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हरियाणा की जाट राजनीति पर ग्रहण, लोगों ने दिग्गज जाट नेताओं को नकारा

हरियाणा की दस लोकसभा सीटों के चुनाव नतीजों ने प्रदेश के जाट नेताओं की चिंता बढ़ा दी है। इस बार कई दिग्गज जाट नेता चुनाव हार गए।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Mon, 27 May 2019 08:55 AM (IST)Updated: Tue, 28 May 2019 05:03 PM (IST)
हरियाणा की जाट राजनीति पर ग्रहण, लोगों ने दिग्गज जाट नेताओं को नकारा
हरियाणा की जाट राजनीति पर ग्रहण, लोगों ने दिग्गज जाट नेताओं को नकारा

चंडीगढ़ [अनुराग अग्रवाल]। हरियाणा की दस लोकसभा सीटों के चुनाव नतीजों ने प्रदेश के जाट नेताओं की चिंता बढ़ा दी है। पूर्व केंद्रीय मंत्री चौ. बीरेंद्र सिंह और सांसद धर्मबीर सिंह को छोड़कर खुद भाजपा के जाट नेता हाशिये पर हैं। कांग्रेस, इनेलो और जननायक जनता पार्टी के जाट नेताओं के सामने जहां अपने सुरक्षित राजनीतिक भविष्य की चुनौती खड़ी हो गई, वहीं कई जाट नेताओं ने भाजपा में अपनी राह तलाशनी शुरू कर दी है। भाजपा इन नेताओं को गले लगाने में किसी तरह की जल्दबाजी के मूड में नहीं है।

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हरियाणा का चुनाव भले ही मोदी के राष्ट्रवाद और मनोहर सरकार के कामकाज पर लड़ा गया है, लेकिन इसकी पृष्ठभूमि में जाट और गैर जाट की राजनीति का भी अहम रोल रहा है। हरियाणा पिछले साढ़े चार साल में जाट आरक्षण आंदोलन समेत तीन बड़ी हिंसाओं का दंश झेल चुका है। राजनीतिक दलों ने इस हिंसा को अपने-अपने ढंग से कैश करने का कोई मौका हाथ से नहीं जाने दिया। इसका हश्र यह हुआ कि हरियाणा जाट और गैर जाट दो खेमों में बंट गया है।

लोकसभा चुनाव में हरियाणा में इसी जाट और गैर जाट राजनीति की खेमेबंदी ने अहम भूमिका निभाई है। जिस तरह से कई सीटों पर जाट मतदाता एकजुट नजर आए, उसी तरह से गैर जाट मतदाताओं की एकजुटता उन पर भारी पड़ गई है। हिसार और भिवानी के चुनाव नतीजे अपवाद हैं। हिसार में निवर्तमान केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह के आइएएस बेटे बृजेंद्र सिंह और भिवानी-महेंद्रगढ़ में चौ. धर्मबीर ने चुनाव लड़ा। हिसार में बृजेंद्र सिंह के मुकाबले जननायक जनता पार्टी के दुष्यंत चौटाला थे, जबकि भिवानी में धर्मबीर के सामने कांग्रेस की श्रुति चौधरी थी। धर्मबीर भाजपा में अपनी छवि बड़े जाट नेता के रूप में स्थापित नहीं कर पाए हैं।

हरियाणा की इन दोनों सीटों पर जाट मतदाताओं ने अपने मतों का बिखराव नहीं होने दिया और जीतने वाले उम्मीदवार बृजेंद्र सिंह व धर्मबीर सिंह को वोट दिए। इसके साथ ही गैर जाट मतदाता भी इन दोनों उम्मीदवारों के साथ खड़ा नजर आया। भाजपा के दो बड़े जाट नेताओं कैप्टन अभिमन्यु और ओमप्रकाश धनखड़ इस चुनाव में उम्मीद के मुताबिक करिश्मा नहीं दिखा सके। कैप्टन के नारनौंद और धनखड़ के बादली हलके में भाजपा को अपेक्षा के अनुरूप समर्थन नहीं मिला। कांग्रेस के प्रमुख जाट नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा और दीपेंद्र सिंह हुड्डा भी चुनाव हार गए।

इनेलो विधायक दल के नेता अभय सिंह चौटाला के बेटे अर्जुन चौटाला को कुरुक्षेत्र और चरणजीत सिंह रोड़ी को सिरसा में हराकर लोगों ने उनके जाट नेतृत्व को भी नकार दिया है। यही स्थिति जननायक जनता पार्टी के निवर्तमान सांसद दुष्यंत चौटाला की रही। प्रदेश के यह जाट नेता भले ही अब विधानसभा चुनाव में खुद को नए सिरे से खड़ा करने का दावा कर रहे हैं, लेकिन हरियाणा के आधा दर्जन पूर्व मंत्री और पूर्व विधायक, जो कि जाटों की राजनीति करते हैं, भाजपा के संपर्क में हैं।

हरियाणा में चौ. बंसीलाल के साथ भाजपा के मधुर संबंध रहे हैं। इस परिवार का कोई भी बड़ा नेता भाजपा के पाले में खड़ा नजर आए तो कोई आश्चर्य नहीं होगा। यही स्थिति पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के समर्थक जाट नेताओं की है। एक पूर्व मंत्री ने तो पिछले दिनों टिकट नहीं मिलने की स्थिति में किलोई से ताल ठोंकने की चेतावनी तक हुड्डा को दे डाली है। हुड्डा समर्थक तीन बड़े जाट नेताओं के भाजपा के संपर्क में होने की सूचना है। भाजपा को भी इन्हें गले लगाने से कोई गुरजे नहीं है, लेकिन इसके लिए समय और मौके का इंतजार किया जा रहा है।

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