Move to Jagran APP

ताऊ की वेबसाइट: संदीप सिंह के लिए संजीवनी पहलवान योगेश्वर दत्त की बरोदा उपचुनाव में हार, जानें कैसे

Tau ki website राजनीति में कई खबरें ऐसी होती हैं जो अक्सर सुर्खियों में नहीं आ पाती। आइए हरियाणा के साप्ताहिक कालम ताऊ की वेबसाइट के जरिये राज्य की कुछ ऐसी ही अंदरूनी खबरों पर नजर डालते हैं।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Thu, 12 Nov 2020 12:18 PM (IST)Updated: Thu, 12 Nov 2020 12:18 PM (IST)
ताऊ की वेबसाइट: संदीप सिंह के लिए संजीवनी पहलवान योगेश्वर दत्त की बरोदा उपचुनाव में हार, जानें कैसे
योगेश्वर दत्त व संदीप सिंह। फाइल फोटो

चंडीगढ़ [अनुराग अग्रवाल]। संदीप सिंह (Sandeep Singh) भारतीय हाकी टीम के कप्तान रहे हैं। शुरू-शुरू में जब वह हरियाणा में मंत्री बने तो उन्होंने खूब हेकड़ी दिखाई। राष्ट्रीय मीडिया से कम तो वह किसी से बात करने को तैयार नहीं होते थे, लेकिन धीरे-धीरे चीजें समझ में आने लगी तो मंत्री जी के तेवर ढीले पड़े। उस समय तो तेवर ज्यादा ही ढीले हो गए थे, जब भाजपा व जजपा गठबंधन के नेता बरोदा के रण में योगेश्वर दत्त की जीत के बाद उन्हेंं मंत्री बनाए जाने का वादा कर रहे थे। जाहिर है कि यदि योगेश्वर दत्त (Yogeshwar Dutt) जीतते तो सरकार को उन्हेंं मंत्री बनाना पड़ता। एक सरकार में दो खेल मंत्री तो हो नहीं सकते। जाहिर है कि संदीप सिंह के पद की बलि ली जाती। ऐसे में योगेश्वर की हार के बाद संदीप सिंह अब न केवल अपने पद पर बने रहेंगे, बल्कि उन्हेंं अब अपनी कार्यप्रणाली में बदलाव का पर्याप्त समय भी मिल गया है।

loksabha election banner

चुनाव नतीजों के साथ ही बदली अफसरों की आस्था

हरियाणा की राजनीतिक नब्ज के साथ अफसरशाही की चाल और रुख दोनों बदल जाते हैं। सोनीपत जिले की बरोदा विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव के नतीजे इसका बड़ा उदाहरण हैं। इस सीट पर राजनीतिक दलों के उम्मीदवार नहीं बल्कि पाॢटयों के दिग्गज चुनाव लड़ रहे थे। उपचुनाव में अक्सर सत्तारूढ़ सरकार की जीत होती है, लेकिन भाजपा-जजपा गठजोड़ के बावजूद बरोदा में कांग्रेस की जीत ने प्रदेश की जनता के साथ-साथ अफसरशाही को एक बार फिर से नई राय बनाने के लिए मजबूर कर दिया है। मंगलवार को जैसे ही बरोदा के नतीजे कांग्रेस के पक्ष में आए, कई अधिकारियों ने वाट्सएप काल पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह और उनके राज्यसभा सदस्य बेटे दीपेंद्र सिंह हुड्डा से आशीर्वाद बनाए रखने की इच्छा भी जताई। ऐसा इसलिए भी हुआ, क्योंकि चुनाव नतीजे आते ही दीपेंद्र ने उन अधिकारियों को निशाने पर ले लिया था, जिनकी चाल कुछ कुछ टेढ़ी नजर आ रही थी।

दुष्यंत की पार्टी में कभी भी फूट सकता विधायक बम

बरोदा उपचुनाव के नतीजे दूसरी बार सत्ता चला रही भाजपा से कहीं अधिक उसकी सहयोगी जननायक जनता पार्टी के लिए चिंता का विषय है। दुष्यंत चौटाला के नेतृत्व वाली इस पार्टी में मां नैना और बेटे दुष्यंत को छोड़ दें तो बाकी आठ विधायक ऐसे हैं, जो किसी न किसी कारण से असंतुष्ट हैं। इनमें से कई को बोर्ड एवं निगमों का चेयरमैन बनाकर हालांकि संतुष्ट करने की कोशिश भी की गई है, लेकिन इतने भर से उनका गुस्सा शांत हो गया होगा, इसकी बिल्कुल भी संभावना नहीं है। भाजपा के लिए यह चिंता का विषय है कि जाट वोट बैंक पर अपना दावा जताने वाली जजपा गैर जाट मतों वाली भाजपा की खेवनहार नहीं बन सकी। इसका नुकसान यह होगा कि जजपा के बाकी विधायकों का तो असंतोष बढ़ेगा ही, भाजपा नेता भी नेतृत्व पर जजपा को सरकार में ज्यादा भाव नहीं देने का पूरा दबाव बना सकते हैं।

अभी बहुत समय है

बरोदा विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव के नतीजों को भाजपा के नए प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ और चुनाव प्रभारी कृषि मंत्री जेपी दलाल की राजनीतिक परफारमेंस के तौर पर देखा जा रहा है। नतीजों से है कि जाट वोट बैंक भाजपा के पक्ष में लाने के लिए खासी मशक्कत करनी पड़ेगी। वह भी उस स्थिति में जब भाजपा के पास जाट नेताओं की लंबी लिस्ट है। पूर्व केंद्रीय मंत्री चौ. बीरेंद्र सिंह, कैप्टन अभिमन्यु, ओमप्रकाश धनखड़, जेपी दलाल, कमलेश ढांडा, सांसद धर्मबीर सिंह, बृजेंद्र सिंह, सुभाष बराला और आधा दर्जन जाट विधायक भी भाजपा को बरोदा में नहीं जिता सके। जाटों के दूसरे बड़े नेता अजय सिंह चौटाला और दुष्यंत चौटाला भी बरोदा में भाजपा के किसी काम नहीं आए। भाजपा और जजपा दोनों दलों के पास न केवल चार साल का समय है और कोई भी रणनीति बनाने के लिए इतना समय कम नहीं। सो, अभी से जुट जाएं।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.