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गोकशी को लेकर गांवों में हुई पंचायतें बेअसर

गोकशी को लेकर पंचायतों में लिए गए कड़े निर्णय केवल दिखावा बनकर रह जाते हैं। लिए गए इन फैसलों पर कोई अमल नहीं होने से पंचायतें बेअसर रहीं है। पंचायतों के आयोजन करने वाले पंच ही मामला सामने आने के बाद लिए गए निर्णय को अमलीजामा पहनाने से कतराते है। इसलिए इस कार्य में लगे लोगों के हौंसले पस्त होने की बजाए बुलंद हो जाते हैं। बल्कि गांवों में जो सफेदपोश (ठोंडा) इन पंचायतों का आयोजन करते हैं इनमें अधिकांश ही गोकशी पर अंकुश लगाने में सबसे बढ़ी बाधा बन जाते हैं। नतीजतन, गोकशी के मामले कम होने की बजाए पूर्वत जारी है। आली मेव, रुपडाका , गुराकसर व लखनाका, उटावड गांव में हाल ही में पकड़े गए गोकशी के मामलों से यह बात सच साबित भी हुई है। क्योंकि यहां पर गोकशी पर अंकुश के लिए कई बार पंचायतें हो चुकी है।

By JagranEdited By: Published: Sat, 24 Nov 2018 05:20 PM (IST)Updated: Sat, 24 Nov 2018 05:20 PM (IST)
गोकशी को लेकर गांवों में हुई पंचायतें बेअसर
गोकशी को लेकर गांवों में हुई पंचायतें बेअसर

मोहम्मद हारून, पलवल

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गोकशी को लेकर पंचायतों में लिए गए कड़े निर्णय केवल दिखावा बनकर रह जाते हैं। लिए गए इन फैसलों पर कोई अमल नहीं होने से पंचायतें बेअसर रही हैं। पंचायतों के आयोजन करने वाले पंच ही मामला सामने आने के बाद लिए गए निर्णय को अमलीजामा पहनाने से कतराते हैं। इसलिए इस कार्य में लगे लोगों के हौंसले पस्त होने की बजाय बुलंद हो जाते हैं।

कई जगह तो गांवों में जो सफेदपोश (ठोंडा) इन पंचायतों का आयोजन करते हैं, उनमें से अधिकांश ही गोकशी पर अंकुश लगाने में सबसे बड़ी बाधा बन जाते हैं। नतीजतन, गोकशी के मामले कम होने की बजाय पूर्ववत जारी है। आली मेव, रुपडाका, गुराकसर व लखनाका, उटावड गांव में हाल ही में पकड़े गए गोकशी के मामलों से यह बात सच साबित भी हुई है। क्योंकि यहां पर गोकशी पर अंकुश के लिए कई बार पंचायतें हो चुकी है। बना हुआ है कड़ा कानून

हालांकि वर्तमान सरकार ने 2015 में गायों की रक्षा के लिए गोरक्षा आयोग का गठन किया था। इसके अलावा गोहत्या कानून में बदलाव करके आरोपित पर 307 की धारा लगाए जाने का कानून बनाया। यह कानून लागू भी हो चुका है। कड़े कानून के डर तथा आपसी भाईचारा खराब न हो इसके लिए खंड के गांव में उटावड, रूपडाका, लखनाका, गुराकसर, आलीमेव के अलावा कई गांवों में मुस्लिम समाज के लोगों में पंचायतें की गई। इसका मकसद आपसी भाइचारे को बढ़ाना तथा गो हत्या पर अंकुश लगाना था।

पंचायतों में इस कार्य के अंजाम देने वाले लोगों पर 1100 रुपये से लेकर 51 हजार रुपये तक के दंड का एलान पंचायतों में किया गया था। सूत्र कहते हैं कि सफेद पोश लोगों को इस कार्य से जुड़े व्यक्ति अपनी रक्षा के लिए पैसे तक देते हैं। समय-समय पर सफेद पोश के लिए निश्शुल्क मांस भी उपलब्ध कराया जाता है। गांव के सफेद पोश की सेवा न होने पर उसे गोकशी के मामले में पकड़वा व छुड़वा दिया जाता है। धन बल के लालच में ऐसे मौके पर पुलिस भी सफेदपोशों की सहायता कर देती है। अगर ग्राम पंचायत व मौजिज लोग इस बुराई को रोकने का काम करें तो गलत कार्य करने वाले लोगों पर अंकुश लग सकता है। हकीकत तो यह है की सफेद पोश ही इसमें दिलचस्पी नहीं लेते।

-आलम खां, समाज सेवी उटावड इस कार्य में जुटे गांव के चंद लोगों को पंच सरपंचों की शह मिली होती है। पंचायती प्रतिनिधियों द्वारा सख्ती की जाए तो इन लोगों पर अंकुश लगाया जा सकता है। फिर भी पुलिस अपना काम कानून के तहत करती है। गोकशी के काफी मामले दर्ज करके आरोपितों को पकड़ा जा चुका है।

- रामदयाल, थाना प्रभारी बहीन


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