सिचाई जल वितरण पर श्वेत पत्र जारी करे सरकार : बंसल
हरियाणा सरकार सिचाई जल वितरण पर श्वेत पत्र जारी करे। भाजपा सरकार के शासन में उत्तरी हरियाणा सिचाई योजनाओं में भेदभाव का शिकार हुआ है और भूमिगत जल का स्तर गिरता जा रहा है। 1966 से हरियाणा-पंजाब से सिचाई के जल के लिए लड़ाई लड़ रहा है एसवाईएल के मुद्दे पर भी केंद्र व राज्य की भाजपा सरकार कोई गंभीरता से काम नहीं कर रही है।
जागरण संवाददाता, पंचकूला : हरियाणा सरकार सिचाई जल वितरण पर श्वेत पत्र जारी करे। भाजपा सरकार के शासन में उत्तरी हरियाणा सिचाई योजनाओं में भेदभाव का शिकार हुआ है और भूमिगत जल का स्तर गिरता जा रहा है। 1966 से हरियाणा-पंजाब से सिचाई के जल के लिए लड़ाई लड़ रहा है, एसवाईएल के मुद्दे पर भी केंद्र व राज्य की भाजपा सरकार कोई गंभीरता से काम नहीं कर रही है। हरियाणा किसान कांग्रेस के प्रदेश वरिष्ठ उपाध्यक्ष व पूर्व चेयरमैन हरियाणा सरकार विजय बंसल ने आरोप लगाया कि भाजपा सरकार किसानों से सिचाई के मुद्दे का समाधान करने का वादा कर सता में आई, परंतु बेहतर सिचाई योजना देने के लिए कोई नियत व नीति नहीं अपनाई गई। इसका खामियाजा प्रदेश की जनता को भुगतना पड़ रहा है। कहीं जमीन बंजर तो कहीं सेम की समस्या विजय बंसल के अनुसार हरियाणा में असंतुलित सिचाई जल वितरण के कारण हरियाणा में कई जगह अधिक सिचाई जल के कारण सेम की समस्या है तो कई क्षेत्रों में जल की कमी के कारण भूमि बंजर होती जा रही है। हरियाणा के अनेकों प्रभावशाली राजनीतिज्ञों व लोगों ने उपलब्ध सिचाई जल से अधिकतर पानी अपने-अपने क्षेत्र में वितरित किया परंतु उत्तरी हरियाणा हमेशा भेदभाव का शिकार हुआ। इस कारण किसानों को पानी की समस्या का सामना करना पड़ा। सबसे ज्यादा हिस्सा पश्चिम हरियाणा के पास विजय बंसल ने कहा कि हरियाणा के गठन के पश्चात 2004 तक अधिकतर प्रभावशाली राजनीतिज्ञ हरियाणा के पश्चिम क्षेत्र से रहे, जिस कारण हरियाणा में नहरों के सिचाई जल का लगभग 72 प्रतिशत हिस्सा पश्चिम हरियाणा, 24 प्रतिशत हिस्सा उत्तरी हरियाणा व केवल चार प्रतिशत हिस्सा दक्षिण हरियाणा को मिलता है। इस कारण दक्षिण हरियाणा में पानी की कमी सबसे ज्यादा है। पश्चिम हरियाणा में सेम की समस्या तो उत्तरी हरियाणा में गन्ने, पेड़ी व गेहूं की खेती के लिए पानी की आवश्यकता ज्यादा होती है। जबकि पश्चिम राज्य में ज्यादा पानी की आवश्यकता नहीं है। हालांकि सबसे ज्यादा नदियां उत्तरी हरियाणा से होकर निकलती हैं। सिचाई योजनाओं में भेदभाव विजय बंसल ने कहा कि सरकार द्वारा उत्तरी हरियाणा से सिचाई योजनाओं में सबसे ज्यादा भेदभाव किया जा रहा है। अंबाला नारायणगढ़ सिचाई नहर ठंडे बस्ते में है। दादुपुर नलवी नहर योजना को रद कर दिया गया। प्रस्तावित सिचाई बांधों में दिवानवाला, डगराना, खेतपुराली, छामला बांध के निर्माण कार्यो पर कोई कार्यवाही नहीं हुई। यहां के किसान सिचाई सुविधा से वंचित हैं और लोगों को पेयजल भी पर्याप्त मात्रा में नहीं मिल पाता। राजनीतिक कारणों से घग्गर डैम नहीं बना अंग्रेज शासन के समय पानी की समस्या के समाधान के लिए 1847 में तत्कालीन मेजर कुलिगम ने घग्गर बांध निर्धारित किया था। विजय बंसल ने कहा कि राजनीतिक कारणों की वजह से घग्गर बांध नहीं बनाया गया। इस कारण हरियाणा व पंजाब के कई इलाकों में बाढ़ की स्थिति बनी रहती है। यदि घग्गर बांध का निर्माण हो जाता तो सिचाई व पानी की समस्या का समाधान हो जाता। संचाई नहर की खेती, नलकूप खेती से सस्ती एनडीआरआइ करनाल के वैज्ञानिक डॉ. आरके महला की रिपोर्ट के अनुसार नलकूपों द्वारा की गई खेती की लागत 3600 रुपये प्रति एकड़ आती है जबकि नहरों से खेती 92 रुपये प्रति एकड़ आती है। इसी प्रकार नलकूपों द्वारा खेती में दुर्घटनाओं की आशंका ज्यादा रहती है। उत्तरी हरियाणा के किसान जल अभाव की वजह से खेती सिचाई नलकूपों से करते हैं, जिसकारण भूमिगत जल स्तर भी गिर गया है। हालांकि वैज्ञानिक ने तत्कालीन कृषि-जल संसाधन मंत्री चतुरनन मिश्रा को रिपोर्ट सौंपकर नहरी पानी का वितरण बिना किसी राजनीतिक भेदभाव के करने की मांग की थी, जिससे पश्चिम क्षेत्र में सेम की समस्या का समाधान हो और उत्तरी व दक्षिण हरियाणा को पर्याप्त पानी मिले व उत्तरी हरियाणा में कृषि की लागत कम आए।