Exclusive interview: हरियाणा सीएम मनोहर बोले-किसानों के कंधे पर बंदूक रखकर राजनीति ओछी
Exclusive interview हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहरलाल ने खास बातचीत में कहा कि राजनीतिक दल भोलेभाले किसानों को अपनी सियासत के लिए हथियार बनाने की कोशिश में हैं। राजनीतिक दल किसानों के कंधे पर बंदूक रखकर ओछी सियासत न करें।
चंडीगढ़, [अनुराग अग्रवाल]। हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल का मानना है कि किसान राजनीतिक दिशाहीनता के शिकार हैं। कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए-दो सरकार में तीनों कृषि कानूनों का मसौदा तैयार हुआ। तत्कालीन कृषि मंत्री शरद पवार ने इन सुधारों को लागू करने के लिए न केवल राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखे थे, बल्कि केंद्र की ओर से मिलने वाली आर्थिक सहायता तक बंद करने की धमकियां तत्कालीन सरकार ने दी थी।
केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों पर दैनिक जागरण की मुख्यमंत्री मनोहर लाल से बातचीत
मुख्यमंत्री मनोहरलाल ने कहा कि अब किसानों के कंधे पर बंदूक रखकर कांग्रेस व दूसरे विपक्षी राजनीतिक दल ओछी राजनीति कर रहे हैं। राजनीति दल इस तरह की सियासत न करें। दिल्ली-हरियाणा की सीमा पर कई दिनों से डटे किसानों के आंदोलन और उनकी मांगों काे लेकर पैदा हालात पर दैनिक जागरण ने मुख्यमंत्री मनोहर लाल से बातचीत की। पेश है इसके प्रमुख अंश-
- तीन कृषि कानूनों को लेकर विरोध हो रहा है। बार्डर पर किसान जमा हैं। इसे आप कैसे देखते हैं? क्या आपकी केंद्र सरकार से कोई बात हुई है?
- यूपीए-दो की सरकार के समय इन कृषि सुधारों को जोर-शोर से लागू करने की बात चली थी। तब कांग्रेस सरकार यह काम नहीं कर पाई। आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन कानूनों को किसान हित में लागू कर दिया तो कांग्रेस समेत विरोध करने वाले तमाम दलों को लगने लगा कि उनकी राजनीति बंद हो गई है। डीएमके, आरजेड़ी, जनता पार्टी, बीएसपी, शिरअकाली दल और इनेलो तक विरोध में उतर आए हैं। ये किसानों के हितैषी नहीं हैं बल्कि उन्हें वोट बैंक से ज्यादा कुछ नहीं समझते। इन राजनीतिक दलों को मेरी यही सलाह है कि किसान के कंधे पर बंदूक रखकर ओछी राजनीति न करें। किसानों को सच्चे दिल से बताएं कि ये तीनों कानून किसानों की प्रगति के लिए लाए गए हैं। प्रधानमंत्री भरोसा दिला चुके कि किसी सूरत में मंडियां और एमएसपी बंद नहीं होंगे। मैं भी यही भरोसा दिला रहा हूं।
- दिल्ली बार्डर पर जमा किसानों को राज्यों में बांटकर देखा जा रहा है। कई दलों के नेता वहां जाकर उन्हें अपना समर्थन दे रहे?
- देखिये, यह आंदोलन पूरी तरह से राजनीतिक शक्ल ले चुका है। सब जानते हैं, किसी को बताने की जरूरत नहीं है कि यह कहां से यह संचालित हो रहा है। लेकिन, मानवता के नाते सभी किसान हमारे हैं। हमारे देश के लोगों के लिए अन्न पैदा करते हैं। मानवीय दृष्टिकोण अपनाते हुए हमने इन किसानों की चिकित्सा, सुविधा, खानपान, शौचालय और सोने आदि का प्रबंध करने को 750 अधिकारियों व कर्मचारियों की व्यवस्था की है। पुलिस अलग से है। इनकी सहायता करना हमारी जिम्मेदारी है। कोरोना का समय है। हमें डर है कि कहीं कोई दिक्कत न घेर ले। हम लोगों को जागरूक कर रहे हैं। उन्हें मास्क व दवाइयां भी बांट रहे हैं। यह किसानों को समझना होगा कि उनके हित तीन कृषि कानूनों में ही समाहित हैं।
- पहले किसान एमएसपी की गारंटी की मांग कर रहे थे, अब तीनों कृषि कानून रद करने की जिद पर अड़े हैं?
- हमारी सरकार किसानों को समझाने में लगी है। हरियाणा में जब हमने सत्ता संभाली थी, तब 2015 में फसल खराबे का इतना पैदा किसानों को दिया, जितना 48 साल के इतिहास में नहीं मिल पाया। फल व सब्जियों के नुकसान की भरपाई के लिए उन्हें भावांतर भरपाई योजना में शामिल किया। पानी बचाने को 80 हजार एकड़ जमीन में किसान धान की फसल बोने से पीछे हट गए। उन्हें आर्थिक मदद दी गई। हमने कोरोना में 400 मंडियों को बढ़ाकर 1800 कर दिया। भारतीय खाद्य निगम सिर्फ धान व गेहूं की फसल की ही खरीद करता है। हरियाणा सरकार सरसों, बाजरा, मूंग, मूंगफली व सूरजमुखी की फसल एमएसपी पर खरीदती है। हरियाणा में बाजरा 2150 रुपये के एमएसपी पर खरीदा जाता है। राजस्थान व पंजाब में इसका रेट 1200 से 1300 रुपये क्विंटल है। इसलिए किसानों को समझना होगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या मुख्यमंत्री मनोहर लाल उनके अहित क्यों होने देंगे। इसमें उनका क्या भला है।
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- अगर वास्तव में यह कृषि बिल किसानों के हित में हैं तो दूसरे राजनीतिक दल इनका विरोध क्यों करेंगे?
- हम हरियाणा के प्रगतिशील किसानों व किसान उत्पादक संघों को कह रहे हैं कि वह किसानों को इन बिलों के फायदे बताएं। पार्टी कार्यकर्ताओं व सरकार के लोगों की भी जिम्मेदारी लगाई गई है। हरियाणा के किसान इन कानून से खुश हैं। कुछ ही किसान ऐसे हैं, जो कांग्रेस के बहकावे में आ रहे हैं। इस देश का इतिहास रहा है कि भाजपा ने जब-जब अच्छा काम किया, तब तक दूसरे दलों ने उसका बिना वजह विरोध किया। प्रधानमंत्री बीमा योजना की व्यवस्था 30 साल से लटकी हुई थी। मोदी ने लागू की तो पूरा विपक्ष इकट्ठा हो गया। नागरिकता संशोधन कानून और धारा 370 हटाने के बाद फिर विरोध किया गया। अब कृषि कानून सबके सामने हैं। इन सब दलों को लगता है कि देश में कोई प्रभावी नेतृत्व जम गया तो इनकी दुकानें बंद होने लगी हैं। इसलिए वे इकट्ठा होकर विरोध करने लगते हैं।
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खास बातें
- तीन कृषि कानूनों के विरोध पर मनोहर लाल ने विरोधी राजनीतिक दलों को लिया निशाने पर।
- कहा- तीनों कानून लागू होने से हरियाणा के किसान खुश, लेकिन बाकियों को कांग्रेस कर रही गुमराह।
- बोले- बार्डर पर जमा किसान हमारे लिए उपजाते हैं अन्न, इसलिए उनकी सेवा करना हमारा धर्म।
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