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आज नहाय खाय से छठ पर्व की होगी शुरूआत

आस्था की गहराइयों से निकले गीतों के साथ लोक आस्था का महापर्व छठ मनाया जाता है। सूर्य उपपासना का यह चार दिवसीय महापर्व रविवार को नहाय-खाय से शुरू होगा। सोमवार से 36 घंटे का उपवास शुरू होगा। मंगलवार को अस्ताचलगामी सूर्य और फिर बुधवार सुबह उगते सूरज को अ‌र्घ्य प्रदान करने के साथ यह महापर्व संपन्न होगा। ऋग्वेदिक काल से सूर्योपासना होती आ रही है। चार दिवसीय छठ पर्व का प्रारंभ कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को और समापन

By JagranEdited By: Published: Sat, 10 Nov 2018 04:27 PM (IST)Updated: Sat, 10 Nov 2018 04:27 PM (IST)
आज नहाय खाय से छठ पर्व की होगी शुरूआत
आज नहाय खाय से छठ पर्व की होगी शुरूआत

जागरण संवाददाता, तावडू: आस्था की गहराइयों से निकले गीतों के साथ लोक आस्था का महापर्व छठ मनाया जाता है। सूर्य की उपासना का यह चार दिवसीय महापर्व रविवार को नहाय-खाय से शुरू होगा। सोमवार से 36 घंटे का उपवास शुरू होगा। मंगलवार को अस्ताचलगामी सूर्य और फिर बुधवार सुबह उगते सूरज को अ‌र्घ्य प्रदान करने के साथ यह महापर्व संपन्न होगा। ऋग्वेदिक काल से सूर्योपासना होती आ रही है। चार दिवसीय छठ पर्व का प्रारंभ कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को और समापन कार्तिक शुक्ल पक्ष की सप्तमी को होता है। चार दिवसीय छठ पर्व रविवार को नहाय-खाय के साथ शुरू हो गया। हालांकि छठ की मुख्य पूजा 13 नवंबर को होगी। इस दिन हर जगह विभिन्न घाटों पर हर्षोल्लास एवं श्रद्धाभाव के साथ छठ की पूजा की जाएगी। पर्व को लेकर तैयारियां चरम पर हैं। 14 नवंबर को उगते सूर्य की अराधना के बाद व्रती अपना उपवास तोड़ेंगे।

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प्राचीन देवी मंदिर के पुजारी रमेश शास्त्री ने बताया कि मान्यता है कि छठ पूजा की शुरूआत महाभारत काल में हुई थी। कुंती ने पुत्र प्राप्ति के लिए पूरे विधि-विधान से सूर्य की अराधना की थी। उसी दिन से छठ पर्व का आयोजन किया जाने लगा। कर्ण को सूर्यपुत्र के नाम से इसलिए ही जाना जाता है। कर्ण भी सूर्य के भक्त थे। प्रतिदिन पानी में खड़े होकर सूर्य को अ‌र्घ्य दिया करते थे। छठ पूजा का सबसे महत्वपूर्ण पक्ष इसकी सादगी पवित्रता और लोकपक्ष है। भक्ति और आध्यात्म से परिपूर्ण इस पर्व में बांस निर्मित सूप, टोकरी, मिट्टी के बर्तनों, गन्ने का रस, गुड़-चावल और गेहूं से निर्मित प्रसाद और सुमधुर लोकगीतों से युक्त होकर लोक जीवन की भरपूर मिठास का प्रसार करता है। शास्त्रों से अलग यह जन सामान्य द्वारा अपने रीति-रिवाजों के रंगों में गढ़ी गई उपासना पद्धति है। -रमेश शास्त्री, पुजारी, प्राचीन देवी मंदिर, तावडू।


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