अधिकारियों से मिलीभगत कर मिल मालिक लगाते हैं करोड़ों का चूना
अधिकारियों से मिलीभगत करके धान मिल मालिक सरकार को हर साल करोड़ों रुपये की चपत लगाते हैं। सबसे ज्यादा गोलमाल होडल मंडी में होता है। यहां जिले में धान की पैदावार से भी ज्यादा धान की खरीद कागजातों में दिखा दी जाती है और बाद में बाहरी राज्यों से चावल मंगवाकर एफसीआइ की पूर्ति कर दी जाती है, परंतु इस बार कमेटी सचिव नरवीर गहलोत द्वारा विडियोग्राफी कराए जाने के चलते व्यापारियों ने एजेंसियों से अनुबंध ही नहीं किया। व्यापारियों ने नेताओं पर दबाव डालकर आखिरकार अधिकारी का पलवल तबादला करवा दिया। उसके बाद अब चार व्यापारियों ने एजेंसियों से अनुबंध किया है, जिसके बाद मंडी में धान की खरीद शुरू हो पाई है। अन्य मिल मालिक भी अब अनुबंध करवा रहे हैं।
- आवक से कई गुणा धान की कागजातों में दिखा दी जाती है खरीद
- इस बार गोलमाल में रोड़ा बने कमेटी सचिव का व्यापारियों ने कराया तबादला
सुरेंद्र चौहान, पलवल
अधिकारियों से मिलीभगत करके धान मिल मालिक सरकार को हर साल करोड़ों रुपये की चपत लगाते हैं। सबसे ज्यादा गोलमाल होडल मंडी में होता है। यहां जिले में धान की पैदावार से भी ज्यादा धान की खरीद कागजातों में दिखा दी जाती है और बाद में बाहरी राज्यों से चावल मंगवाकर एफसीआइ की पूर्ति कर दी जाती है। परंतु इस बार कमेटी सचिव नरवीर गहलोत द्वारा वीडियोग्राफी कराए जाने के चलते व्यापारियों ने एजेंसियों से अनुबंध ही नहीं किया। व्यापारियों ने नेताओं पर दबाव डालकर आखिरकार अधिकारी का पलवल तबादला करवा दिया। उसके बाद अब चार व्यापारियों ने एजेंसियों से अनुबंध किया है, जिसके बाद मंडी में धान की खरीद शुरू हो पाई है।
सबसे बड़ी बात है कि मंडी में अब तक करीब पौने दो लाख ¨क्वटल फसल आज चुकी है और अब आवक नाममात्र की रह गई है, जो अगले दो तीन दिन में बंद हो जाएगी। मिल मालिक करीब सवा लाख ¨क्वटल मोटा धान ग्रेड ए खरीद चुके हैं। मंडी में अब भारतीय खाद्य निगम ने खरीद शुरू कर दी है। जो धान मंडी में पड़ा है, उसमें भी अभी नमी के चलते एजेंसी बहुत कम खरीद रही है।
पलवल मंडी में भी व्यापारी पहले ऐसा ही करते थे। करीब तीन साल पूर्व एक अधिकारी ने वीडियोग्राफी करवाकर और तत्कालीन उपायुक्त को सारी सच्चाई बताकर इस खेल को बंद करवाया था। उसके बाद से मंडी में धान की खरीद आधे से भी कम रह गई है। तब होडल में भी यह गड़बड़ी बंद हुई थी और होडल मंडी में होने वाली करीब 11 लाख ¨क्वटल की खरीद चार लाख के आस-पास आ गई थी। पिछले वर्ष फिर से गोलमाल हुआ और खरीद नौ लाख ¨क्वटल पहुंच गई। बाहरी राज्यों के चावल से होती है पूर्ति
दरअसल, सरकार केवल मोटे धान की खरीद करती है, जो जिले में नाममात्र के किसान बोते हैं। बासमती, परमल, शर्बती जैसे धान की निजी व्यापारी खरीद करते हैं। सरकारी खरीद के लिए हरियाणा वेयर हाउस कार्पोरेशन, हैफेड, खाद्य एवं आपूर्ति विभाग आदि खरीद एजेंसियों को 30 सितंबर तक मिल मालिकों से अनुबंध करना होता है। खरीद एक अक्टूबर से शुरू होती है।
मिल मालिक व आढ़ती खरीद एजेंसियों और मार्केट कमेटी अधिकारियों से मिलीभगत करके कागजातों में उत्पादन से कई गुणा खरीद चढ़वा देते हैं, जबकि उतने धान की न तो पैदावार होती है और न ही उतना मंडी में बिक्री के लिए आता है। व्यापारी किसानों के नाम आदि एजेंसियों को दे देते हैं। फर्जी पर्चियां काट दी जाती हैं। मिल मालिकों को उतने धान का चावल बनाकर भारतीय खाद्य निगम को देना होता है। किसानों को तो केवल समर्थन मूल्य मिलता है, उसमें भी कटौती कर लेते हैं।
मिल मालिक बिहार व पश्चिम बंगाल आदि दूसरे राज्यों से सस्ता चावल मंगवाकर एफसीआइ की पूर्ति कर देते हैं। इस कार्य में उन्होंने करोड़ों रुपये की बचत होती है। फसल खरीद में पारदर्शिता के लिए सरकार ने पूरे प्रयास किए हैं। कोई गड़बड़ी न हो, इसके लिए इस बार वीडियोग्राफी करवाई गई थी। अब व्यापारियों ने अनुबंध किया है और खरीद शुरू हुई है। पूरी खरीद फरोख्त पर नजर रखी जा रही है और नियमानुसार ही खरीद होगी, किसी प्रकार की अनियमितता बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
- डॉ.मनीराम शर्मा, उपायुक्त