पर्यावरण और संस्कृति बचाने के संदेश के साथ विदा हुई रत्नावली
जागरण संवाददाता, कुरुक्षेत्र : प्रदेश में सांस्कृतिक उत्सवों में शुमार कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय की ओर से हर साल आयोजित की जाने वाली रत्नावली एक बार फिर अपने भव्य आयोजन और पर्यावरण बचाने के संदेश के साथ विदा हो गई।
जागरण संवाददाता, कुरुक्षेत्र : प्रदेश में सांस्कृतिक उत्सवों में शुमार कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय की ओर से हर साल आयोजित की जाने वाली रत्नावली एक बार फिर अपने भव्य आयोजन और पर्यावरण बचाने के संदेश के साथ विदा हो गई। इस बार रत्नावली के माध्यम से किसानों को पराली न जलाने का संदेश दिया गया वहीं पर्यावरण को बचाने के लिए ग्रीन रत्नावली का संदेश दिया गया। जिसमें पूरे रत्नावली कार्यक्रम के दौरान प्लास्टिक व थर्माकोल के प्रयोग को वर्जित किया गया था। इक्का-दुक्का स्थानों को छोड़ दें तो रत्नावली के आयोजन अपना संदेश देने में पूर्ण रूप से कामयाब रहे। मंच से एक बार नहीं बल्कि दर्जनों बार पराली न जलाने का संदेश दिया गया।
प्रदेश की सांस्कृतिक विरासत को सहेजने के लिए कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में शुरू की गई रत्नावली भले ही 1985 में एक साधारण से कार्यक्रम से शुरू हुई हो। उस समय रत्नावली उत्सव के रूप में मात्र आठ विधाओं और 300 विद्यार्थियों ने मनाया था, लेकिन वर्तमान में हरियाणवी संस्कृति को जीवित रखने में रत्नावली का अहम रोल है। हमारी आने वाली पीढि़यां जिन गीतों, नृत्यों और सांस्कृतिक धरोहर को भूल चुकी है उनको रत्नावली ने आज भी सहेजा जा रहा है। पूर्व निदेशक अनुप लाठर ने रत्नावली में प्रदेश भर की 31 विधाओं को शामिल किया गया है। इन्हीं विधाओं में प्रदेश भर से 3500 कलाकार वर्तमान में भाग ले रहे हैं। विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से इस बार पराली न जलाने और ग्रीन रत्नावली के संदेश को रत्नावली का थीम बनाया था। युवाओं को दिया संदेश
रत्नावली के माध्यम से युवाओं को पर्यावरण बचाने के लिए लगातार कार्य करने का संदेश दिया गया। कार्यक्रम में प्रदेश भर से ग्रामीण हो या फिर शहरी क्षेत्र से युवा भाग ले रहे थे। इसलिए हर मंच पर लगे बैनर व अन्य में पराली न जलाने का संदेश दिया गया।