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दर्दभरी संघर्षगाथा, हाथ कटे तो सुनील के मां-बाप ने छोड़ा साथ, हरियाणा राजभवन में राज्यपाल प्रतिभा देख रह गए दंग

हरियाणा के राजभवन में पैरों से टाइपिंग करते सुनील को देख राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय के कदम एकदम ठहर गए। हाथ कटने के कारण सुनील को बचपन में ही मां-बाप छोड़कर चले गए थे। उसने संघर्ष किया और मुकाम हासिल किया।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Sun, 25 Jul 2021 01:51 PM (IST)Updated: Mon, 26 Jul 2021 10:04 AM (IST)
दर्दभरी संघर्षगाथा, हाथ कटे तो सुनील के मां-बाप ने छोड़ा साथ, हरियाणा राजभवन में राज्यपाल प्रतिभा देख रह गए दंग
हरियाणा के राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय राजभवन में पैरों से टाइप कर रहे सुनील कुमार से बातचीत करते हुए। जागरण

राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। दिल में कुछ कर गुजरने की तमन्ना हो तो बड़ी से बड़ी बाधाएं भी रास्ता नहीं रोक सकती। इसका सबसे बड़ा उदाहरण हरियाणा के राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय के स्टाफ में कार्यरत दोनों हाथों से दिव्यांग सुनील कुमार हैं, जो कंप्यूटर पर अपने पैरों की अंगुलियों से हिंदी व अंग्रेजी में टाइप करते हैं। करीब 32 साल के सुनील की टाइपिंग स्पीड भी गजब है। राज्यपाल ने राजभवन कार्यालय के निरीक्षण के दौरान जब दिव्यांग सुनील कुमार को कंप्यूटर पर पैरों की अंगुलियों से टाइप करते देखा तो वह हैरान रह गए। राज्यपाल सुनील के पास रुके और करीब 10 मिनट तक उसके साथ बातचीत की।

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सुनील कुमार के जीवन संघर्ष की कहानी किसी बालीवुड की फिल्म कहानी से कम नहीं है। उसे अपने माता-पिता के बारे में कोई जानकारी नहीं है। सुनील ने बचपन में ठीक से होश भी नहीं संभाला था कि तीन-चार साल की उम्र में उसे बिजली का करंट लग गया। करंट लगने के कारण दोनों हाथ जल गए। सुनील को गंभर हालत में पीजीआइ चंडीगढ़ में इलाज के लिए भर्ती कराया गया। तब सुनील के बचने की संभावना न के बराबर थी। उसके माता-पिता सुनील को अपने ऊपर बोझ समझकर पीजीआइ में ही छोड़कर चले गए। डाक्टरों के अथक प्रयासों से सुनील की जान तो बचा ली गई, लेकिन कंधे तक दोनों हाथ काटने पड़े। बाजुओं के घाव ठीक होने तक सुनील कुमार को पीजीआइ में ही भर्ती रखा गया।

इसके बाद शुरू हुआ सुनील के जीवन संघर्ष का नया अध्याय। पीजीआइ चंडीगढ़ की अनुशंसा पर साकेत संस्था ने सुनील कुमार को गोद ले लिया। साकेत संस्था हरियाणा राजभवन के अंतर्गत काम करती है। सुनील को साकेत के छात्रावास में ही रखा गया। उसकी स्कूली शिक्षा भी साकेत हाई स्कूल में हुई। स्कूली शिक्षा के दौरान साकेत के भीतर पेंटिंग की ललक पैदा हुई। वह अपने पैरों से पेंटिंग करने लगा। लगातार प्रयास के चलते सुनील की पेंटिंग विधा निखरती चली गई। एक दिन ऐसा भी आया, जब सुनील की पहचान बेहतरीन फुट आर्टिस्ट के रूप में होने लगी। 2007 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने सुनील को ‘बेस्ट क्रिएटिव चाइल्ड’ के अवार्ड से नवाजा। इस हौसले के बाद फिर सुनील ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

स्थाई रोजगार हासिल करने के लिए सुनील को खासा संघर्ष करना पड़ा। उसने अपने पैरों की अंगुलियों से टाइप करना सीखा। टाइप सीखने के बाद सुनील को साकेत संस्था ने आउटसोर्सिंग के माध्यम से अपने यहां नौकरी दे दी। हरियाणा राजभवन के अधिकारियों को जब सुनील की इस प्रतिभा का पता चला तो उसकी पोस्टिंग राजभवन कार्यालय में राज्यपाल के स्टाफ में कर दी गई।

राज्यपाल के सचिव अतुल द्विवेदी ने सुनील को बहुत प्रोत्साहित किया। अपने काम और अच्छे व्यवहार की बदौलत सुनील राजभवन में सभी का चहेता बन गया। यहां नौकरी करते हुए उसे करीब दो साल पूरे होने वाले हैं। पूर्व राज्यपाल सत्यदेव नारायण आर्य भी राजभवन में आयोजित एक कार्यक्रम में सुनील को पुरस्कृत कर प्रोत्साहित कर चुके हैं।

दिव्यांग लोगों के कल्याण के लिए करेंगे काम

हरियाणा के राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय का कहना है कि सुनील कुमार एक संघर्षशील, कर्मठ व कुशल कर्मचारी है। सुनील से मैंने बात की है। उसने बड़ी-बड़ी कठिनाइयों और परिस्थितियों को पार करते हुए कला और रोजगार के क्षेत्र में महत्वपूर्ण मुकाम हासिल किया है। यूं कह सकते हैं कि सुनील युवा पीढ़ी के साथ-साथ तमाम उन दिव्यांग लोगों के लिए प्रेरणा है, जो आगे बढ़ना चाहते हैं। मेरा प्रयास रहेगा कि हरियाणा रेडक्रास सोसायटी, राज्य बाल कल्याण परिषद, वाणी एवं श्रवण निशक्त जनकल्याण सोसायटी जैसी संस्थाओं के कार्यक्रमों तथा राज्य सरकार की विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं को हर वंचित व दिव्यांग व्यक्ति तक पहुंचाया जाए।


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