इस सिस्टम से रुकेगी पुलिस केस में सुबूतों से छेड़छाड़, परीक्षण तक की प्रक्रिया होगी फुल प्रूफ
आपराधिक मामलों में साक्ष्यों की सुरक्षा के लिए फोरेसिंक एविडेंस मैनेजमेंट सिस्टम शुरू होगा। इससे वारदात स्थल से लेकर लेबोरेट्री और परीक्षण तक की प्रक्रिया फुल प्रूफ होगी।
जेएनएन, चंडीगढ़। पुलिस द्वारा जुटाए गए साक्ष्यों को अपराध स्थल से लेकर फोरेसिंक साइंस लेबोरेट्री और उनके परीक्षण तक की प्रक्रिया को फुल प्रूफ करने की तैयारी है। मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने फोरेसिंक एविडेंस मैनेजमेंट सिस्टम के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। इस सिस्टम से न केवल पुलिस कार्यप्रणाली में पारदर्शिता आएगी, बल्कि साक्ष्यों की गोपनीयता को बरकरार रखते हुए परिणाम में होने वाली देरी का सिलसिला भी खत्म होगा।
इसके लिए फोरेसिंक साइंस लेबोरेट्री (एफएसएल) और क्षेत्रीय फारेंसिक लेबोरेट्री में दस्ती किए जाने वाले काम को सॉफ्टवेयर आधारित बारकोड सिस्टम के माध्यम से किया जाएगा। इससे पूरी प्रक्रिया पारदर्शी होगी। एफएसएल मधुबन के निदेशक ने इस संबंध में प्रस्ताव पुलिस महानिदेशक के मार्फत प्रदेश सरकार को भेजा था। वर्तमान में एफएसएल में साक्ष्यों की गोपनीयता को दस्ती प्राप्त किया जाता है। इसके बाद सैंपल लेने के बाद इसे परीक्षण तक भेजने की पूरी प्रक्रिया में शामिल लोगों को एफआइआर का नंबर, पुलिस थाने का नाम, जांच अधिकारी और आपराधिक मामले के इतिहास की जानकारी होती है।
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सुबूतों की गोपनीयता को बरकरार रखने तथा संदेह की परिस्थिति को दरकिनार करते हुए पारदर्शिता लाने के लिए पूरी व्यवस्था में गोपनीयता स्थापित करना जरूरी है। सैंपल लेने से रिपोर्ट आने तक गोपनीयता बनाए रखने के लिए पुलिस अफसरों ने नए सिस्टम की वकालत की थी। एफएसएल संस्थानों में सॉफ्टवेयर आधारित बारकोड सिस्टम शुरू किए जाने से पूरी प्रक्रिया में किसी भी प्रकार की मिलीभगत की गुंजाइश नहीं बचेगी। इसके अलावा प्रत्येक सैंपल की निर्धारित अवधि में ही जांच पूरी करने में भी मदद मिलेगी।
बाहरी हस्तक्षेप होगा बंद : जैन
मुख्यमंत्री के मीडिया सलाहकार राजीव जैन का कहना है कि प्रदेश में फोरेसिंक एविडेंस मैनेजमेंट सिस्टम शुरू करने के प्रस्ताव को मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने मंजूरी दे दी है। इस व्यवस्था से साक्ष्यों की गोपनीयता बनाए रखने तथा बाहरी हस्तक्षेप की संभावना को खत्म किया जाएगा। सैंपल निर्धारित अवधि में परीक्षण की प्रक्रिया से गुजरेंगे। इससे न केवल साक्ष्यों की पुष्टि की प्रक्रिया में पारदर्शिता आएगी, अपितु मिलीभगत जैसी संभावनाओं का रास्ता बंद होगा।
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