जानकारी न देने पर एसडीओ राज्य सूचना आयोग में तलब
लाखों रुपये की लागत से डाली गई पेयजल लाइनों से जब असावटी के लोगों को पीने का पानी नहीं मिला तथा जनस्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने पूरी तरह से उदासीनता बरतनी शुरू कर दी तो आरटीआइ कार्यकर्ता नंदकिशोर ने जन सूचना के अधिकार को हथियार बनाते हुए जानकारी मांगी।
संजय मग्गू, पलवल
लाखों रुपये की लागत से डाली गई पाइप लाइनों से असावटी के लोगों को पेयजल नहीं मिला और जनस्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने उदासीनता दिखाई तो आरटीआइ कार्यकर्ता नंदकिशोर ने जन सूचना के अधिकार को हथियार बनाते हुए जानकारी मांगी। अधिकारियों ने जवाब नहीं दिया तो उन्होंने राज्य सूचना आयुक्त का दरवाजा खटखटाया। राज्य सूचना आयुक्त नरेंद्र ¨सह यादव ने जन स्वास्थ्य विभाग के एसडीओ दीपेंद्र राज (सूचना अधिकारी) को दोषी मानते हुए नोटिस जारी किया है। राज्य सूचना आयुक्त ने कहा है कि एसडीओ पर 250 रुपये प्रतिदिन या 25 हजार रुपये एक मुश्त का आर्थिक दंड लगाया जाए।
जनस्वास्थ्य विभाग ने वर्ष 2017 में गांव असावटी रेलवे स्टेशन के समीप लगती कॉलोनियों में पेयजल आपूर्ति के लिए पाइपलाइन डाली थी, लेकिन उन पाइप लाइनों से लोगों को एक दिन भी पानी नहीं मिला। कई बार विभागीय अधिकारियों को शिकायत की गई, लेकिन सुनवाई नहीं हुई। आरटीआइ कार्यकर्ता नंदकिशोर ने 25 जनवरी 2018 जिला उपायुक्त को आरटीआइ लगाकर विभिन्न बिंदुओं पर जानकारी मांगी। आरटीआइ में पूछा कि कौन से मार्क के व कितने इंच मोटाई के पाइप डाले गए थे। कितनी लागत से कार्य हुआ? ठेकेदार कौन था तथा पाइप लाइन के बिल कितने रुपये के थे।
आरटीआइ का जवाब न मिलने पर आवेदक ने 30 दिन बाद रिमाइंडर भी लगाया। हालांकि विभाग ने इस बार भी कोई जवाब नहीं दिया। अंत में राज्य सूचना आयुक्त के यहां अपील की गई। राज्य सूचना आयुक्त ने जिला उपायुक्त व नगराधीश को पक्षकार बनाया। सूचना आयुक्त के समक्ष चले परिवाद में जनस्वास्थ्य विभाग के अधिकारी यह तर्क देते रहे कि उन्हें जिला उपायुक्त कार्यालय से समय पर आरटीआइ का पत्र नहीं सौंपा गया था। जिला उपायुक्त कार्यालय ने यह साबित कर दिया कि दोनों बार समय पर ही जनस्वास्थ्य विभाग को जानकारी मुहैया कराने के निर्देश दिए गए थे। इसके बाद राज्य सूचना आयुक्त ने जनस्वास्थ्य विभाग के एसडीओ व सूचना अधिकारी दीपेंद्र राज को दोषी करार दिया।
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अधिकारियों ने सूचना के अधिकार को मजाक बना कर रख दिया है। या तो ये लोग जानबूझकर जानकारी छुपाते हैं या फिर इन्हें आमजन के हितों से कोई सरोकार नहीं है। मेरी आरटीआइ में पहले भी कई बार कई विभागों पर जुर्माना लगाया गया है।
- नंद किशोर कर्दम, आरटीआइ कार्यकर्ता