सरस्वती व सांस्कृतिक विरासत के महत्व को समझा और जुट गए बचाने में
धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र की भूमि सरस्वती जल से ¨सचित तो रही ही है, साथ ही सरस्वती सभ्यता के अवशेष भी कुरुक्षेत्र में सरस्वती नदी के प्राचीन घाट एवं उसके तट पर स्थित तीर्थ तथा स्वर्गाश्रम इत्यादि सरस्वती नदी के रूप में आज भी विद्यमान हैं। अनेकों वर्ष पूर्व सरस्वती अन्त:सलिला हो गई थी। यह आज भी सर्वविदित है। इस विषय में शोधकर्ता एवं इतिहासकार अपने शोध आलेखों के माध्यम से निष्कर्ष निकालने का प्रयास करते रहते हैं।
जागरण संवाददाता कुरुक्षेत्र :
धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र की भूमि सरस्वती जल से ¨सचित तो रही ही है, साथ ही सरस्वती सभ्यता के अवशेष भी कुरुक्षेत्र में सरस्वती नदी के प्राचीन घाट एवं उसके तट पर स्थित तीर्थ तथा स्वर्गाश्रम इत्यादि सरस्वती नदी के रूप में आज भी विद्यमान हैं। अनेकों वर्ष पूर्व सरस्वती अन्त:सलिला हो गई थी। यह आज भी सर्वविदित है। इस विषय में शोधकर्ता एवं इतिहासकार अपने शोध आलेखों के माध्यम से निष्कर्ष निकालने का प्रयास करते रहते हैं। इस सांस्कृतिक विरासत के महत्व को समाज को अवगत कराने के लिए विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान के निदेशक डॉ. रामेन्द्र ¨सह विगत 29 वर्षों से निरंतर प्रयासरत हैं।
सरस्वती नदी अस्तित्व एवं पुर्नप्रवाह को लेकर दर्शनलाल जैन एवं विश्वप्रसिद्ध इतिहासकार डॉ. सतीश मित्तल के मार्गदर्शन में अनेक विचार-गोष्ठियों एवं प्रदर्शनी आयोजनों में वैज्ञानिकों को आमंत्रित कर उल्लेखनीय योगदान दिया है। कुरुक्षेत्र का दूसरा सांस्कृतिक पहलू यह भी है कि यह नगरी श्रीमछ्वगवद्गीता की स्थली भी है। अत: पूरे देश के 574 जिलों में संपर्क कर उन सब जिलों से एक-एक प्रतिनिधि को कुरुक्षेत्र में इस आग्रह के साथ बुलवाया कि आते हुए अपने राज्य की पारंपरिक वेशभूषा में आएं और श्रीमछ्वगवद्गीता के श्लोक का पट्ट अपने राज्य की शैली में बनवाकर साथ लाएं। इसके साथ-साथ अपने जिले के महत्वपूर्ण स्थान की मिट्टी भी साथ लेकर आएं। परिणामस्वरूप अंतरराष्ट्रीय गीता जयंती समारोह में पूरे भारत की अनेकता में एकता दर्शाने वाली अद्वितीय संस्कृति के दर्शन हुए और समारोह में भारत के 574 जिलों का प्रतिनिधित्व हुआ। विभिन्न जिलों एवं राज्यों से विभिन्न भाषाओं को बोलने वाले सभी लोग एक परिसर में 5 दिन तक समरस होकर श्रीमछ्वगवद्गीता के एक तत्व को लेकर ¨चतन-मंथन व विचार-विमर्श करते रहे। सरस्वती धरोहर बोर्ड की टूरिज्म कमेटी के हैं सदस्य रामेंद्र ¨सह पर्यटन मंत्रालय की कृष्णा सर्किट नेशनल कमेटी के सदस्य एवं संस्कृति मंत्रालय के मिशन-कल्चरल मै¨पग नेशनल कमेटी के सदस्य तथा सांस्कृतिक स्त्रोत एवं प्रशिक्षण केन्द्र (सी.सी.आर.टी.) की कार्यकारिणी कमेटी के सदस्य एवं अंतरराष्ट्रीय गीता जयंती की आयोजन समिति के सदस्य तथा सरस्वती धरोहर बोर्ड की टूरिज्म कमेटी के सदस्य भी हैं। जितना भी दायित्व उन्हें आज तक मिला, उन्होंने उसे सफलतापूर्वक निर्वहन किया है। रामेंद्र ¨सह ने विद्या भारती में एक संग्रहालय भी स्थापित किया है जिसमें सरस्वती नदी की विरासत को सहेजने का कार्य किया जा रहा है।
423 नदियों को चिन्हित कर मंगाया था उनका जल कुरुक्षेत्र के तीर्थ पर्यटन के विकास के लिए कृष्णा सर्किट कमेटी की प्रथम मी¨टग में 100 करोड़ रुपये के प्रस्ताव को स्वीकृत कराने का श्रेय भी रामेंद्र ¨सह को जाता है। उपरोक्त संदर्भों के अतिरिक्त सरस्वती के प्रति भी इतना उत्साहित रहते हैं कि जब अंतराष्ट्रीय सरस्वती महोत्सव मनाने की बात आई, उसमें जो योगदान दिया, वह अभूतपूर्व रहा। पूरे भारत में समाज सरस्वती नदी के महत्व को जाने, इस ²ष्टि से भारत की 423 नदियों को चिन्हित कर उन सबका जल कुरुक्षेत्र मंगवाया तथा हिमालय से निकलने वाली प्रमुख नदियों के पवित्र जल से आदि बद्री में भारत सरकार के केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी तथा हजारों की संख्या में उपस्थित लोगों के समक्ष जलाभिषेक कराया। इसके साथ-साथ पिहोवा में महाजलाभिषेक कार्यक्रम में भी देशभर की नदियों से जलाभिषेक किया गया देशभर की नदियों का जल कुरुक्षेत्र लाने के लिए डॉ. रामेन्द्र ¨सह को जिम्मेवारी सौंपी गई थी, जिस पर खरा उतरते हुए मात्र डेढ़ मास के अंदर शासन से किसी प्रकार की आर्थिक मदद के बिना विद्या भारती की देशभर में फैली शिक्षा संस्थाओं और उनके कार्यकर्ताओं की मदद से विभिन्न नदियों का यह जल कुरुक्षेत्र में विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान, कुरुक्षेत्र में एकत्र किया गया। यह जल न केवल भारत की अपितु श्रीलंका, पाकिस्तान, थाईलैंड, चीन, सउदी अरब, कम्बोडिया की नदियों से भी मंगवाया गया।