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संस्मरणः इतने उदार हृदय के थे अटल बिहारी वाजपेयी जी...

अटल बिहारी वाजपेयी जी के बारे में हरियाणा के कृषि मंत्री ओमप्रकाश धनखड़ ने अपना संस्मरण सुनाया।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Thu, 16 Aug 2018 06:33 PM (IST)Updated: Thu, 16 Aug 2018 08:50 PM (IST)
संस्मरणः इतने उदार हृदय के थे अटल बिहारी वाजपेयी जी...
संस्मरणः इतने उदार हृदय के थे अटल बिहारी वाजपेयी जी...

अटल बिहारी वाजपेयी जी के बारे में हरियाणा के कृषि मंत्री ओमप्रकाश धनखड़  ने अपना संस्मरण सुनाया। कहा

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भारत के किसान का ब्याज का बोझ कम करने का श्रेय अटल जी को ही जाता है। बकौल ओमप्रकाश, पहली बार मुझे प्रधानमंत्री निवास पर मंच संचालन का मौक़ा मिला। 500 किसान फसली ऋण का ब्याज पहली बार 18 से 9 फीसद करने पर उनका धन्यवाद करने पहुंचे थे। किसानों के लिए क्रेडिट कार्ड भी उन्होंने शुरू किया। देश का किसान उनको किसान क्रेडिट कार्ड देने वाले प्रधानमंत्री के रूप मे सदैव याद रखेगा। वर्तमान फसल बीमा के विचार उनके युग में शुरू हुआ। किसानों ने तालकटोरा स्टेडियम में हजारों की संख्या में आकर उनका आभार जताया था।

भाजपा कार्यालय अशोक रोड पर केंद्रीय पदाधिकारियों की बैठक हुई। बैठक में तत्कीलन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी उपस्थित थे। पहले दिन शाम यूरिया के पांच रुपये प्रति बैग भाव बढ़ाए गए थे। औपचारिक विषय पूरे होने पर वैकेया नायडू ने पूछा किसी ने कुछ और कहना है। मैंने कहा, कल यूरिया के दाम बढ़े हैं किसानो पर बोझ बढ़ गया है। किसान इससे खुश नहीं हैं और इसे वापस चाहते हैं। संघप्रिय  गौतम जी ने भी मेरी बात का समर्थन किया बैठक समाप्त हो गई।

वैकेया नायडू ने मुझे अपने कक्ष में बुलाया, डांटते हुए पूछा आपने ये विषय क्यों उठाया? मैंने सहजता से कहा अापने ही कहा, किसी ने कुछ तात्कालिक विषय पर कुछ कहना है तो कहे, तभी किसानो से जो जानकरी मिली वो कहा। उन्होंने कहा, प्रधानमंत्री को लगेगा मैंने तुम्हें कहने को कहा है, क्योंकि रास्ते मैंने उनसे यही निवेदन किया था। शाम को यूरिया के बढ़े भाव वापस हो गए।

प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना बोर्ड भी सदैव उनकी याद कराते रहेंगे। गांव की सड़कों के लिए पैसे देने वाले वो भारत के पहले प्रधानमंत्री थे। वाजपेयी जी द्वारा कारगिल युद्ध के समय जवानों को दिए सम्मान व परिवारों को दी सहायता को कौन भुला सकता है। वो सच्चे अर्थों मे जय जवान जय किसान कर रहे थे।

सब रस के वक्ता

पूर्व प्रधानमंत्री अटल वाजपेयी वाजपेयी के प्रधानमंत्री काल में वेंकैया नायडू की अध्यक्षता में पार्टी के राष्ट्रीय सचिव के रूप में कार्य करने का मौक़ा मिला। मेरे अब तक के जीवन काल के वो सर्वश्रेष्ठ वक्ता थे। उनके भाषण में कविता के समान ही सब रस होते थे हास्य, रौमांच, करूणा, वेदना, वीरता। लखनऊ में उनके राष्ट्रीय परिषद की बैठक में हुए भाषण की चर्चा समाचार पत्रों ने ऐसे ही की थी, उनके भाषण में सब रस थे।

थाह नही पा सकते

उनकी गहराई की थाह पाना संभव नहीं था। अाप अपनी बात रख सकते थे। ध्यान से सुन लिया यही सबके लिए पर्याप्त था। हम हरियाणा भाजपा की टीम चौटाला से गठबंधन में 35 सीटें मिले इसका तर्क लेकर प्रधानमंत्री निवास गए। रामबिलास, मनोहर लाल व ओमप्रकाश ग्रोवर के साथ पक्ष रखने का दायित्व मुझ पर था। मैंने सब बातों को विस्तार से उनकी सीट के साथ खड़े होकर रखा। सब बातों को सुनने के बाद उन्होंने ऊपर मेरी ओर देखा और बस इतना कहा बड़ी तैयारी से आए हो।

सत्य कभी एक तरफ़ा नही होता

उनकी सबसे बड़ी खूबी यही थी कि वह जीवन के इस सत्य को बख़ूबी जानते थे कि सत्य कभी एकतरफा नहीं होता। आप जो भी पक्ष रखते हैं वो उसका दूसरा पक्ष सहजता से सामने रख देते थे। क़िस्सा तब का है जब चौटाला की सरकार बनी। हम हरियाणा भाजपा टीम, कुछ तकलीफें बताने प्रधानमंत्री कार्यालय गए। उन्होंने सहजता से कहा जिन राज्यों में भजपा शासित सरकारें हैं वहां के अन्य दल आप जैसी ही शिकायतें लेकर आते हैं।

हंसते हंसते सब कहने का कौशल

बंशीलाल जी की सरकार से समर्थन वापस लेने के बाद हम तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के निवास पर उनसे मिलने गए। रामबिलास ने समर्थन वापसी की कथा कही। उन्होंने हंसते हुए कहा गिरा तो सकते हो पर अपनी चला भी सकते हो ? प्रधानमंत्री से निवृत होने के बाद उनके प्रीणी मनाली स्थित निवास पर जगत प्रकाश नड्डा, मनोहर लाल और मैं मिलने गए। मनोहर लाल ने कहा ऐसे छुट्टी के माहौल में पहली बार मिल रहे हैं। उन्होंने हंसते हुए कहा हां बस अब हो गई छुट्टी।

आत्मनेतृत्व व शाश्वत नेतृत्व

पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की तीन तीन दिन की बैठके होती थी। वाजपेयी जी हर शब्द ध्यान से सुनते थे, कोई प्रतिक्रिया नहीं देते थे। आख़िरी पैंतीस चालीस मिनट का उदबोद्धन इस वाक्य से प्रारंभ होता, ज़ोरदार चर्चाएं हुई हैं, शेष उदबोद्धन किसी अन्य उच्च धरातल पर होता। आज भले ही अटल जी का शरीर नहीं रहा, परंतु उनकी कविता व उद्बोधनों के रूप में, नेतृत्व शाश्वत रहेगा। सदियों तक पीढ़ियों का मार्गदर्शन करता रहेगा ।

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