Ellenabad assembly by-election: ऐलनाबाद के रण में सियासी घमासान, दिग्गजों की साख दांव पर
Ellenabad assembly by-election ऐलनाबाद विधानसभा का उपचुनाव 30 अक्टूबर को होगा। यहां भाजपा-जजपा कांग्रेस व इनेलो की साख दांव पर लगी है। इनेलो की तरफ से अभय चौटाला कांग्रेस की ओर से पवन बेनीवाल व भाजपा-जजपा के प्रत्याशी गोबिंद कांडा हैं।
अनुराग अग्रवाल, चंडीगढ़। हरियाणा के सिरसा जिले की ऐलनाबाद विधानसभा सीट पर 30 अक्टूबर को होने वाला उपचुनाव धीरे-धीरे रोचक होता जा रहा है। इस उपचुनाव में कई बड़े राजनीतिक दिग्गजों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। इनेलो प्रमुख ओमप्रकाश चौटाला के जेल से बाहर आने के बाद उनकी देखरेख में हो यह पहला उपचुनाव हो रहा है। यहां ओमप्रकाश चौटाला के साथ-साथ इनेलो उम्मीदवार के रूप में उनके छोटे बेटे अभय सिंह चौटाला की साख दांव पर है।
अभय सिंह चौटाला की जीत या हार से किसान संगठनों के आंदोलन के प्रति लोगों के रुख का पता चल सकेगा। इस चुनाव के नतीजों से सीएम मनोहर लाल, पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्डा, उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ और कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष कुमारी सैलजा की प्रतिष्ठा भी जुड़ी है। विपक्ष के नेता रह चुके अभय सिंह चौटाला ने तीन कृषि कानूनों के विरोध में ऐलनाबाद विधानसभा सीट से इस्तीफा दे दिया था। इसी वजह से यहां दोबारा उपचुनाव होने जा रहा है। इनेलो ने अभय सिंह चौटाला को फिर से अपना उम्मीदवार बनाया है, जबकि भाजपा व जजपा गठबंधन के प्रत्याशी के रूप में हलोपा अध्यक्ष एवं पूर्व गृह राज्य मंत्री गोपाल कांडा के भाई गोबिंद कांडा ताल ठोक रहे हैं। कांग्रेस ने पवन बेनीवाल को टिकट दिया है।
पवन बेनीवाल ऐलनाबाद से ही दो बार भाजपा के टिकट पर अभय चौटाला से चुनाव हार चुके हैं। इस बार ऐलनाबाद के रण में अभय सिंह, गोबिंद कांडा और पवन बेनीवाल तीनों ही हर तरह से सक्षम, ताकतवर तथा जाने-पहचाने चेहरों के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं। ऐलनाबाद से अक्सर ताऊ देवीलाल का परिवार चुनाव जीतता रहा है। भाजपा के साथ सरकार में साझीदार जननायक जनता पार्टी ने सीधे तौर पर अपना उम्मीदवार यहां नहीं उतारा है। दोनों दलों ने साझे उम्मीदवार के रूप में गोबिंद कांडा को टिकट दिया है। गोबिंद कांडा के लिए उनके बड़े भाई गोपाल कांडा खुलकर चुनाव प्रचार कर रहे हैं। गोबिंद कांडा ऐलनाबाद के रण में बाकी उम्मीदवारों को कड़ी टक्कर दे रहे हैं। उनके चुनाव से मुख्यमंत्री मनोहर लाल, उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़, चुनाव प्रभारी सुभाष बराला और सिरसा की सांसद सुनीता दुग्गल की प्रतिष्ठा दांव पर है।
भाजपा व जजपा के पास खोने के लिए कुछ नहीं
भाजपा व जजपा के पास यहां खोने के लिए कुछ भी नहीं है। यदि भाजपा की जीत होती है तो यह उसके लिए बोनस का काम करेगी। जजपा की ओर से पूर्व में टिकट के प्रबल दावेदार रहे प्रमुख रणनीतिकार कैप्टन मीनू बेनीवाल खुलकर चुनाव में काम कर रहे हैं। गोपाल कांडा ने भी ऐलनाबाद में डेरा डाल लिया है। गोपाल कांडा खुलकर चुनाव-चुनाव खेल रहे हैं। अभय सिंह चौटाला को हर गांव में व्यापक समर्थन मिल रहा है, लेकिन कांग्रेस के पवन बेनीवाल का चुनाव उठान पर नहीं होने की वजह से वह नुकसान महसूस कर सकते हैं। अभय सिंह दिन-रात जनसभाएं कर लोगों का समर्थन जुटा रहे हैं। चुनाव में उनकी जीत या हार किसान संगठनों के आंदोलन के प्रति लोगों का रुख तय करेगी, क्योंकि उन्होंने तीन कृषि कानूनों के विरोध में ही विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दिया था।
पवन बेनीवाल के चुनाव पर कांग्रेसियों की गुटबाजी
कांग्रेस के पवन बेनीवाल के लिए अभी पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और उनके सांसद बेटे दीपेंद्र सिंह हुड्डा खुलकर फील्ड में नहीं आए हैं। कांग्रेस के टिकट के दावेदार भरत सिंह बेनीवाल भले ही पार्टी के साथ होने का दावा कर रहे, लेकिन मतदान से ठीक पहले उनका रुख भी काफी कुछ स्पष्ट करेगा। पवन बेनीवाल के लिए कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष कुमारी सैलजा खुलकर चुनाव प्रचार कर रही हैं। पवन को सैलजा ने पार्टी में शामिल कराया था। इस चुनाव में हुड्डा की प्रतिष्ठा भी दांव पर है। यदि पवन जीतते हैं तो जाट समुदाय में हुड्डा की पकड़ मजबूत होगी और यदि हारते हैं तो उनके पास अपनी पसंद का उम्मीदवार यानी भरत बेनीवाल को टिकट नहीं मिल पाने का बहाना होगा। यही स्थिति सैलजा के सामने होगी। पवन की जीत की स्थिति में श्रेय सैलजा को रहेगा और हार की स्थिति में वह दोष हुड्डा के सिर मढ़ सकती हैं।
तीनों उम्मीदवार ताकतवर, आपस में टकराव संभव
ऐलनाबाद के रण में तीनों उम्मीदवार ताकतवर हैं, इसलिए प्रदेश सरकार के साथ-साथ निर्वाचन विभाग को भी यहां दल-बल का अधिक इस्तेमाल होने की आशंका है। पुलिस व मिलिट्री भारी तादाद में तैनात है। चुनाव से ठीक पहले यदि उम्मीदवारों के बीच किसी तरह का शक्ति प्रदर्शन हो जाए तो कोई हैरानी नहीं होगी। निर्वाचन विभाग और पुलिस किसी भी स्थिति से निपटने के लिए तैयार है। हर समय भारी संख्या में मिलिट्री गश्त करती रहती है।