'लंबे समय तक कैद में रखना संविधान का उल्लंघन', दोहरे हत्याकांड के आरोपी की हाईकोर्ट ने मंजूर की जमानत अर्जी
पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने फरीदाबाद के 2019 के दोहरे हत्याकांड के आरोपी सुरजीत मौर्य को जमानत दे दी है। अदालत ने कहा कि लंबे समय तक कैद में रखना संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है, क्योंकि मुकदमा अभी तक पूरा नहीं हुआ है। सुरजीत 6 साल से अधिक समय से हिरासत में था।

लंबे समय तक कैद में रखना संविधान का उल्लंघन- हाईकोर्ट
राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने एक व्यक्ति को नियमित जमानत दे दी, जो फरीदाबाद में भारतीय दंड संहिता और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम की धाराओं के तहत दर्ज 2019 के दोहरे हत्याकांड से संबंधित केस में छह साल से अधिक समय से हिरासत में है।
सुरजीत उर्फ सुरजीत मौर्य की चौथी जमानत याचिका स्वीकार करते हुए जस्टिस सुमित गोयल की एकल पीठ ने कहा कि मुकदमा पूरा हुए बिना लंबे समय तक कैद में रखना संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत अभियुक्त को शीघ्र सुनवाई के अधिकार का उल्लंघन है।
अदालत ने कहा कि 26 जून 2019 से हिरासत में होने के बावजूद मुकदमा धीमी गति से आगे बढ़ा है और अब तक अभियोजन पक्ष के 34 गवाहों में से केवल 22 की ही जांच हुई है।
यह मामला 13 जून 2019 को फरीदाबाद की बड़वाली झील से पुलिस द्वारा दो शव बरामद करने के बाद दर्ज किया गया था। एक पुरुष और एक महिला के अवशेष पानी में तैरते बैग में पाए गए थे। विजय उर्फ चांदी, जिसने सबसे पहले शवों को देखा था, उसकी शिकायत पर एफआइआर दर्ज की गई थी।
कुछ दिनों बाद महिला के पिता ने पुलिस को लिखित शिकायत में सुरजीत का नाम दर्ज कराया। सुरजीत के वकील ने तर्क दिया कि मृतक महिला के साथ संदिग्ध संबंध के कारण उसे झूठा फंसाया गया है। वकील ने दलील दी कि मामला पूरी तरह परिस्थितिजन्य साक्ष्यों पर आधारित है और अभियोजन पक्ष के प्रमुख गवाहों से पहले ही पूछताछ हो चुकी है।
याचिका का विरोध करते हुए राज्य के वकील ने तर्क दिया कि आरोप गंभीर हैं और अपीलकर्ता जमानत का हकदार नहीं है। शिकायतकर्ता के परिवार के वकील ने भी आवेदन का विरोध करते हुए तर्क दिया कि महिला के पिता, माता और बहन की गवाही सीधे तौर पर सुरजीत को दोषी ठहराती है।
हालांकि, अदालत ने पाया कि ऐसी कोई भी सामग्री प्रस्तुत नहीं की गई, जिससे यह पता चले कि अपीलकर्ता फरार हो सकता है या साक्ष्यों में हस्तक्षेप कर सकता है। आरोपित तब तक निर्दोष तब जक दोष सिद्ध न होजस्टिस गोयल ने कहा कि प्रत्येक आरोपित को तब तक निर्दोष माना जाता है जब तक कि उसका दोष सिद्ध न हो जाए। साथ ही कहा कि इन परिस्थितियों में सुरजीत को विचाराधीन कैदी के रूप में आगे हिरासत में रखना उचित नहीं है।
सुरजीत ने इससे पहले तीन जमानत याचिकाएं दायर की थीं। पहली, अगस्त 2020 में खारिज कर दी गई थी। उसके बाद मार्च 2023 और जनवरी 2024 में वापस ले ली गईं। अदालत ने कहा कि मुकदमे में तेजी लाने के उसके पहले के निर्देश के बावजूद प्रगति धीमी रही है।
जमानत देते हुए अदालत ने सुरजीत को निर्देश दिया कि वह निचली अदालत की संतुष्टि के अनुसार जमानत बांड प्रस्तुत करे तथा साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ न करने, जमानत पर रहते हुए कोई अपराध न करने तथा बिना अनुमति के अपना फोन नंबर न बदलने जैसी शर्तों का पालन करे।

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