों में पड़ा रहता है। फिर इस फसल में कई तरह की कमियां बताकर उसे 250 से 300 रुपये क्विंटल कम पर खरीदा जाता है।
उन्होंने पत्र लिखकर मुख्यमंत्री को बताया है कि किसान के खेत में प्रति एकड़ 26 से 28 क्विंटल औसतन पैदावार होती है, जबकि मंडियों का यह आंकड़ा 52 किवंटल से ऊपर पहुंच जाता है। न धान मंडी में आता और न ही धान की कोई मिलिंग होती। दूसरे प्रदेशों से मंगवाकर चावल सीधा सरकार को दे दिया जाता है। भुगतान आढ़तियों के खाते में जाने से भारी मात्रा में भ्रष्टाचार होता है। किसानों से नाजायज कट के रूप में पैसे काट लिए जाते है। सीधे भुगतान से मडियों मे होने वाले भ्रष्टाचार पर रोक लगेगी।