खाद-बीज, मजदूरी और डीजल महंगा, फिर भी हरियाणा में धान पर लागत घटने का दावा
खाद, बिजली, मजदूरी व डीजल महंगा हुआ है। इसके बावजूद सरकार का दावा है कि धान की लागत में 20 रुपये प्रति क्विंटल की कमी आई है।
जेएनएन, चंडीगढ़। हरियाणा के धान उत्पादक किसान फसल की बढ़ती लागत से परेशान हैं, लेकिन कृषि विभाग का दावा है कि धान के उत्पादन पर खर्च कम हुआ है। वहीं, चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार को तो यह भी पता नहीं कि किस फसल पर कितनी लागत आती है। इसी तरह पिछले दिनों रबी फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी का श्रेय ले रहे कृषि विभाग ने साफ किया है कि महकमे ने केंद्र को किसान की लागत के संबंध में कोई पत्र नहीं भेजा। भारतीय किसान यूनियन के पदाधिकारी राकेश कुमार बैंस द्वारा कृषि विभाग से आरटीआइ के तहत मांगी गई जानकारी से यह खुलासा हुआ है।
महकमे से मिले जवाब के मुताबिक पिछले वर्षों के मुकाबले प्रति क्विंटल गेहूं उत्पादन पर 24 रुपये, चने पर 383, जौं पर 25, सरसों/तोरिया पर 26, बाजरे पर 48, मक्की पर 15 और कपास पर लागत में 530 रुपये बढ़ी है। इसके उलट धान की लागत में 20 रुपये प्रति क्विंटल की कमी आई। हालांकि किसान संगठनों ने इसे खारिज करते हुए कहा कि जब खाद, बीज, मजदूरी और डीजल की कीमतों में भारी इजाफा हुआ है तो धान की लागत कैसे कम हो सकती है।
विभाग ने नहीं की एमएसपी की कोई सिफारिश
वहीं, कृषि विश्वविद्यालय ने लिखित जवाब में माना कि उसके पास खरीफ व रबी फसलों की लागत संबंधी कोई रिकॉर्ड नहीं है। केंद्रीय स्तर पर रबी फसलों की एमएसपी में इजाफे में प्रदेश के योगदान के सवाल पर कृषि निदेशक ने बताया कि कृषि लागत एवं मूल्य आयोग क्षेत्रीय स्तर पर राज्यों की बैठक प्रदेश में ही कराता है। इसमें आयोग किसानों, कृषि विज्ञानियों और कृषि अधिकारियों से चर्चा के बाद केंद्र सरकार को न्यूनतम समर्थन मूल्य की सिफारिश करता है। वर्ष 2016-17, 2017-18 तथा 2018-19 में कृषि विभाग द्वारा अलग से न्यूनतम समर्थन मूल्य की कोई सिफारिश केंद्र सरकार को नहीं भेजी गई।