जरूरतमंदों के लिए मददगार साबित हुए सरपंच
कोविड-19 के दौरान लगे लॉकडाउन के दौरान जिला प्रशासन के साथ मिलकर जरूरतमंदों को किया मदद सरपंचोंने।
जागरण संवाददाता, नारनौल:
कोविड-19 के दौरान लगे लॉकडाउन के दौरान जिला प्रशासन के साथ सामाजिक संगठन के साथ समाजसेवियों ने भी अपना सामर्थ्य अनुसार जरूरतमंदों की मदद की। इनमें ग्रामीण क्षेत्रों में सरपंच और उनकी टीम ने भी दिनरात ऐसे लोगों के दुख सुख के साथी बने जो लॉकडाउन के चलते बेरोजगार होने के साथ अपनों से बिछुड़े थे। जिला प्रशासन के शेल्टर होम स्थापित होने से पहले ग्रामीण क्षेत्रों में रह रहे दूसरे राज्यों के नागरिकों को खाने पीने, रहने और अन्य सुविधाओं का ख्याल ग्राम पंचायत ने रखा।
62 नागरिकों को 21 दिन तक कराया भोजन:
विधायक सीताराम यादव के गांव सुजापुर की सरपंच शर्मिला देवी ने कोरोना महामारी के चलते गांव में दूसरे राज्यों के 62 श्रमिकों को किसी वस्तु की कमी नहीं आने दी। लॉकडाउन के दौरान 21 दिन खाना बनाकर खिलाया। बाद में उन्हें सूखा राशन व अन्य सामग्री प्रदान किया। अब कोई ऐसा नागरिक यहां नहीं है। शर्मिला देवी कहती है कि गांव के अलावा भी उन्होंने चंदपुरा बस अड्डा पर होम शेल्टर में भोजन भिजवाने का काम किया। उन्होंने कहा कि ऐसे समय इंसान का यही कर्तव्य बनता है। जिस दिन ये लोग अपने घर को रवाना हुए उस दिन भी रास्ते के लिए खाना पैक कर दिया। पूर्व सरपंच एवं वर्तमान विधायक सीताराम यादव ने भी सरपंच शर्मिला के इस कार्य की सराहना की। उन्होंने कहा कि उनके क्षेत्र के सभी सरपंच इन नागरिकों की देखरेख में लगे थे।
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70 लोगों का रखा ख्याल
लॉकडाउन के वक्त कनीना खंड के गांव धनौंदा में जहां शेल्टर होम बनाया गया था जहां 60 से 70 लोग ठहरे थे। वहां पर लोगों को साथ अच्छा व्यवहार किया गया। उनके खाने-पीने रहने के लिए प्रबंध किए गए थे। खाने में नाश्ता, दोपहर का भोजन और शाम को चाय का प्रबंध एवं रात्रि का भोजन भी था। उनके सोने के लिए गद्दों का प्रबंध किया गया था। हालांकि कनीना खंड में बहुत कम गांव ऐसे थे जहां लोग ठहरे थे। जहां श्रमिक काम कर रहे थे वही उनको ठहराने का आदेश दिया था जिसके चलते शेल्टर होम खाली रहे थे। महज कनीना शेल्टर होम में भारी गहमागहमी दो महीने तक चली। सरपंच रूपेंद्र का कहना है कि यहां शहीद महेश पाल स्टेडियम में दूसरे राज्यों के नागरिकों के लिए भोजन पानी की व्यवस्था की गई थी। यहां तक कि जब यहां से अपने गांव के लिए रवाना हुए तब भी उन्हें बेहतर ढंग से खाना नाश्ता करवाकर विदा किया था। सरपंच रूपिदर ने बताया कि जहां ठहरने के लिए गद्दे टेंट हाउस से मंगाए गए थे वहीं भोजन के लिए अलग से कारीगरों की जिम्मेदारी लगाई थी। एक इंसानियत के नाते उन्होंने अपनी पूरी जिम्मेदारी निभाई। जब ये लोग घर लौट रहे थे तो सभी भावुक हुए। ग्रामीण ओमबीर का कहना है कि सरपंच ने जो भूमिका निभाई वह इंसानियत के नाते बेहतर कदम था। खाने-पीने रहने सोने आदि का जो प्रबंध किया उसमें कोई कसर नहीं छोड़ी गई थी। यद्यपि उनका यह शेल्टर होम कम दिनों तक चला। सरपंच ने बार बार उनके शेल्टर होम में भी व्यवस्थाओं की पड़ताल की।