छह फुट तीन इंच लंबे रामबिलास को पांच फुट की चक्की में किया गया था बंद
25 जून 1975 में आपातकाल शुरू हुआ तो लोकतांत्रिक व्यवस्था पूरी तरह से ध्वस्त हो गई थी। इस दौर को याद कर आपातकाल में प्रताड़ित हुए पीड़ितों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं। बात यदि हम हरियाणा और पंजाब की करें तो रामबिलास शर्मा ने आपातकाल के विरोध में सत्याग्रह का नेतृत्व किया और पूरे आपातकाल में जेल में रहते हुए यातनाएं झेलीं। छह फुट तीन इंच लंबे रामबिलास शर्मा को जेल में पांच फुट की कोठरी (चक्की) में रखा गया। इतने जख्म दिए गए कि शरीर का शायद ही कोई हिस्सा जख्मों से बचा हो।
जागरण संवाददाता,नारनौल: 25 जून 1975 में आपातकाल शुरू हुआ तो लोकतांत्रिक व्यवस्था पूरी तरह से ध्वस्त हो गई थी। इस दौर को याद कर आपातकाल में प्रताड़ित हुए पीड़ितों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं। बात यदि हम हरियाणा और पंजाब की करें तो रामबिलास शर्मा ने आपातकाल के विरोध में सत्याग्रह का नेतृत्व किया और पूरे आपातकाल में जेल में रहते हुए यातनाएं झेलीं। छह फुट तीन इंच लंबे रामबिलास शर्मा को जेल में पांच फुट की कोठरी (चक्की) में रखा गया। इतने जख्म दिए गए कि शरीर का शायद ही कोई हिस्सा जख्मों से बचा हो।
दैनिक जागरण से विशेष बातचीत में पूर्व शिक्षामंत्री प्रो. रामबिलास शर्मा ने बताया कि 1975 में वह जनसंघ के संगठन महामंत्री थे। हरियाणा में दर्पण निकालते थे। उस समय वह सत्याग्रह का संचालन प्रेमचंद गोयल (प्रांत प्रचारक), डा. अशोक गर्ग (विभाग प्रचारक) के निर्देशन में रोहतक से संचालन करते थे। लाला अमरचंद बब्बर, भगवानदास बंसल, मदनलाल हरजाई, प्रोफेसर श्याम पसरिजा, जगदंबा प्रसाद, लंदाराम, अतरचंद गुगलानी को पुलिस ने पकड़ लिया और 22 दिन तक घुमाती रही और बाद में नाहड़ झज्जर जिले की पुलिस चौकी में बंद कर दिया। इस कारण हरियाणा में सत्याग्रह बंद हो गया। संगठन के प्रमुख लोगों के साथ बैठक हुई और यह निर्णय लिया गया कि इन सत्याग्रही जत्थे को जेल में भिजवाया जाए।
उनकी जिम्मेदारी लगी की वह चौकी के सामने सत्याग्रह करें। 30 नवंबर 1975 को पुलिस चौकी के सामने सत्याग्रह किया। वहां 100 पुलिस के जवानों ने लाठीचार्ज कर बेहोश कर दिया और उनके मुंह से खून कानों से खून निकलना शुरू हो गया। 3:30 घंटे बाद होश आया तो वे पुलिस हिरासत में थे और डीएसपी गुरबख्श लालपुरी चाय का कप उनको दे रहे थे। उनको झज्जर पुलिस हवालात में चार दिन तक रखा।
चार दिसंबर 1975 को रात के 8:30 बजे तत्कालीन मजिस्ट्रेट सूद साहब के घर पर पेश किया। उसी समय लाला ओंकारमल बहादुरगढ़ वाले वहां पर आ गए और उन्होंने चिल्ला कर कहा कि अरे जिस जवान को रिमांड पर भेज रहे हो, उस जिदा भगत सिंह के दर्शन तो करने दो। लाला ओंकारमल उस समय के सीनियर एडवोकेट थे। मजिस्ट्रेट ने उनको आठ दिन के पुलिस रिमांड पर अंबाला इंटेरोगेशन सेंटर में भेज दिया। यहां से यातना का दौर चालू हुआ है। उन्होंने प्रेम गोयल को एक पत्र लिखा कि भट्टी में पकाई हुई ईंट कच्ची नहीं निकली है। वह पत्र तानाशाही से जूझता हरियाणा पुस्तक में प्रोफेसर प्रेम सागर शर्मा और उनकी पत्नी अन्नपूर्णा शर्मा ने छापा है।
उनको रोहतक जेल में मीसा के तहत बंद कर दिया गया। जेल में उनके शरीर का कोई अंग ऐसा नहीं था, जिस पर जख्म न हो। इस कारण उनको रोहतक मेडिकल कालेज में भिजवाना पड़ा। इसके बाद अंबाला जेल से गया (बिहार) जेल में भेज दिया गया। गया सेंट्रल जेल में पांच फुट की कोठरी में छह फुट तीन इंच के रामबिलास शर्मा को बंद किया गया। उसी के अंदर एक कुंडी पीने के पानी की, एक कुंडी शौचालय के लिए रखी गई।
जेल से रिहा होने से एक दिन पहले जेल अधीक्षक सिन्हा और उपाधीक्षक अलमखान रामबिलास शर्मा के पास आकर बोले कि शर्मा आपकी फाइल पूरी लाल स्याही से लिखी है और आपके चेहरे पर शिकन नहीं है। इस पर रामबिलास शर्मा ने जवाब दिया कि कई होली और दिवाली जेल में बीत गई हैं। कल चुनाव परिणाम आ रहे हैं और इंदिरा गांधी, संजय गांधी और चौधरी बंसीलाल चुनाव हार रहे हैं। दोनों अधिकारियों ने जवाब दिया कि शर्मा आप दिन में सपना देख रहे हैं। 20 मार्च, 1977 को देश का चुनाव परिणाम आए और कांग्रेस की हार हो गई। 21 मार्च को रामबिलास शर्मा को वहां से रिहा किया गया।