हर वर्ष घट रहा चने की बिजाई का रकबा
किसानों की दिलचस्पी व कृषि विभाग की अनदेखी के चलते हर वर्ष जिले में चने की बिजाई का रकबा घटता जा रहा है। जो ¨चता का विषय है। कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि अब किसान भी अधिक मुनाफे की खेती के चक्कर में चना की खेती से मुंह मोड़ रहे हैं, तो विभाग भी चना की खेती के प्रति किसानों को प्रोत्साहित नहीं कर रहा है। जिसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जिले में अधिकां
अंतराम खटाना, नूंह: किसानों की दिलचस्पी व कृषि विभाग की अनदेखी के चलते हर वर्ष जिले में चने की बिजाई का रकबा घटता जा रहा है। जो ¨चता का विषय है। कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि अब किसान भी अधिक मुनाफे की खेती के चक्कर में चना की खेती से मुंह मोड़ रहे हैं, तो विभाग भी चना की खेती के प्रति किसानों को प्रोत्साहित नहीं कर रहा है। जिसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जिले में अधिकांश चना की बिजाई हो चुकी है, महज पछेती बिजाई ही 31 अक्टूबर तक की जानी है।
बता दें कि कुछ वर्ष पहले जिला चना की खेती का बड़ा उत्पादक क्षेत्र था, लेकिन धीरे-धीरे अब यह कम होता जा रहा है। इसके पीछे कई पहलू हैं। लेकिन अब किसानों की जमीन तेजी से घट रही है, इसलिए किसान भी चना की खेती से मुंह मोड़कर गेहूं की खेती की तरफ बढ़ा है। पिछले पांच सालों में बोई गई चना की फसल:
वर्ष
2018-19- - 150 हेक्टेयर अभी तक
2016-17- - 350 हेक्टेयर
2014-15 - - 700 हेक्टेयर।
2013-14 - - 1379 हेक्टेयर।
2012-13 - - 1150 हेक्टेयर।
2011-12 - - 1297 हेक्टेयर।
हमारी कोशिश है कि चना की खेती बढ़े। इसके लिए किसानों को जागरूक भी किया जाता है। खारा पानी के कारण भी जिले में चना का रकबा घटा है। विभाग द्वारा किसानों को चने की खेती के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। निश्चित तौर पर चने का रकबा घटा है। हमारा प्रयास जिले में चना के रकबे को बढ़ाने का है।
डा. अजीत ¨सह, एसडीओ, कृषि विभाग।