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    क्या है राइट टू रिकॉल, हरियाणा में क्यों उठने लगी इसकी मांग? 25 सितंबर को दादा की आवाज बुलंद करेंगे अभय चौटाला

    Updated: Thu, 18 Sep 2025 07:36 PM (IST)

    इनेलो प्रमुख अभय चौटाला पूर्व उप प्रधानमंत्री स्व. देवीलाल की जयंती पर राइट टू रिकाल की मांग करेंगे। राइट टू रिकॉल के अंतर्गत जनप्रतिनिधियों को कार्यकाल से पहले हटाने का प्रावधान है यदि वे जनता की उम्मीदों पर खरे नहीं उतरते। अभय चौटाला ने अपने दादा की इस मांग को पूरा करने का बीड़ा उठाया है। उनका कहना है कि इससे झूठे वादे करने वाले नेताओं पर लगाम लगेगी।

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    दादा की बरसों पुरानी ‘राइट टू रिकाल’ की आवाज बुलंद करेंगे अभय चौटाला (फाइल फोटो)

    राज्य ब्यूरो,  चंडीगढ़। पूर्व उप प्रधानमंत्री स्व. देवीलाल की जयंती पर 25 सितंबर को रोहतक में होने वाली सम्मान दिवस रैली में इनेलो प्रमुख अभय सिंह चौटाला ‘राइट टू रिकॉल’ की मांग करेंगे। इसके लिए संविधान में संशोधन किए जाने का सुझाव है।

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    ‘राइट टू रिकॉल’ के अंतर्गत ऐसे जनप्रतिनिधियों को उनका कार्यकाल पूरा होने से पहले ही पद से हटाने का प्रविधान है, जो जनता की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरते अथवा उनके किए गए वादों को पूरा नहीं कर पाते। स्व. देवीलाल ने अपने कार्यकाल के दौरान यह आवाज उठाई थी कि जो भी विधायक या सांसद जनता से किए वादों पर खरा नहीं उतरता और विधायक या सांसद बनने के बाद जनता की अनदेखी करता है तो उसके खिलाफ संविधान में संशोधन कर ‘राइट टू रिकॉल’ लागू होना चाहिए।

    अपने दादा की इस मांग को अब अभय सिंह चौटाला ने पूरा कराने का बीड़ा उठाया है। अपनी आवाज को बुलंद करने के लिए उन्होंने ताऊ देवीलाल के जयंती समारोह के मंच को ही चुना है। स्व. देवीलाल हरियाणा के मुख्यमंत्री भी रहे हैं।

    साल 1995 से ब्रिटिश कोलंबिया और कनाडा विधानसभाओं ने मतदाताओं को ऐसा अधिकार दे रखा है। अमेरिका के जॉर्जिया, अलास्का और कैन्सास राज्यों में भी ऐसी व्यवस्था है। वाशिंगटन और रोड द्वीपों में ऐसी प्रक्रिया का संचालन किसी प्रतिनिधि के बुरे आचरण या अपराध में संलिप्त होने पर किया जाता है।

    जेपी नारायण ने की थी इस फॉर्मूले की वकालत

    भारत में साल 1974 में जयप्रकाश नारायण ने भी इस फार्मूले की वकालत की थी। छत्तीसगढ़ राज्य के नगर पालिका अधिनियम के भाग 47 में किसी प्रतिनिधि के कसौटी पर खरे नहीं उतरने की स्थिति में उसके निष्कासन हेतु चुनाव कराने का प्रविधान है। ऐसा प्रविधान मध्यप्रदेश और बिहार के स्थानीय निकायों में भी मिलता है।

    लोकसभा के तत्कालीन अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी ने जन प्रतिनिधियों को उत्तरदायी बनाने हेतु ‘राइट टू रिकॉल‘ शुरू करने की बात कही थी। 2011 में गुजरात के चुनाव आयोग ने भी स्थानीय निकायों के लिए ऐसी प्रथा शुरू करने का प्रस्ताव रखा था। भारतीय जन प्रतिनिधित्व कानून 1951 में किसी प्रकार के आपराधिक कृत्य में संलिप्त होने पर पदमुक्त किए जाने का प्रविधान है, परंतु इसमें प्रतिनिधियों के बुरे प्रदर्शन या निर्वाचक वर्ग के असंतुष्ट होने पर उसे पदमुक्त करने की व्यवस्था नहीं है।

    साल 1974 में सीके चंद्रप्पन ने निर्वाचित प्रतिनिधियों को वापस बुलाने के मतदाताओं के अधिकार के संबंध में लोकसभा में एक संविधान (संशोधन) विधेयक पेश किया था, जिसका अटल बिहारी वाजपेयी ने समर्थन किया, हालांकि बिल पारित नहीं हुआ था।

    पूर्व उप प्रधानमंत्री स्व. देवीलाल ने यह कानून सांसदों और विधायकों पर लागू करने की मांग की थी, जिसे अब उनके पोते अभय चौटाला पूरी मजबूती से उठाने में लगे हैं।

    पहले ही साल कसौटी पर परखे जाएं जनप्रतिनिधि के वादे

    अभय चौटाला इनेलो के राष्ट्रीय अध्यक्ष अभय चौटाला ने कहा कि स्व. राइट टू रिकॉल लागू होने से जनता किसी भी ऐसे प्रतिनिधि को, जो पहले एक साल में कसौटी पर खरा नहीं उतरता, उसे उसके पद से वापस बुला सकती है और अपने लिए दूसरा प्रतिनिधि चुन सकती है।

    राइट टू रिकॉल लागू होने से कोई भी राजनीतिक दल या उम्मीदवार जनता से झूठे वादे नहीं कर सकेगा और अपना पद गंवाने के डर से समर्पित भाव से जनता की भलाई के लिए काम करेगा। चुनाव जीतने के लिए जनप्रतिनिधियों द्वारा झूठे वादे भी नहीं किए जाएंगे। सरकारी लूट खसोट और भ्रष्टाचार पर पूर्णरूप से लगाम लगती नजर आएगी। युवाओं को अच्छी शिक्षा और रोजगार मिलेगा। कानून व्यवस्था मजबूत होगाी।