सजा पूरी करने के बाद निर्दोष साबित हुआ 'दोषी'
एक गांव में कथित रूप से 2001 में हुए दुष्कर्म के मामले में उच्चतम न्यायालय ने दो आरोपितों को बरी कर दिया। इनमें से एक अपनी सजा पूरी कर चुका था, जबकि दूसरा 10 साल कैद की सजा में से सात साल जेल में गुजार चुका था। उच्चतम न्यायालय की जस्टिस एनवी रमन्ना तथा मोहन एम सांतानगोदर की बैंच ने अपने फैसले में कहा कि दुष्कर्म का अपराध इस मामले में सिद्ध नहीं होता। सजा के खिलाफ एक आरोपित शाम ¨सह ने उच्चतम न्यायालय में पंजाब व हरियाणा उच्च न्यायालय के खिलाफ अपील दायर की थी, जबकि दूसरे आरोपित जय ¨सह अपनी सजा पूरी कर चुका था।
संजीव मंगला, पलवल
एक गांव में कथित रूप से 2001 में हुए दुष्कर्म के मामले में उच्चतम न्यायालय ने दो आरोपितों को बरी कर दिया। इनमें से एक उच्च न्यायालय द्वारा मिली सजा पूरी कर चुका है, जबकि दूसरा 10 साल कैद की सजा में से सात साल जेल में गुजार चुका था। उच्चतम न्यायालय की जस्टिस एनवी रमन्ना तथा मोहन एम सांतानगोदर की बेंच ने अपने फैसले में कहा कि दुष्कर्म का अपराध इस मामले में सिद्ध नहीं होता। कोई व्यक्ति मां, बहन और पत्नी के सामने दुष्कर्म कैसे कर सकता है। सजा के खिलाफ एक आरोपित शाम ¨सह ने उच्चतम न्यायालय में पंजाब व हरियाणा उच्च न्यायालय के खिलाफ अपील दायर की थी, जबकि दूसरा आरोपित जय ¨सह अपनी सजा पूरी कर चुका था। उच्चतम न्यायालय ने इस मामले में शाम ¨सह को तत्काल रिहा करने का निर्णय सुनाया है।
पुलिस में दर्ज रिपोर्ट के अनुसार 22 अगस्त 2001 को एक नाबालिग लड़की के रिश्ते में चाचा लगने वाले दो लोग उसे उठाकर अपने घर ले गए। उसके हाथ बांध दिए तथा उसके संग अपने परिजनों की उपस्थिति में दुष्कर्म किया था। इस मामले में मेडिकल रिपोर्ट में दुष्कर्म की पुष्टि नहीं हुई और न ही शरीर पर किसी तरह के निशान पाए गए। आरोपितों ने अदालत में बताया कि उन्होंने लड़की को एक लड़के के साथ जाते देखा था। इस मामले में गांव की पंचायत भी हुई थी, जिसमें उस लड़के ने लिखित में माफी भी मांगी थी। हालांकि लड़की ने ट्रायल कोर्ट में कहा कि पंचायत मामले को दबाने के लिए बुलाई गई थी।
फास्ट ट्रैक ने बरी किया, ट्रायल कोर्ट ने दी थी सजा
फरीदाबाद की फास्ट ट्रैक कोर्ट ने मार्च 2003 में इस मामले में आरोपितों को बरी कर दिया। इस फैसले के विरुद्ध लड़की ने पंजाब व हरियाणा उच्च न्यायालय में अपील की। उच्च न्यायालय ने मामले को पुन: सुनवाई के लिए ट्रायल कोर्ट में भेज दिया। ट्रायल कोर्ट ने जून 2011 में आरोपितों को सजा सुना दी। पंजाब व हरियाणा उच्च न्यायालय ने भी ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा। जिसके खिलाफ शाम ¨सह ने उच्चतम न्यायालय में अपील दायर कर दी।
उच्चतम न्यायालय से मिली राहत
उच्चतम न्यायालय का कहना था कि अभियोजन पक्ष का केस कृत्रिम तथा परस्पर विरोधी नजर आता है। इस मामले में यह संभव होना मुश्किल है कि अपने ही घर में बहन, मां, पत्नी व बच्चों के सामने दुष्कर्म किया गया हो। यदि यह वास्तविकता भी है तो चिकित्सीय गवाही आरोपितों के खिलाफ जाती। अभियोजन पक्ष के साक्ष्य गैर वास्तविक, अविश्वसनीय नजर आते हैं। उनका कहना था कि निचली अदालतों का निर्णय स्वीकार्यता की मेरिट के आधार पर नहीं है। बरी किए गए शाम ¨सह व जय ¨सह द्वारा काटी गई कैद की सजा पर फैसले में कोई टिप्पणी नहीं की गई है।