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ट्रांसजेंडरों के लिए संसद में तय हो सात फीसद कोटा : धनंजय चौहान

बिल पास हो चुका है और 10 जनवरी 2020 को यह एक्ट बन चुका है।

By JagranEdited By: Published: Fri, 26 Jun 2020 09:07 PM (IST)Updated: Sat, 27 Jun 2020 06:13 AM (IST)
ट्रांसजेंडरों के लिए संसद में तय हो सात फीसद कोटा : धनंजय चौहान
ट्रांसजेंडरों के लिए संसद में तय हो सात फीसद कोटा : धनंजय चौहान

राजेश मलकानियां, पंचकूला : ट्रांसजेंडर्स के लिए संसद के दोनों सदनों में प्रोटेक्शन बिल पास हो चुका है और 10 जनवरी 2020 को यह एक्ट बन चुका है। इसकी फाइनल कॉपी सबके पास आ चुकी है। कानून बन चुका है, लेकिन इसमें भी आइडेटिटी की प्रॉब्लम है। मैं ट्रांसवुमेन या ट्रांसमैन हूं, तब भी मुझे मजिस्ट्रेट के पास जाना पड़ेगा अपनी आइडेंटिटी देने के लिए। वह मुझे डॉक्टर के पास भेजेंगे। यह बात पंजाब यूनिवर्सिटी की पहली ट्रांसजेंडर धनंजय चौहान ने पंचकूला में कही। चौहान ने कहा कि भले ही बिल पास हो गया, लेकिन यह पॉलिसी कैसे बना। फाइलों में रखने से कानून नहीं बनते, इसे दिमाग में भी बैठाना होगा। यदि हम पॉलिसी मेकर नहीं बने तो, हमें कोई भी लॉलीपॉप देकर चला जाएगा। हम लोग अभी संसद में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण के लिए लड़ रहे हैं, लेकिन आने वाले समय में हम बिल्कुल बराबरी पर होंगे और सात प्रतिशत ट्रांसजेंडरो के लिए अलग से रखना होगा। इसलिए 40 प्रतिशत कोटा फिक्स करना होगा। हम अच्छे शोरूम में काम भी कर सकते हैं, चुनाव भी लड़ सकते हैं, आइएएस और राष्ट्रपति तक बन सकते हैं। सेक्टर-5 में मनाया एलजीबीटी प्राइड मंथ

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भारत के इतिहास में पहली बार ट्रांसजेंडर एलजीबीटी प्राइड मंथ के अवसर पर एमडीसी सेक्टर-5 में वेंडी नेल स्टूडियो में एक कार्यक्रम में बातचीत के दौरान धनंजय चौहान ने कहा कि मेरा प्रयास है कि थर्ड जेंडर शिक्षित हो और अपने अधिकारों को समझें। किसी को संवेदनशील बनाना है, तो वह एक बार नहीं बनता, उसे लगातार समझाना पड़ेगा। पंजाब यूनिवर्सिटी में जिस प्रकार हर साल सिलेबस चेंज हो जाता है, ऐसे ही हर साल समझाना पड़ेगा। ट्रांसजेंडरो के लिए अलग शौचालय की व्यवस्था, फीस माफ करवाना, अलग बोर्ड का निर्माण जैसे काम बड़ा मुश्किल था। समाज को जोड़ने का लगातार प्रयास

धनंजय चौहान ने बताया कि मैं समाज के लोगों को जोड़ने के लिए लगातार प्रयास कर रही हूं और हम सुपर वुमेन हैं, इसे हमने खुद पाया है, यदि मैं बायोलॉजिकल वुमेन नहीं हूं, बल्कि इसे मैं खुद पाया है। हम देवकी नहीं बन पाए क्या, यशोदा तो बन गए। सक्षम संस्था के जरिये तृतीय प्रकृति को जागरूक करने में जुटे हुए हैं, आने वाले समय में काफी सारे बदलाव आने वाले हैं। ट्रांस मैन और ट्रांसवुमेन उभरकर समाज के सामने आएंगे और अपनी उपस्थिति दर्ज करवाएंगे। हमें कुछ स्पेशल नहीं चाहिए, हमें तो समाज की स्वीकारता चाहिए, जब समाज के लोग हमें स्वीकार करेंगे, तभी हम कुछ कर पाएंगे। सभी ट्रांसजेंडरों ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की और जब हक में फैसला सुनाया, तो हमें प्राइड मंथ मनाने का मौका मिला, जिसे इस महीने सभी लोग हर्षोल्लास से मनाते हैं।


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