हरियाणा में टिकट के लिए मारामारी शुरू, भाजपा व कांग्रेस को होगा अपने ही बागियों से खतरा
हरियाणा के चुनावी रण में ताल ठोंकने को अभी से टिकट की मारामारी शुरू हो गई है। सबसे ज्यादा सत्तारूढ़ भाजपा और उसके बाद कांग्रेस में घमासान मचा हुआ है।
चंडीगढ़ [अनुराग अग्रवाल]। हरियाणा के चुनावी रण में ताल ठोंकने को अभी से टिकट की मारामारी शुरू हो गई है। सबसे ज्यादा सत्तारूढ़ भाजपा और उसके बाद कांग्रेस में घमासान मचा हुआ है। भाजपा में एक सीट पर टिकट के कम से कम दस दावेदार हैं। यही हाल आधा दर्जन गुटों में बंटी कांग्रेस का है। भाजपा व कांग्रेस में जिन दावेदारों को टिकट नहीं मिल पाएगा, उनसे न केवल इन दलों को भितरघात का अंदेशा बना रहेगा, बल्कि चुनाव लड़़ने की अपनी इच्छा पूरी करने को यह दावेदार दूसरे दलों की शरण में जा सकते हैं।
हरियाणा में अक्टूबर के मध्य में विधानसभा चुनाव हैं। 15 सितंबर को चुनाव की अधिसूचना जारी हो सकती है। अधिसूचना जारी होने के एक माह बाद मतदान संभव हैं। राज्य में 90 विधानसभा सीटें हैं, लेकिन एक सीट पर दस-दस उम्मीदवारों की दावेदारी से करीब 900 नेताओं के पैदा होने के आसार बन गए हैं। लोकसभा चुनाव में भारी भरकम जीत हासिल करने वाली भाजपा का टिकट हासिल करना फिलहाल कोई बड़ी जंग जीतने से कम नहीं है।
जीतने वाले उम्मीदवारों पर ही दांव
भाजपा में हर सीट पर टिकट के दावेदारों की संख्या बहुत ज्यादा है। दूसरे राजनीतिक दलों के प्रमुख नेता भी चाहते हैं कि उन्हें भाजपा का टिकट मिल पाए। भाजपा सिर्फ और सिर्फ जीतने वाले उम्मीदवारों पर ही दांव खेलेगी। उसकी प्राथमिकता पार्टी के निष्ठावान और समर्पित कार्यकर्ताओं को टिकट देने की रहेगी। कहीं ऐसे दावेदारों को भी टिकट दिया जा सकता है, जो भाजपा की विचारधारा पर खरा नहीं उतरता, लेकिन चुनाव जीतने का माद्दा रखता है। इन्हीं समीकरणों को ध्यान में रखकर भाजपा ऐसे नेताओं की अपनी पार्टी में एंट्री करा रही है, जहां पार्टी का बहुत अधिक राजनीतिक वजूद नहीं है।
भाजपा की यह रणनीति उसके लिए घातक
कहने को हालांकि ऐसे नेताओं को टिकट की गारंटी नहीं दी जा रही, लेकिन भाजपा दूसरे दलों से आने वाले चुनाव जीतने की क्षमता वाले तमाम नेताओं को टिकट दे सकती है। भाजपा की यह रणनीति उसके लिए घातक भी साबित हो सकती है। दस दावेदारों में से जिन नौ को टिकट नहीं मिलेगा, वह पार्टी के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं। यही हाल कांग्रेस का है। राज्य में कांग्रेस हुड्डा, तंवर, सुरजेवाला, किरण, सैलजा, कैप्टन और कुलदीप बिश्नोई के धड़ों में बंटी है। हर गुट का प्रयास होगा कि उसकी पसंद के उम्मीदवार को ही टिकट मिले, लेकिन जिस भी गुट को टिकट मिलेगा, उसे छोड़कर बाकी पांच गुट टांग खिंचाई से बाज नहीं आएंगे। कांग्रेस की यह गुटबाजी भाजपा को फायदा पहुंचा सकती है।
टिकट दावेदारों की तीसरी पसंद आप
भाजपा व कांग्रेस दोनों दलों से टिकट हासिल नहीं करने वाले दावेदारों की तीसरी पसंद आम आदमी पार्टी और जननायक जनता पार्टी होंगी। राज्य की 90 विधानसभा सीटों में 35 सीट ऐसी हैं, जिन्हें शहरी सीट माना जाता है। भाजपा व कांग्रेस के बागियों के लिए इन शहरी सीटों पर आम आदमी पार्टी टिकट के लिए अपने दरवाजे खोल सकती है। शहरों में अरविंद केजरीवाल का अच्छा खासा प्रभाव है। गांवों की विधानसभा सीटों पर यदि किसी को टिकट चाहिए तो उसके लिए जननायक जनता पार्टी तीसरा बड़ा विकल्प होगी। यदि जाट बाहुल्य सीट है तो जजपा और गांवों में गैर जाट बाहुल्य सीट पर आम आदमी पार्टी के टिकट इन दावेदारों की इच्छा पूर्ति का बड़ा जरिया बन सकते हैं।
टिकट दावेदारों को कांग्रेस ने संतुष्ट नहीं किया तो होगी मुश्किल
हरियाणा में इनेलो ने करीब 50 विधानसभा सीटों पर फोकस किया है। बहुजन समाज पार्टी भी हर सीट पर चुनाव लड़ने का इरादा रखती है। पूर्व सांसद राजकुमार सैनी की लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी समेत कई ऐसे छोटे दल हैं, जो चुनाव में ताल ठोंककर दूसरे के लोटे पर पैर मारने के खेल में रुचि लेते नजर आएंगे। ऐसे में राज्य का चुनावी समर टिकट आवंटन के लिहाज से काफी रोचक होने जा रहा है। समय रहते यदि भाजपा व कांग्रेेस ने अपने यहां टिकट के बढ़ते दावेदारों को संतुष्ट नहीं किया तो उनकी मुश्किलें बढऩा तय हैं। ऐसे तमाम दावेदारों को आप और जजपा अपने गले लगाने का कोई मौका हाथ से नहीं जाने देंगे।
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