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गांधी परिवार के नजदीक रहे भूपेंद्र सिंह हुड्डा विरोधी अशोक तंवर खेलेंगे नई राजनीतिक पारी

कभी कांग्रेेेस परिवार के नजदीकी रहे हरियाणा कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अशोक तंवर अब नई राजनीतिक पारी खेलेंगे। भूपेंद्र सिंह हुड्डा के साथ राजनीतिक मतभेदों के कारण तंवर विधानसभा चुनावों से ठीक पहले कांग्रेस से अलग हो गए थे।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Tue, 23 Feb 2021 05:20 PM (IST)Updated: Wed, 24 Feb 2021 09:50 AM (IST)
गांधी परिवार के नजदीक रहे भूपेंद्र सिंह हुड्डा विरोधी अशोक तंवर खेलेंगे नई राजनीतिक पारी
कांग्रेस के हरियाणा अध्यक्ष रहे अशोक तंवर की फाइल फोटो।

जेएनएन, चंडीगढ़। देश की राजनीति में कभी गांधी परिवार के नजदीकी रहे और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के धुर विरोधी डा. अशोक तंवर अपना अलग राजनीतिक दल बनाएंगे। इसकी शुरुआत 25 फरवरी को हरियाणा, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, दिल्ली, पंजाब, राजस्थान, उत्तराखंड और हिमाचल समेत करीब एक दर्जन राज्यों से मोर्चे के गठन के रूप में होगी। कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव, यूथ कांग्रेस के प्रभारी और हरियाणा कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके पूर्व सांसद अशोक तंवर नवगठित मोर्चे के जरिये अपनी राजनीतिक गतिविधियों को अंजाम देंगे।

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सिरसा से सांसद रह चुके अशोक तंवर हरियाणा को अपनी कर्मभूमि बनाएंगे। 25 फरवरी को नई दिल्ली में अशोक तंवर वीडियो कान्फ्रेंसिंग के जरिये मोर्चे के गठन का ऐलान करेंगे। उनकी धर्मपत्नी अवंतिका माकन तंवर इस दिन चंडीगढ़ में रहेंगी। देश के करीब चार दर्जन बड़े शहरों में तंवर अपने कार्यकर्ताओं से रूबरू होकर मोर्चे की शुरुआत करेंगे।

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तंवर ने मोर्चा बनाने का फैसला अचानक नहीं लिया। इसके लिए उन्होंने कांग्रेस छोड़ने के बाद से प्रदेश भर में माहौल बनाना शुरू कर दिया था। 2019 के विधानसभा चुनाव के दौरान अभय सिंह चौटाला, दुष्यंत चौटाला और कुछ भाजपा नेताओं ने तंवर को अपने साथ जोड़ने की पूरी कोशिश की। तंवर ने चाय सबकी पी, लेकिन आखिर में अकेले ही अपने कार्यकर्ताओं के बूते राजनीतिक लड़ाई लड़ने का अहम निर्णय लिया है।

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पांच साल आठ माह तक हरियाणा कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके अशोक तंवर और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के बीच विवाद तब शुरू हुआ था, जब 2014 के चुनाव में तंवर की पसंद के उम्मीदवारों की अनदेखी की गई। 2019 में भी चुनाव से पहले ऐसे ही हालात बने, जिस कारण उन्हें कांग्रेस को अलविदा कहना पड़ा। कांग्रेस छोड़ने के बाद तंवर ने तत्कालीन पार्टी प्रभारियों पर खूब आरोप लगाए थे। तंवर दलित समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं, लेकिन हर वर्ग में उनके समर्थक हैं। हरियाणा कांग्रेस की अध्यक्ष बनने के बाद कु. सैलजा ने तंवर को पार्टी में लाने की कोशिश की, लेकिन कामयाबी नहीं मिल पाई। इस दौरान तंवर के प्रदेशव्यापी दौरे और जिलों में जलपान कार्यक्रम चलते रहे।

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पूर्व सांसद डा. अशोक तंवर का कहना है कि सरकार बहरी और विपक्ष गूंगा हो चुका है। लिहाजा उन्होंने जनता की आवाज उठाने के लिए मोर्चे के जरिये राजनीतिक गतिविधियां शुरू करने का निर्णय लिया है। प्रदेश भर से कार्यकर्ता चाहते थे कि लोगों को एक मजबूत राजनीतिक विकल्प दिया जाए। 25 फरवरी को मुख्य कार्यक्रम दिल्ली व चंडीगढ़, पंजाब, उतराखंड व उतर प्रदेश में आयोजित किए जाएंगे। इसी दिन मोर्चे के नाम का ऐलान होगा। तंवर के विरोध के चलते 2019 के चुनाव में कांग्रेस को खासा राजनीतिक नुकसान झेलना पड़ा था।

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कांग्रेस से अलग होकर बनाए जा चुके पांच राजनीति दल

हरियाणा के मुख्यमंत्री रह चुके स्व. देवीलाल ने 1971 में कांग्रेस छोड़ दी थी। देवीलाल ने 1982 में लोकदल की स्थापना की। हरियाणा के पूर्व सीएम बंसीलाल ने हरियाणा विकास पार्टी बनाई, जबकि पूर्व सीएम भजनलाल और उनके बेटे कुलदीप बिश्नोई ने हरियाणा जनहित कांग्रेस बनाई थी। पूर्व केंद्रीय मंत्री विनोद शर्मा और पूर्व मंत्री निर्मल सिंह ने भी अलग पार्टियां बनाई। इसके अलावा राज्य में पूर्व मंत्री गोपाल कांडा की हरियाणा लोकहित पार्टी और पूर्व राज्यसभा सदस्य केडी सिंह की तृणमूल कांग्रेस भी यहां है।


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