चिंतन शिविर में भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने सौंपी रिपोर्ट, हरित क्रांति के बाद अब एवरग्रीन रिवोल्यूशन लाना चाहती है कांग्रेस
कांग्रेस के चिंतन शिविर में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने खेती व किसानी पर रिपोर्ट सौंपी। रिपोर्ट में कहा गया है कि किसानों को कर्ज माफी से कर्ज मुक्ति तक लेकर जाना कांग्रेस का लक्ष्य है। कर्ज न चुका पाने पर जमीन की नीलामी नहीं होनी चाहिए।
राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। राजस्थान के उदयपुर में आयाेजित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नव-संकल्प चिंतन शिविर के दूसरे दिन पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा की अध्यक्षता में किसान और खेती विषय पर गठित कमेटी ने अपनी रिपोर्ट सौंप दी। हुड्डा ने कहा कि देश में किसानों के लिए हरित क्रांति लाने वाली कांग्रेस अब उनके लिए एवरग्रीन रिवोल्यूशन (सदाबहार क्रांति) लाना चाहती है।
शिविर के बाद पत्रकारों से बातचीत में रिपोर्ट के अहम बिंदुओं को साझा करते हुए हुड्डा ने कहा कि कमेटी ने किसानों की वर्तमान स्थिति में सुधार करने, उसके उत्पादन और आय में वृद्धि करने के विषय पर विस्तृत चर्चा की है। इस संबंध में देश भर के किसान संगठनों के सुझाव लिए गए।
किसानों की कर्ज माफी से उन्हें कर्ज मुक्ति तक पहुंचाना कांग्रेस का लक्ष्य है। सिर्फ कांग्रेस शासित राज्यों में किसानों को कर्ज माफी का लाभ मिला है। राजस्थान की कांग्रेस सरकार ने किसानों के 15 हजार 602 करोड़, मध्यप्रदेश में 11 हजार 912 करोड़ रुपये, पंजाब में 4696 करोड़ रुपये और कर्नाटक में 22 हजार 548 करोड़ रुपये के कर्ज माफ किए गए हैं।
पार्टी के चिंतन शिविर में यह सुझाव भी आया कि राष्ट्रीय किसान ऋण राहत आयोग का गठन किया जाए। अगर कोई किसान अपना कर्ज चुकाने में सक्षम न हो सके तो उसकी जमीन की नीलामी नहीं होनी चाहिए। न ही उस पर आपराधिक मुकदमा चलना चाहिए।
खेती-किसानी को भी इंडस्ट्री की तरह बैंकिंग रियायतों का लाभ मिले। हुड्डा ने कहा कि कांग्रेस में किसानों को एमएसपी की कानूनी गारंटी देने पर आम सहमति है। स्वामीनाथन आयोग के सी2 फार्मूले के तहत न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलना चाहिए।
मुख्यमंत्रियों के वर्किंग ग्रुप का चेयरमैन होने के नाते भी उन्होंने यही सिफारिश की थी। एमएसपी को चंद फसलों तक सीमित न रखकर हर फसल पर लागू करना होगा। किसानों को उसकी लागत पर लाभकारी मूल्य देने के साथ लागत पर नियंत्रण के लिए भी कदम उठाने होंगे। सीएसीपी का फार्मूला बदलने की जरूरत है।
अधिक प्रीमियम ले रहीं बीमा कंपनियां
रिपाेर्ट में कहा गया है कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत बीमा कंपनियां प्रीमियम ज्यादा ले रही हैं और किसानों को मुआवजा कम दिया जा रहा है। अगर किसानों को लाभ पहुंचाना है तो फसल बीमा का काम पब्लिक सेक्टर की कंपनियों को सौंपना होगा जो नो प्रोफिट, नो लास के माडल पर काम करें।
सरकारी स्तर पर भी किसान, भूमिहीन किसान और गरीब लोगों को मिलने वाली आर्थिक मदद 2020-21 में 7.07 लाख करोड़ से घटकर 2021-22 में 4.33 लाख करोड़ और 2022-23 में 3.18 लाख करोड़ रह गई। इसी तरह फूड सब्सिडी 2020-21 में पांच लाख 41 हजार 330 करोड़ से घटकर दो लाख 86 हजार 469 करोड़ रुपये रह गई है। 31 मार्च 2014 में किसानों पर जो कर्ज 9.64 लाख करोड़ रुपये था, वो अब बढ़कर 16.80 लाख करोड़ रुपये हो गया है।