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अशोक खेमका के निशाने पर अब आई सीबीआइ, बजट और कार्यप्रणाली पर उठाए सवाल

हरियाणा के चर्चित आइएएस अफसर अशोक खेमका ने अब सीबीआइ पर निशाना साधा है। उन्‍होंने सीबीआइ की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाया है।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Mon, 31 Aug 2020 01:42 PM (IST)Updated: Mon, 31 Aug 2020 05:54 PM (IST)
अशोक खेमका के निशाने पर अब आई सीबीआइ, बजट और कार्यप्रणाली पर उठाए सवाल
अशोक खेमका के निशाने पर अब आई सीबीआइ, बजट और कार्यप्रणाली पर उठाए सवाल

चंडीगढ़, [सुधीर तंवर]। हरियाणा के चर्चित आइएएस अशोक खेमका ने फिर ट्वीट बम फोड़ा है। इस बार उन्होंने निशाने पर लिया है देश की सबसे बड़ी सबसे जांच एजेंसी केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआइ) को। पूर्व में मुख्य सतर्कता आयुक्त (सीवीसी), मुख्य सूचना आयुक्त (सीआइसी), लोकपाल और लोकायुक्तों की भूमिका पर सवाल उठा चुके खेमका के ताजा ट्वीट के कई निहितार्थ हैं।

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ट्वीट कर पूछा, किसे सजा हुई, कौन बरी हुआ, किसे लटकाया, जवाबदेही कैसे तय हो

रिकॉर्ड 53 तबादलों के चलते सुर्खियों में रहने वाले 1991 बैच के आइएएस ने सीबीआइ की कार्यप्रणाली और उसके सालाना बजट पर सवाल उठाए हैं। सोमवार सुबह उन्होंने ट्वीट किया कि 'सीबीआइ का सालाना बजट 800 करोड़ रुपये। किसे सजा हुई, कौन बरी हुआ, किसे लटकाया, जवाबदेही कैसे तय हो? पिछले सालों का ही हिसाब कर लो। किस बड़े आदमी की सजा हुई? हाथी के दांत दिखाने के कुछ और खाने के कुछ और होते हैं।'

ट्वीट में लिखा, पिछले सालों का ही हिसाब कर लो, हाथी के दांत दिखाने के कुछ और खाने के कुछ और

दो दिन पहले भी खेमका ने भ्रष्टाचार पर तंज कसते हुए ट्वीट किया था कि 'कभी-कभी किसी अधिनियम को पूर्वव्यापी प्रभाव से संशोधित करके भ्रष्टाचार की निंदा की जाती है। भ्रष्टाचार के सिस्टम को विकास की नींव पर विकसित किया जाता है। कुछ भ्रष्ट लोग वास्तव में धन्य हैं।'

इसी तरह अंतरराष्ट्रीय भ्रष्टाचार विरोधी दिवस पर सवाल उठाते हुए खेमका ने ट्वीट किया था कि राज्य स्तरीय आयोजन करने से भ्रष्टाचार खत्म नहीं होगा। इसी आयोजन पर कितना पैसा खर्च हुआ, यही पता लगा लें तो भ्रष्टाचार का पता लग जाएगा। अभिलेखागार, पुरातत्व एवं संग्रहालय विभाग के प्रमुख सचिव अशोक खेमका सोशल मीडिया को सरकारी तंत्र पर चोट और भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने का हथियार बनाते रहे हैं।

मुख्य सतर्कता आयुक्त (सीवीसी), मुख्य सूचना आयुक्त (सीआइसी), लोकपाल और लोकायुक्तों की भूमिका पर सवाल उठाते उनके ट्वीट ने खूब सुर्खियां बटोरी थी। उनके मुताबिक इन संवैधानिक संस्थाओं से भ्रष्ट लोगों की कंपकंपी छूटनी चाहिए। इन संस्थाओं में सेवानिवृत्त लोगों को आसीन कर इन्हेंं दायित्वहीन क्यों किया जा रहा है। उन्होंने पूछा कि कितने भ्रष्ट लोगों को दोषी ठहराया जाता है? कितने भ्रष्टाचारी छूट जाते हैं और कितने निर्दोषों को परेशान किया जाता है?


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