बृज के माहौल में आने लगी सावन की सुगंध
ज्येष्ठ की गर्मी व आषाड़ की ऊमस के कारण लोगों को सावन माह के आने का इंतजार रहता है। उनका इंतजार शनिवार को समाप्त हो गया, क्योंकि सावन माह शुरू हो गया। इस माह में कहीं लोग यज्ञ रचाएंगे तो कहीं सावन के सोमवार के व्रत करेंगे। कोई परिक्रमा करने जाएगा तो कोई बिहारी जी के दर्शन को जाएगा। सावन आने से पहले ही बाजार में कई तरह के घेवर बिक्री हेतु उपलब्ध हो गए हैं। बाजार में मेंहदी रचाने वाले भी आ गए हैं। इस माह में महिलाएं जब झूला झूलते हुए मल्हार गाती हैं तो वे अपने मन की सभी बातों को मल्हारों के माध्यम से कह देती हैं।
एंकर---
- बहुत दिना हो गए पिया मोय, सावन सुगन मनाऊंगी
संजीव मंगला, पलवल
ज्येष्ठ की गर्मी व आषाढ़ की उमस के कारण लोगों को सावन माह के आने का इंतजार रहता है। उनका इंतजार शनिवार को समाप्त हो गया, क्योंकि सावन माह शुरू हो गया। इस माह में कहीं लोग हवन रचाएंगे तो कहीं सावन के सोमवार के व्रत करेंगे। कोई परिक्रमा करने जाएगा तो कोई बिहारी जी के दर्शन को जाएगा। सावन आने से पहले ही बाजार में कई तरह के घेवर बिक्री हेतु उपलब्ध हो गए हैं। बाजार में मेंहदी रचाने वाले भी आ गए हैं। इस माह में महिलाएं जब झूला झूलते हुए मल्हार गाती हैं तो वे अपने मन की सभी बातों को मल्हारों के माध्यम से कह देती हैं।
सावन मस्ती का महीना होता है। बृज क्षेत्र में सावन की छठा ही निराली होती है। यहां की सभ्यता, संस्कृति, भाषा व व्यवहार भी सभी को मन भाते हैं। स्वभाव से भी यहां के लोग विनम्र व मधुर होते हैं। आकाश में उमड़ते, घुमड़ते और गरजते बादलों से अनेक प्रकार की भावनाएं प्रकट होती हैं। इस महीने में नवविवाहित महिलाओं को अपने मायके जाने की परंपरा पुरातन है। अच्छी बरसात होने से मौसम भी सही मायने में सावन वाला ही बन गया है।
सावन जब नजदीक आने को होता है तो विवाहित महिलाओं का मन मायके जाने को मचल उठता है। उसका भाई उसे ससुराल में लेने जाता है, तो वह अपने पति से कह उठती है: बहुत दिना हो गए पिया मोय, सावन सुगन मनाऊंगी, भैया आयो मोहे लिवावे, मैं पीहर कू जाऊंगी।
इससे पहले अविवाहित युवतियां सावन आने की प्रार्थना भी कुछ इस तरह से करती हैं - कच्चे नीम की निबौरी, सावन जल्दी आइयो रे, अम्मा दूर मत दीजौ, दादा नहीं बुलाएंगे, भाभी दूर मत दीजौ, भइया नहीं बुलाएंगे। झूले पर झूलती हुई किशोरियों को देखकर उनके मन की उन्मुक्तता का अहसास होता है। वह पेड़ पर बैठी हुई चिड़ियों को देखकर अपने मन के भाव कुछ इस तरह प्रकट कर देती हैं - पेड़ पै दो चिड़ियां चूं-चूं करती जाएं, वहां से निकले हमारे भइया, क्या-क्या सौदा लाए जी, मां को साड़ी, बाप को पगड़ी और लहरिया लाए जी, बहन की चुनरी भूल आए, सौ-सौ नाम धराए जी।
अब सावन शुरू हो गया है तो जगह-जगह झूले भी पड़ने लगेंगे। फिर सखी-सहेलियां एकत्र होकर झूला झूलती हैं। कोई झूलकर लंबी पीगें लेती है तो कोई झोटा देती हैं। वे गा उठती हैं, झूला तो पड़ गए अमुआं की डार पै जी। सावन में पड़ने वाले तीज पर्व को तो विभिन्न आयोजन भी होते हैं। अब तो शहरों में भी तीज पर ये आयोजन होते हैं। इन आयोजनों में झूला, मेहंदी, पकवान व घेवर का विशेष प्रबंध होता है।